होली को बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार माना जाता है। एक ओर इसे बालगोपाल, कृष्णा और गोपियों की लीला से जोड़ा जाता है तो वहीं दूसरी ओर इसमें भगवान विष्णु और प्रह्लाद की भक्ति का सार भी है। होली में रंगों के साथ-साथ होलिका दहन की पूजा का भी खास महत्व है।
होली का त्योहार राक्षसराज हिरण्यकश्यप के गुरूर को तोड़ने और उसके पुत्र भक्त प्रह्लाद की आश्था के जीतने की कहानी याद दिलाता है। होली पर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई थी, उसे वरदान प्राप्त था कि आग उसे जला नहीं सकती लेकिन अधर्म का साथ देने की वजह से होलिका जल गई और भक्त प्रह्लाद बच गए। हिरण्यकश्यप को उसके पापों की सजा देने के लिए और उसका अंत करने के लिए भगवान स्वयं नृसिंह अवतार के रूप में पृथ्वी पर उतरे और अपने नखों से उसका पेट चीर कर उसका वध कर दिया।
भगवान के हाथों मरने की वजह से राक्षस हिरण्यकश्यप को स्वर्ग की प्राप्ति हुई जबकि भक्त प्रह्लाद की आस्था और विश्वास की जीत ने अधर्म के ऊपर धर्म की एक बार फिर स्थापना हो गई। रंगों वाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन कर पूजा- अर्चना की जाती है। इसे छोटी होली और होलिका दीपक भी कहा जाता है। बुधवार 20 मार्च को होलिका दहन और बृहस्पतिवार 21 मार्च को रंगों की होली का पर्व देश भर में मनाया जाएगा।
फाल्गुन मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। होली सिर्फ रंगों का ही नहीं एकता, सद्भावना और प्रेम का प्रतीक भी होता है। इस साल होलिका दहन के दिन सुबह 10.48 बजे से रात 8.55 बजे तक भद्रा रहेगी। दरअसल, भद्रा को विघ्नकारक और शुभ कार्य में निषेध माना जाता है। ऐसे में लोगों में होलिका दहन के समय को लेकर दुविधा है। शास्त्रानुसार रात को नौ बजे के बाद भद्रा काल के बाद ही होलिका दहन किया जाना मंगलकारी होगा। रात नौ से साढ़े नौ बजे तक होलिका दहन का श्रेष्ठ मुहूर्त है। होलिका की अग्नि में गाय का गोबर, गाय का घी और अन्य हवन सामग्री का दहन किया जाना चाहिए। इस दिन पूजा का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि इस पूजा से घर में सुख और शांति आती है।
होलिका दहन का संदर्भ हिर्णाकश्यप की बहन होलिका और प्रह्लाद की कहानी से है। होली माघ महीने की पूर्णिमा के दिन से शुरू हो जाती है। इस दिन से ही महिलाएं गुलर के पेड़ की टहनी को चौराहों पर गाड़ देती हैं, फाल्गुन पूर्णिमा के दिन इसी होली को जलाकर गांव की महिलाएं होली का पूजन करती हैं। अलग- अलग राज्यों में अपनी परंपराओं के अनुसार लोग पूजा करते हैं और आस्था के इस पर्वको धूम-धाम से मनाते हैं।
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