चंडीगढ़, 10 नवंबर (आईएएनएस)| ‘सदाचार अपने आप में ईश्वर की स्तुति है।’ यह पहले सिख गुरु-गुरु नानक देव की वाणी है, जिनकी 550वीं जयंती 12 नवंबर को देशभर में मनाई जाएगी।
उनकी कई वाणियों में से एक है, “गुरु ईश्वर है, अवर्णनीय, अप्राप्य। वह जो गुरु का अनुसरण करता है, ब्रह्मांड की प्रकृति को समझ लेता है।”
गुरु नानक देव के तीन मार्गदर्शक सिद्धांत हैं : ‘नाम जपना, किरत करनी, वंद छकाना’ अर्थात ईश्वर का नाम जपना, अपने हाथों के श्रम में संलग्न होने के लिए तैयार रहना और आपने जो कुछ भी एकत्रित किया है उसे दूसरों के साथ साझा करने के लिए तैयार रहना, इन्हें सिख नैतिकता और जीवन को जीने के सिद्धांत कहे जाते हैं।
पंजाब सरकार द्वारा 23 नवंबर, 2018 से बेहद श्रद्धा और उत्साह के साथ उनकी 550वीं जयंती मनाई जा रही है।
1 से 12 नवंबर के बीच सुल्तानपुर लोधी शहर में मुख्य समारोह का आयोजन किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा राज्यभर में 3,200 करोड़ से अधिक की लागत वाली विभिन्न विकासात्मक कार्य शुरू किए गए हैं।
सरकार के एक प्रवक्ता ने आईएएनएस को बताया कि गुरु नानक देव द्वारा दौरा किए गए 70 गांवों और कस्बों में विशेष परियोजनाएं शुरू की जा रही हैं।
गुरु नानक देव सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक हैं, इसके साथ ही वह एक कवि, एक घुमंतू उपदेशक, एक समाज सुधारक और एक गृहस्थ थे।
गुरु नानक देव अपने समय के सबसे अधिक यात्रा करने वाले व्यक्तियों में से थे और उन्होंने अपनी जिंदगी के 20 बरस यात्रा करके ही बिताए हैं।
उनकी यात्रा का सर्वप्रथम विवरण करने वाले भाई गुरुदास हैं।
‘जनमसाखी’ भी उनकी यात्रा से संबंधित जानकारी प्रदान करते हैं।
गुरु नानक देव की यात्रा की शुरुआत सुल्तानपुर लोधी से हुई थी, ऐसा उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति के बाद ही हुआ था।
अपने पहले लंबे सफर में उन्होंने हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बांग्लादेश की यात्रा की।
अपने दूसरे चरण में उन्होंने दक्षिण में श्रीलंका तक की यात्रा की व तत्पश्चात उन्होंने हिमालय क्षेत्र के आंतरिक भागों का दौरा किया जिनमें कांगड़ा घाटी, कुल्लू घाटी, पश्चिमी तिब्बत, लद्दाख, कश्मीर और पश्चिम पंजाब (पाकिस्तान) है।
यहां से लौटने के बाद उन्होंने पंजाब के तलवंडी में कुछ वक्त बिताया और इसके बाद पश्चिमी एशिया के देशों का दौरा करने का फैसला लिया।
एक मुस्लिम भक्त के अनुरूप पोशाक धारण किए हुए उन्होंने सिंध, बलूचिस्तान, अरब, इराक, ईरान और अफगानिस्तान की यात्रा की।
अपने पश्चिमी दौरे के पूरे होने के बाद गुरु नानक देव अन्तत: करतारपुर साहिब (अब पाकिस्तान में) बस गए।
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