Guru Nanak Jayanti: कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक देव का हुआ जन्म, जानिए सिखों के पहले गुरु की 10 बातें

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Guru Nanak Jayanti 2019: ‘सदाचार अपने आप में ईश्वर की स्तुति है’ – यह सिखों के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव की वाणी है। गुरु नानक जयंती 12 नवंबर (November 12) को देशभर में मनाई जाएगी। इस बार गुरु नानक देव की 550वीं जयंती मनाई जाएगी। नानक देव जी (Guru Nanak Dev Ji) की जयंती (Guru Nanak Jayanti) कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन मनाई जाती है।

गुरु नानक देव जी ने ही श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारे (Kartarpur Sahib Gurudwara) की नींव रखी थी। गुरु नानक के अनुयायी उन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस (Guru Nanak Dev Birthday) को गुरु पर्व, गुरु पूरब या प्रकाश पर्व (Guru Parv or Prakash Parv) के तौर पर मनाया जाता है। गुरु नानक देव जी का जन्म राय भोई की तलवंडी (राय भोई दी तलवंडी) नाम की जगह पर हुआ था, जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित ननकाना साहिब (Nankana Sahib) में है। आइये जानते हैं गुरु नानक के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें…

1. गुरु नानक देव सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक हैं। इसके साथ ही वह एक कवि, एक घुमंतू उपदेशक, एक समाज सुधारक और एक गृहस्थ थे।

2. गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था। हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन नानक देव जी की जयंती मनाई जाती है।

3. गुरु नानक देव के पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था। नानक देव जी की बहन का नाम नानकी था। गुरु नानक के बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी जिन्हें देखकर गांव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व वाले मानने लगे।

4. गुरु नानक जी का विवाह सन 1487 में माता सुलखनी से हुआ. उनके दो पुत्र थे जिनका नाम श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द था।

5. गुरु नानक देव अपने समय के सबसे अधिक यात्रा करने वाले व्यक्तियों में से थे और उन्होंने अपनी जिंदगी के 20 बरस यात्रा करके ही बिताए हैं। उनकी यात्रा का सर्वप्रथम विवरण करने वाले भाई गुरुदास हैं। ‘जनमसाखी’ भी उनकी यात्रा से संबंधित जानकारी प्रदान करते हैं। गुरु नानक देव की यात्रा की शुरुआत सुल्तानपुर लोधी से हुई थी, ऐसा उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति के बाद ही हुआ था।

6. अपने पहले लंबे सफर में उन्होंने हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बांग्लादेश की यात्रा की। अपने दूसरे चरण में उन्होंने दक्षिण में श्रीलंका तक की यात्रा की व तत्पश्चात उन्होंने हिमालय क्षेत्र के आंतरिक भागों का दौरा किया जिनमें कांगड़ा घाटी, कुल्लू घाटी, पश्चिमी तिब्बत, लद्दाख, कश्मीर और पश्चिम पंजाब (पाकिस्तान) है। यहां से लौटने के बाद उन्होंने पंजाब के तलवंडी में कुछ वक्त बिताया और इसके बाद पश्चिमी एशिया के देशों का दौरा करने का फैसला लिया। एक मुस्लिम भक्त के अनुरूप पोशाक धारण किए हुए उन्होंने सिंध, बलूचिस्तान, अरब, इराक, ईरान और अफगानिस्तान की यात्रा की।

7. अपने पश्चिमी दौरे के पूरे होने के बाद गुरु नानक देव अंततः करतारपुर साहिब (अब पाकिस्तान में) बस गए। उन्होंने 25 सितंबर, 1539 को अपना शरीर त्याग दिया। मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।

8. गुरु नानक कहते थे कि ईश्वर एक है उसकी उपासना हिंदू मुसलमान दोनों के लिए हैं। मूर्तिपूजा और बहुदेवोपासना को नानक जी अनावश्यक कहते थे। हिंदु और मुसलमान दोनों पर इनके मत का प्रभाव था।

9. उनकी कई वाणियों में से एक है, “गुरु ईश्वर है, अवर्णनीय, अप्राप्य। वह जो गुरु का अनुसरण करता है, ब्रह्मांड की प्रकृति को समझ लेता है।”

10. गुरु नानक देव के तीन मार्गदर्शक सिद्धांत हैं : ‘नाम जपना, किरत करनी, वंद छकाना’ अर्थात ईश्वर का नाम जपना, अपने हाथों के श्रम में संलग्न होने के लिए तैयार रहना और आपने जो कुछ भी एकत्रित किया है उसे दूसरों के साथ साझा करने के लिए तैयार रहना। इन्हें सिख नैतिकता और जीवन को जीने के सिद्धांत कहे जाते हैं।


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