शिमला, 6 दिसम्बर (आईएएनएस)| हिमाचल प्रदेश में करीब 21 भूस्खलन संभावित क्षेत्र हैं, जिसमें से अधिकतर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित हैं। राज्य में हर साल एक या दो बड़े भूस्खलन होते हैं। अतिरिक्त मुख्य सचिव मनीषा नंदा की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में राज्य द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट पर चर्चा की गई, जिससे यह जानकारी सामने आई है।
भू-स्खलन में कमी लाने के लिए कोर-ग्रुप के सृजन के लिए यह बैठक आयोजित की गई थी।
सरकार के एक प्रवक्ता ने आईएएनएस को बताया कि इस संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को भेजी जाएगी।
मनीषा नंदा ने कहा कि भू-स्खलन राज्य में सबसे आम खतरा है और लगभग हर वर्ष राज्य एक या इससे अधिक मुख्य भू-स्खलनों के कारण प्रभावित होता है, जिसमें मुख्य रूप से सार्वजनिक व निजी संपत्ति सहित जन-जीवन को नुकसान पहुंचता है।
उन्होंने कहा कि भूकंप और बाढ़ की तरह भू-स्खलन के जोखिम को संरचना तथा गैर संरचना उपायों के संयोजन से कम किया जा सकता है।
नंदा ने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने राज्य से भू-स्खलन से निपटने के संबंध में एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट मांगी है। विभिन्न जिलों में भू-स्खलन की दृष्टि से संवेदनशील कुल 21 स्थलों को चिन्हित किया गया है।
नंदा ने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण राज्य में भू-स्खलन आपदा से जुड़े जोखिम और संवेदनशीलता को कम करने के लिए बड़े पैमाने पर भू-स्खलन के उपायों पर योजना बना रहा है।
हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों विशेषरूप से चंबा, किन्नौर, कुल्लू, मंडी, शिमला, सिरमौर और ऊना जिले बाढ़, बादल फटने और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के संभावित क्षेत्र हैं।
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