गांधी और सुभाष चंद्र बोस : विपरीत विचारों वाले स्वतंत्रता सेनानी, मंजिल एक, लेकिन रास्ते अलग

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नई दिल्ली | यह अनंत पहेली है, एक ऐसी जो अनसुलझा रहस्य बना हुआ है। निश्चित रूप से नेताजी अब मिथक का हिस्सा बन चुके हैं। महात्मा गांधी से अलग उन्होंने अपने लिए एक खतरनाक रास्ता चुना। भारत की स्वतंत्रता की कहानी के चार बड़े नायकों- महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मोहम्मद अली जिन्ना- की तरह उन्होंने भी इंग्लैंड में पढ़ाई की थी। लेकिन गांधी का अनुयायी होने के बावजूद वह विद्रोही हो गए, और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक आर्मी बना डाली। इस प्रक्रिया में उन्होंने हिटलर और टोजो से मुलाकात की।

पिछले महीने उनकी बेटी अनिता बोस पफाफ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा कि वह जापान में रेनकोजी मंदिर में रखी गई अस्थियों का डीएनए परीक्षण कराएं, ताकि सच्चाई सामने आ सके। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछली सरकार में कुछ निहित स्वार्थी तत्वों के एक वर्ग ने मामले को नजरअंदाज किया, क्योंकि उन्होंने कभी नहीं चाहा कि रहस्य खुलकर सामने आए।

उन्होंने कहा था, “जबतक साबित नहीं हो जाता, मैं नहीं मानती कि उनकी मौत 18 अगस्त, 1945 को विमान दुर्घटना में हुई थी। बल्कि कई लोग इस पर भरोसा नहीं करते। मैं निश्चित रूप से चाहूंगी कि यह रहस्य सुलझ जाए। मैं मानती हूं कि रहस्य सुलझाने का सबसे अच्छा तरीका जापान के रेनकोजी मंदिर में रखी गई अस्थियों का डीएनए परीक्षण कराया जाए। डीएनए परीक्षण से साबित हो जाएगा कि यह वास्तव में वह (नेताजी) थे या नहीं।”

अनिता ने यह बात जर्मनी से टेलीफोन पर एक एजेंसी के साथ बातचीत में कही थी।

नेताजी सुभाष बोस को लेकर प्रधानमंत्री मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच कई मायनों में आरोप-प्रत्यारोप का एक खेल चला है। नेताजी फाइल्स को लेकर भी इतिहास में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जिन्हें सुलझाने की जरूरत है। सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के हरिपुर अधिवेशन में पार्टी के अध्यक्ष बन गए। एक साल बाद त्रिपुरी में उन्होंने महात्मा गांधी, नेहरू और पटेल के विरोध के बावजूद गांधीजी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया से 95 वोट अधिक पाकर अध्यक्ष का चुनाव जीत गए। बोस की इस जीत के बाद गांधी ने कहा था कि पट्टाभि की हार “उनसे ज्यादा मेरी है”।

मार्च 1939 में त्रिपुरी में जी.बी. पंत ने एक प्रस्ताव पेश किया और बोस से कहा कि गांधी के विचारों के अनुरूप एक कार्यकारी समिति नियुक्त किया जाए। बोस ने 10 मार्च, 1939 के अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा था, “लेकिन चूंकि हरिपुरा में काफी कुछ हो चुका है। आज हमें लगता है कि सर्वोपरि शक्ति अधिकांश स्थानों पर राज्य प्रशासन के पास है। ऐसी परिस्थितियों में क्या हम कांग्रेस को राज्यों के लोगों से करीबी नहीं बनानी चाहिए? मुझे इस बारे में कोई संदेह नहीं है कि आज का हमारा कर्तव्य क्या है।”

कांग्रेस कार्यकारिणी में गांधीजी द्वारा नियंत्रित समूह के बीच का तिकड़मी रिश्ता उन दिनों एक ताकतवर और लोकप्रिय बाहरी व्यक्ति नेताजी के प्रवेश से नाखुश था। यद्यपि नेहरू निजी तौर पर और अक्सर सार्वजनिक तौर पर इस टसल में ज्यादातर नेताजी के दाहिने पक्ष में रहे। इस अंतर्कलह के कारण नेताजी ने कांग्रेस छोड़ दी और उन्होंने एक सेना के जरिए ब्रिटिश शासन से देश को आजाद कराने का एक अलग रास्ता चुना।

This post was last modified on October 3, 2019 1:08 AM

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