संयुक्त राष्ट्र, 28 सितंबर (आईएएनएस)| भारत ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के कश्मीर पर दिए नफरत भरे भाषण के बाद पलटवार करते हुए करारा जवाब दिया है। भारत ने कहा कि इमरान के भाषण में असभ्यता नजर आई है और पाकिस्तान ने जहां आतंकवाद को बढ़ावा दिया है और अपना निचला स्तर दिखाते हुए नफरत भरा भाषण दिया है, वहीं भारत जम्मू-कश्मीर में मुख्यधारा के विकास के साथ आगे बढ़ रहा है। इमरान के नफरत भरे संबोधन के खिलाफ कड़ा रुख दर्शाते हुए विदेश मंत्रालय की प्रथम सचिव विदिशा मैत्रा ने उनके भाषण पर भारत के जवाब देने के अधिकार का प्रयोग करते हुए कहा, “शायद ही कभी महासभा ने इस मंच पर अपनी बात रखने के अवसर का इस तरह से दुरुपयोग होते देखा हो, बल्कि अवसर का दुष्प्रयोग होते देखा है।”
उन्होंने कहा कि भारत पर हमला करने के लिए उन्होंने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया जैसे ‘तबाही’ ‘खून-खराबा’ ‘नस्लीय श्रेष्ठता’, ‘बंदूक उठाना’ और ‘अंत तक लड़ना’, एक मध्ययुगीन मानसिकता को दर्शाता है न कि 21वीं सदी के दृष्टिकोण को।
उसने कहा, “एक पुराने और अस्थायी प्रावधान – अनुच्छेद 370 जो भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर के विकास और एकीकरण में बाधा था, को हटाए जाने पर पाकिस्तान की नफरत भरी प्रतिक्रिया इस तथ्य की उपज है कि जो लोग जंग में यकीन करते हैं वे कभी भी शांति की किरण का स्वागत नहीं करते।”
उन्होंने कहा, “पाकिस्तान जब आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है और नफरत फैलाने वाला भाषण दे रहा है, ऐसे समय में भारत जम्मू-कश्मीर में मुख्यधारा के विकास के साथ आगे बढ़ रहा है।”
विदिशा मैत्रा ने आगे कहा, “भारत के लोगों को अपनी ओर से बोलने के लिए किसी और की जरूरत नहीं है, खासकर उन लोगों की बिल्कुल जरूरत नहीं है, जिन्होंने नफरत की विचारधारा पर आतंक का उद्योग खड़ा किया है।”
उन्होंने कहा कि इमरान का परमाणु हमले की धमकी देना उनकी अस्थिरता को दर्शाता है न कि राजनीतिज्ञता को।
मैत्रा ने कहा कि इस साल अगस्त में यूएन असेंबली के मंच से कहे गए हर शब्द के बारे में माना जाता है कि यह इतिहास में दर्ज होता है। दुर्भाग्य से आज हमने जो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से सुना, वह दोहरे शब्दों में दुनिया का एक कठोर चित्रण था जैसे..हम बनाम वे, गरीब बनाम अमीर, उत्तर बनाम दक्षिण, विकसित बनाम विकासशील, मुस्लिम बनाम अन्य।
इमरान को आड़े हाथ लेते हुए मैत्रा ने कहा कि इमरान जो कभी क्रिकेटर थे और ‘जेंटलमेंस गेम’ में यकीन रखते थे, उनका आज का भाषण असभ्यता पर पहुंच गया जो दर्रा आदम खेल की बंदूकों की तरह है।
उन्होंने कहा कि चूंकि पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षकों को इस बात की पुष्टि के लिए आमंत्रित किया है कि पाकिस्तान में कोई आतंकवादी संगठन नहीं है, दुनिया को उनसे इस वादे को पूरा करने के लिए कहना चाहिए।
मैत्रा ने कुछ सवाल भी दागे, जिनका जवाब पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्तावित सत्यापन के संबंध में दे सकता है।
उन्होंने पूछा, क्या पाकिस्तान इस तथ्य की पुष्टि कर सकता है कि उसके यहां संयुक्त राष्ट्र सूची में शामिल 130 आतंकवादी और 25 आतंकी संगठन मौजूद हैं?
क्या पाकिस्तान स्वीकारेगा कि पूरी दुनिया में सिर्फ उसकी ही सरकार संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित अल कायदा से ताल्लुक रखने वालों को पेंशन देती है?
क्या पाकिस्तान स्पष्ट कर सकता है कि यहां न्यूयॉर्क में उसे आतंकी गतिविधयों को वित्तीय मदद देने के लिए लाखों डॉलर का जुर्माना लगाए जाने के बाद अपने प्रमुख हबीब बैंक को क्यों बंद करना पड़ा?
क्या पाकिस्तान इस बात को नकार सकता है कि ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ ने 27 में 20 से अधिक मानकों के उल्लंघन के लिए इसे नोटिस दिया था?
और क्या प्रधानमंत्री इमरान खान इस न्यूयॉर्क शहर के सामने इनकार कर सकेंगे कि वह ओसामा बिन लादेन का खुलकर समर्थन करने वालों में रहे हैं?
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह ऐसा देश है, जहां अल्पसंख्यक समुदाय की संख्या 1947 के 23 फीसदी के मुकाबले घटकर अब महज 3 फीसदी रह गई है।
मैत्रा ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को इमरान खान नियाजी संबोधित करते हुए तीखे शब्दों में कहा कि उन्हें इतिहास की अपनी धुंधली समझ को स्पष्ट कर लेनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि 1971 में पाकिस्तान द्वारा अपने लोगों के खिलाफ किए गए जुल्म और उसमें लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाजी की भूमिका को नहीं भूलना चाहिए, एक ऐसा प्रमुख तथ्य जिसे आज दोपहर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने याद दिलाया।
खान के सरनेम नियाजी का उपयोग करके, जिसे वह लगाना नहीं पसंद करते हैं, भारत ने पाकिस्तान के नियाजी वंश के साथ उनके संबंध को उजागर किया है, और कहा कि इसके चलते वह संसद के अंदर भी ‘गो नियाजी गो बैक’ जैसे नारों का सामना कर रहे हैं।
नियाजी नाम पाकिस्तानियों को 1971 के युद्ध में भारत के हाथों अपनी अपमानजनक हार की याद दिलाता है, जिसके बाद बांग्लादेश अस्तित्व में आया था।
पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी ने 16 दिसंबर, 1971 को भारतीय सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के आगे हथियार डाल दिए थे।
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