हम प्रवासियों के लिए एसी में बैठकर, ट्वीट कर चिंता व्यक्त नहीं कर सकते : सोनू सूद

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मुंबई, 16 मई (आईएएनएस)। “जाकर प्रवासी मजदूरों से कह दें कि चिंता न करें, क्योंकि सोनू सूद उनके लिए हैं.. हो सकता है कि वह व्यक्ति सिनेमा में नकारात्मक भूमिकाएं निभाता है, लेकिन वह व्यक्ति वास्तविक दुनिया में ‘नायक’ है,” ये पंक्तियां एक छात्र की है, जो कोलकाता का है और उसने अपने फेसबुक पोस्ट में सोनू सूद के बारे में लिखा है।

पिछले कुछ महीनों से, ‘सोनू सूद ने स्वास्थ्य कर्मियों के लिए अपने जुहू होटल की पेशकश की’, ‘सोनू सूद ने जरूरतमंदों के बीच भोजन वितरित किया है’, ‘सोनू सूद ने रमजान के दौरान 25,000 से अधिक प्रवासियों को खाना खिलाया’ जैसे शीर्षकों ने हमारा ध्यान आकर्षित किया है।

हाल ही में अभिनेता ने महाराष्ट्र और कर्नाटक सरकारों से अनुमति प्राप्त करने के बाद फंसे हुए प्रवासी मजदूरों को उनके गृहनगर ले जाने के लिए बसों की व्यवस्था भी की। यहां तक कि वे व्यवस्था की देखरेख के लिए बस टर्मिनल भी गए।

इस बारे में सोनू सूद ने कहा, “मुझे लगता है कि यह मेरा कर्तव्य है कि मैं प्रवासियों, हमारे देश की धड़कनों की मदद करूं। हमने प्रवासियों को अपने परिवारों और बच्चों के साथ राजमार्गों पर चलते देखा है। हम सिर्फ एसी में बैठकर ट्वीट नहीं कर सकते और अपनी चिंता तब तक नहीं दिखा सकते हैं जब तक हम खुद उनमें से एक नहीं हो जाते। अन्यथा उन्हें यह भरोसा नहीं होगा कि कोई व्यक्ति उनके लिए खड़ा है। इसलिए मैं उनकी यात्रा के लिए समन्वय कर रहा हूं और विभिन्न राज्यों से अनुमति ले रहा हूं।”

उन्होंने आगे दावा किया, “अब मुझे बहुत सारे संदेश और सैकड़ों ईमेल रोज मिलते हैं, जिसमें लोग कहते हैं कि वे यात्रा करना चाहते हैं और मैं सुबह से शाम तक नॉन-स्टॉप उनके साथ समन्वय कर रहा हूं। इस ल़ॉकडाउन के दौरान यह मेरा एकमात्र काम बन गया है। इससे मुझे इतनी संतुष्टि मिलती है कि मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता।”

उन्होंने आगे कहा, “जब मैं इन प्रवासियों और उन सभी लोगों को देखता हूं जो पीड़ित हैं, तो मुझे लगता है कि हमने एक इंसान होने का सम्मान खो दिया है। मैं रात में ठीक से सो नहीं पाता, क्योंकि ये विचार मेरे दिमाग में आते रहते हैं। पूरे दिन मैं ईमेल पढ़ता रहता हूं, उनके फोन नंबर को नोट कर रहा हूं, उन्हें कॉल करने की कोशिश कर रहा हूं। इनमें सैकड़ों शामिल हैं। मेरी इच्छा है कि मैं दिन-रात उन्हें व्यक्तिगत रूप से उनके गांवों तक ले जाऊं और उनके परिवारों से उन्हें फिर से मिलाऊं।”

उन्होंने कहा, “वे भारत का असली चेहरा हैं, जिन्होंने हमारे घरों को बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है। उन्होंने अपने घर, अपने माता-पिता, अपने प्रियजनों को छोड़ दिया है और सिर्फ हमारे लिए ही इतनी कड़ी मेहनत करते हैं। आज, अगर हम उनका समर्थन करने के लिए आगे नहीं आते हैं, तो मुझे लगता है कि हमारे पास खुद को इंसान कहने का कोई अधिकार नहीं रहेगा है। हमें आगे आना होगा और अपनी सर्वाधिक क्षमताओं के साथ उनकी मदद करनी होगी। हम उन्हें सड़कों पर नहीं छोड़ सकते, हम उन्हें राजमार्गों पर मरते हुए नहीं देख सकते, हम उन छोटे बच्चों को उनके साथ चलने नहीं दे सकते, जो सोचते हैं कि उनके माता-पिता के लिए कोई नहीं है।”

–आईएएनएस

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