जाति-सम्मान के आगे नहीं झुक सकते जीवन-साथी चुनने वाले युवा : सुप्रीम कोर्ट

Follow न्यूज्ड On  

नई दिल्ली, 12 फरवरी (आईएएनएस)। संविधान-निर्माता बी.आर. अम्बेडकर का मानना था कि जाति की बंदिश तोड़ने का निदान अंतर-विवाह है। उनके इसी विचार को दोहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपने जीवन साथी का चयन करने वाले युवा लड़के और लड़कियां जाति-सम्मान या सामुदायिक सोच की अवधारणा के आगे नहीं झुक सकते।

जस्टिस संजय किशन कौल और हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा कि शिक्षित युवा लड़के और लड़कियां आज समाज के उन मानदंडों से इतर होकर अपने जीवन साथी चुन रहे हैं जिसमें जाति और समुदाय की प्रमुख भूमिका होती थी।

पीठ ने इसे एक प्रगतिशील दृष्टिकोण बताया और कहा कि इससे अंतर-विवाह द्वारा उत्पन्न जाति और सामुदायिक तनाव में कमी आ सकती है।

पीठ ने यह भी कहा कि हम इस न्यायालय के पहले के न्यायिक फैसलों से और दृढ़ हो गए हैं जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि जब दो वयस्क व्यक्ति शादी के बंधन में बंधना चाहते हैं तो परिवार, समुदाय या खानदान की सहमति आवश्यक नहीं है। उन दोनों की सहमति को प्रमुखता दी जानी चाहिए।

पीठ ने कहा कि विवाह की अंतरंगता गोपनीयता में अंतर्निहित होती है जिसमें धर्म, आस्था का भी उन पर कम ही फर्क पड़ता है। संविधान के अनुच्छेद 21 में एक वयस्क व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार प्रदत्त है।

गौरतलब है कि कुछ अर्सा पहले कर्नाटक में एक व्यक्ति ने थाने में अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। उस लड़की ने अपने पिता को सूचित किए बगैर अपनी मर्जी से उत्तर भारत में रहने वाले एक व्यक्ति से शादी कर ली। इस घटना की जानकारी मिलने के बाद जांच अधिकारी ने लड़की से थाने में हाजिर होकर अपना बयान दर्ज कराने के लिए कहा ताकि मामले को रफा-दफा किया जा सके। साथ ही अधिकारी ने उसे इस बात की भी ताकीद कि अगर उस लड़की ने थाने आकर अपना बयान दर्ज नहीं कराया तो उसके पति के खिलाफ अपहरण का मामला भी दर्ज किया जा सकता है।

पुलिस द्वारा गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दिए जाने के बाद दंपति ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई। अधिकारी द्वारा लड़की को कार्रवाई की चेतावनी दिए जाने के कारण कोर्ट ने उसे फटकार लगाई।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति की पसंद गरिमा का एक अटूट हिस्सा है और गरिमा के लिए यह नहीं सोचा जा सकता है कि पसंद का क्षरण कहां है।

कोर्ट ने कहा कि इस तरह के अधिकार या पसंद जाति-सम्मान या सामुदायिक सोच की अवधारणा के आगे नहीं झुक सकते।

लड़की के पिता द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि कोर्ट अपेक्षा करता है कि अगले आठ हफ्तों में इस तरह के सामाजिक संवेदनशील मामलों को कैसे निपटाया जाए – इस पर कुछ दिशानिर्देश और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि लड़की के परिवार को शादी को स्वीकार करना चाहिए और दंपति के साथ सामाजिक संपर्क को फिर से स्थापित करना चाहिए। जाति और समुदाय की आड़ में बच्चे और दामाद को अलग करना शायद ही एक वांछनीय सामाजिक कवायद होगी।

–आईएएनएस

एसआरएस-एसकेपी

Share

Recent Posts

जीआईटीएम गुरुग्राम ने उत्तर भारत में शीर्ष प्लेसमेंट अवार्ड अपने नाम किया

नवीन शिक्षण पद्धतियों, अत्याधुनिक उद्यम व कौशल पाठ्यक्रम के माध्यम से, संस्थान ने अनगिनत छात्रों…

March 19, 2024

बिहार के नींव डालने वाले महापुरुषों के विचारों पर चल कर पुनर्स्थापित होगा मगध साम्राज्य।

इतिहासकार प्रोफ़ेसर इम्तियाज़ अहमद ने बिहार के इतिहास पर रौशनी डालते हुए बताया कि बिहार…

March 12, 2024

BPSC : शिक्षक भर्ती का आवेदन अब 19 तक, बिहार लोक सेवा आयोग ने 22 तक का दिया विकल्प

अब आवेदन की तारीख 15 जुलाई से 19 जुलाई तक बढ़ा दी गई है।

July 17, 2023

जियो ने दिल्ली के बाद नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद में ट्रू5जी सर्विस शुरु की

पूरे दिल्ली-NCR में सर्विस शुरु करने वाला पहला ऑपरेटर बना

November 18, 2022

KBC 14: भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान कौन थे, जिन्होंने इंग्लैंड में भारत को अंतिम बार एक टेस्ट सीरीज जिताया था?

राहुल द्रविड़ की अगुवाई में टीम इंडिया ने 1-0 से 2007 में सीरीज़ अपने नाम…

September 23, 2022