विलुप्त हो रही भाषाओं में अहोम, एंड्रो, रंगकास, सेंगमई, तोलचा व अन्य शामिल हैं। ये सभी भाषाएं हिमालयन बेल्ट में बोली जाती है।
वहीं, 81 भारतीय भाषाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, जिसमें मणिपुरी, बोडो, गढ़वाली, लद्दाखी, मिजो, शेरपा और स्पिति शामिल हैं, लेकिन वे अभी भी ‘कमजोर’ श्रेणी में है और पुनरुद्धार के लिए संगठित प्रयास करने की जरूरत है।
दुनिया भर में फिलहाल करीब 7,000 भाषाएं हैं।
यूनेस्को के मुताबिक, “दुनिया की करीब 97 फीसदी आबादी इनमें से केवल 4 फीसदी भाषाओं की जानकारी रखती है, जबकि दुनिया के केवल 3 फीसदी लोग बाकी के 96 फीसदी भाषाओं की जानकारी रखते हैं।”
इन भाषाओं में ज्यादातर भाषाएं मूल निवासियों द्वारा बोली जाती है, लेकिन ये भाषाएं खतरनाक ढंग से विलुप्त होती जा रही है।
मूल निवासियों द्वारा बोली जानेवाली हजारों भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर है। आईवाईआईएल के अवसर पर विशेषज्ञों ने कहा कि हमें सदियों पुरानी भाषाओं के विनाश को रोकने की जरूरत है।
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