नई दिल्ली, 12 अप्रैल (आईएएनएस)। कम से कम समय में कई हजार लोगों का पता लगाने की अभूतपूर्व कवायद में इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के मल्टी एजेंसी सेंटर (मैक) पूरी तरह सफल रहे। मैक ने पिछले महीने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में इकट्ठा हुए और बाद में देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंचे कोविड-19 के संदिग्ध वाहकों की पहचान कर भारत को बड़े संकट से बचाया है।
यहां तक कि आईबी ने उन लोगों पर भी नजर रखी, जो जमात का हिस्सा नहीं थे लेकिन उस समय के दौरान मरकज के पास थे। यानी जब यह घातक वायरस आसपास के इलाके में फैल रहा था, उस समय वह इस इलाके में थे।
आईबी के शीर्ष सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि इन सभी लोगों की पहचान करने के लिए निजामुद्दीन क्षेत्र में स्थित कई मोबाइल टावरों की मदद से 14 मार्च से लेकर 22 मार्च तक का एक बड़ा डेटा निकाला गया, ताकि तबलीगी जमात मरकज के आसपास के क्षेत्र में उस दौरान हुए ‘मानव यातायात’ की सही पहचान हो सके, जहां विभिन्न तारीखों में लगभग 7000 जमाती इस धार्मिक बैठक के लिए एकत्रित हुए थे। इस पूरी कवायद की खास बात यह रही कि इसमें बहुत तेजी से निर्णय लिए गए और किसी भी गलती की कोई गुंजाइश नहीं रहने दी गई।
सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया, “मार्च के दूसरे सप्ताह में हमें निजामुद्दीन से शुरू होकर हैदराबाद पहुंचने वाली ट्रेन को लेकर एक शुरुआती खबर मिली। स्थानीय प्रशासन को पता चला कि इन ट्रेनों में सफर कर रहे ज्यादातर यात्री जमाती हैं और उनमें से कई कोविड-19 पॉजिटिव हैं। तब विजयवाड़ा के इंटेलिजेंस ब्यूरो के आईजी ने ऊपर तक ये डरावनी जानकारियां पहुंचाईं।”
20 मार्च तक मरकज से लौटकर आए 10 इंडोनेशियाई जामातियों की कोविड-19 जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आ गया था।
इस बीच, गृह मंत्रालय (एमएचए), दिल्ली पुलिस और दक्षिण पूर्व दिल्ली में संबंधित सिविक अधिकारियों को हाई अलर्ट पर रखा गया था। वहीं ग्राउंड जीरो पर, अधिकारियों ने पाया कि 23 मार्च तक 1500 जामातियों ने मरकज छोड़ दिया, लेकिन उनमें से 1,000 लोग इस घनी आबादी वाले निजामुद्दीन इलाके में बनी जमात की छह मंजिला इमारत में रुके हुए थे। तब आधिकारिक रजिस्टरों के माध्यम से, आईबी ने भारत के दक्षिणी राज्यों से तबलिगी जमात में आए लगभग 4,000 सदस्यों के मोबाइल नंबरों और पतों का पता लगाया जो 13 मार्च से मरकज की बैठक में शामिल हुए थे।
तब देश के अन्य हिस्सों में वायरस के प्रसार की संभावना को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के महामारी और संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने एमएचए को सुझाव दिया कि वे मार्च के दूसरे और तीसरे सप्ताह में इस भीड़ वाले निजामुद्दीन क्षेत्र में आने वाले सभी लोगों की पहचान करें और उनका कोविड-19 परीक्षण करें।
एक डीजी स्तर के आईपीएस अधिकारी ने कहा, “यह एक बहुत बड़ा टास्क था, जिसके बारे में वास्तव में विभाग में सुना भी नहीं गया था। हालांकि, सेलुलर फोन की मदद से आईबी के अधिकारियों ने ऑपरेशन शुरू किया। बहुत ही कम समय में बहुत विशाल डेटा को इकट्ठा करना पड़ा और उसका विश्लेषण करना पड़ा। फिर हमें इसे पूरे देश में प्रसारित करना था। ताकि उन लोगों का पता चल सके, जो मरकज के दौरान वहां आए थे।”
कोविड-19 के सामुदायिक प्रसारण को रोकने के लिए इंटेलिजेंस एजेंसी ने उन लोगों की एक जिलेवार सूची वितरित की जो धार्मिक सभा के दौरान निजामुद्दीन में और उसके आसपास के इलाके में स्पॉट किए गए थे। इसके बाद 30 मार्च तक संबंधित जिलों के पुलिस अधिकारियों को हजारों नाम, मोबाइल नंबर और पते वाली सूचियां भेजी गई थीं।
झाझर रेंज, हरियाणा के पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) अशोक कुमार ने आईएएनएस को बताया, “हमें दिल्ली के उस क्षेत्र में गए लोगों के फोन नंबर और पते का खुलासा करने वाला एक पत्र मिला है। हमने इन लोगों का पता लगाया है और स्वास्थ्य अधिकारियों को आवश्यक परीक्षण करने के लिए सूचित किया है।”
उन्होंने आगे कहा, “अधिकांश लोग, निजामुद्दीन के आसपास के क्षेत्रों में, व्यापार से संबंधित कार्यों के लिए वहां गए थे। फिर भी हमने उनका परीक्षण किया है।”
इसी तरह के पत्र हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना के अन्य जिलों में इंटेलीजेंस ब्यूडरो के मैक द्वारा भेजे गए हैं, जिनमें उन लोगों के नाम दिए गए हैं जो निजामुद्दीन इलाके के आसपास ट्रैस किए गए थे।
आईबी के एसएमएसी (सब्सिडियरी मल्टी एजेंसी सेंटर) के माध्यम से मिले आंकड़ों के आधार पर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड पुलिस ने ऐसे कई जमातियों का पता लगाया है। यह सेंटर राज्य पुलिस के साथ खुफिया जानकारी साझा करता है। कोविड-19 के कुछ साइलेंट कैरियर में जिनमें से अधिकांश लोग जमाती और उनके परिजन थे, उनको आइसोलेट किया गया और उनके परीक्षण किए गए। ऐसे जमाती जो पकड़ में नहीं आए थे, उन्हें ट्रैक किया गया और फिर क्वा रंटाइन किया गया।
उत्तर प्रदेश की बरेली रेंज के डीआईजी राजेश कुमार पांडे ने कहा, “हमें भी मरकज के आसपास के क्षेत्र का दौरा करने वाले लोगों के बारे में सटीक जानकारी मिली थी। हमने बाद में इन लोगों का पता लगाया और उनके चिकित्सा परीक्षण किए। इस पूरी कवायद ने वास्तव में देश को इस घातक वायरस के खतरे से निपटने में बहुत मदद की है, अन्यथा इसका असर भयावह हो सकता था।”
–आइईएनएस
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