चेन्नई, 29 सितम्बर (आईएएनएस)| यह एक ज्ञात तथ्य है कि महात्मा गांधी ने रेलगाड़ी के तीसरी श्रेणी के डिब्बे में यात्रा की थी और बाद में रेलवे ने इस श्रेणी को ही समाप्त कर दिया। यहां कैथ्रेडल रोड पर वेल्कमहोटल के बाहर एक पट्टिका लगी है, जो इस बात की याद दिलाती है कि गांधीजी यहां आए थे।
पट्टिका के निचले भाग पर लिखा है, “यह तब हुआ जब गांधीजी पहली बार राजाजी से मिले और उनके अतिथि के रूप में रहे।”
इस पीढ़ी के युवा इस बात को सच मान सकते हैं, क्योंकि नेताओं की बैठकें इन दिनों स्टार होटलों में ही होती हैं।
एक इतिहासकार वाकुला एस. वरदाजराजन ने आईएएनएस को बताया, “जिस स्थान पर अब होटल मौजूद है, वहां सी. राजगोपालाचारी (जिन्हें राजाजी के नाम से जाना जाता था) किराए पर रहते थे। यह उनका आवास था, जहां गांधीजी पहली बार राजगोपालाचारी से मिले थे। यही पर गांधीजी को हड़ताल करने का विचार आया।”
उन्होंने कहा कि राजगोपालाचारी द्वारा किराए पर जो घर लिया गया था, उसके मालिक एस. कस्तूरी रंगा अयंगर थे, जिन्होंने द हिंदू पब्लिकेशन का अधिग्रहण किया था।
पट्टिका पर लिखी पूरी बात उस निवास के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती है।
यह राजाजी का निवास पर था, जहां गांधीजी ने 1919 के अराजकतावादी और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम के खिलाफ हड़ताल करने की सोची, जिसे रौलेट एक्ट के नाम से जाना जाता था।
पट्टिका पर लिखा है, “तिलक भवन के नाम से प्रसिद्ध इस परिसर में महात्मा गांधी ने 18 मार्च, 1919 की बेचैन ऐतिहासिक रात काटी थी, जब अपमानजनक रौलेट एक्ट के पारित होने की दुखद खबर ने उन्हें बेचैन कर दिया था। सवेरा होने से पहले गांधीजी को सपने में हड़ताल करने का विचार मिला, जिसकी परिणति बाद में अहिंसक असहयोग आंदोलन के रूप में हुई।”
इसमें आगे लिखा है, “इस यादगार घटना का जिक्र करते हुए, गांधीजी लिखते हैं – मैं अभी भी नींद और चेतना के बीच उस अर्धचेतन अवस्था में था जब अचानक यह विचार मुझे आया- यह ऐसा था जैसे कि सपने में हमें देश में एक सामान्य हड़ताल करने के लिए आह्वान करना चाहिए। पूरे भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक, शहरों से गांवों तक, उस दिन पूरी तरह से हड़ताल हुआ। यह एक अद्भुत नजारा था।”
रौलेट एक्ट बिना सुनवाई और न्यायिक समीक्षा के किसी भारतीय को अनिश्चित काल तक जेल में बंद रखने के बारे में था।
पट्टिका पर जवाहरलाल नेहरू का एक उद्धरण भी है, “जहां भी बापू बैठते थे वह मंदिर बन जाता था। जहां वह कदम रखते थे वह पवित्र जगह बन जाता था।”
आचार्य कृपलानी द्वारा 13 अप्रैल, 1968 को पट्टिका का उद्घाटन किया गया।
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