नई दिल्ली, 8 जुलाई (आईएएनएस)| दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया, जिसमें एलजीबीटी समुदाय में पारिवारिक कानूनों की रूपरेखा तैयार करने और इन मुद्दों को देखने के लिए एक समिति बनाने के बाबत सरकार को निर्देश देने की बात कही गई थी। मुख्य न्यायाधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मामले में केंद्र की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए तजिंदर सिंह द्वारा दायर याचिका को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि कानून का मसौदा तैयार करना विधानमंडल का विशेषाधिकार है।
पीठ ने कहा, “कानून का मसौदा तैयार करना विधानमंडल का विशेषाधिकार है।”
पीठ ने टिप्पणी की, “क्या एक रिट अदालत एक समिति गठित करने के लिए विधायिका को निर्देशित कर सकती है?”
अदालत ने आगे कहा कि अगर सरकार एलजीबीटी समिति का गठन करना चाहे तो उन्हें ऐसा करने की अनुमति प्राप्त है।
केंद्र ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि वह ट्रांसजेंडरों के उत्थान के लिए सभी आवश्यक उपाय कर रहा है और उन्हें मुख्यधारा में ला भी रहा है।
याचिकाकर्ता ने हिंदू विवाह अधिनियम और अन्य व्यक्तिगत कानूनों में उचित बदलाव लाने के लिए दबाव डाला, ताकि शादी, गोद लेने आदि से संबंधित अधिकारों के साथ-साथ एलजीबीटी के लिए एक आयोग का गठन किया जा सके।
याचिका में कहा गया, “संविधान सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान अधिकार देने की बात कहता है। यह राज्य की जिम्मेदारी है कि किसी के साथ भेदभाव न हो।”
इसमें आगे कहा गया कि एलजीबीटी समुदाय के लोग अल्पसंख्यक हैं और उनके भी मौलिक अधिकार हैं।
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