नई दिल्ली, 17 अप्रैल (आईएएनएस)| न्यायाधीश (सेवानिवृत) आर.एम. लोढ़ा ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के प्रबंधन में जब सुधार की सिफारिशें दी थीं तब उन्होंने हितों के टकराव पर ज्यादा जोर दिया था।
लोकपाल डी.के.जैन ने सौरभ गांगुली से बंगाल क्रिकेट संघ (सीएबी) का अध्यक्ष रहने के साथ-साथ आईपीएल टीम दिल्ली कैपिटल्स के सलाहकार का पद कबूल करने पर जो सफाई मांगी है वह भी लोढ़ा समिति की सिफारिशों के अंतर्गत अपनाए गए नियमों के दायर में मांगी है।
हालांकि, पूर्व न्यायाधीश इस बात से हैरान हैं कि उनकी सिफारिशें लागू करने में लापरवाही बरती गई।
लोढ़ा को ऐसा तब लगा जब बीसीसीआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) राहुल जौहरी ने लोकपाल को लिखा कि अगर भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सारी जानकारी साफ तौर पर बता देते हैं तो लोकपाल उन्हें उनके पद पर बने रहने दें। जौहरी ने बोर्ड की तरफ से जैन को लिखा की अगर गांगुली हितों के टकराव के मामले में अपने सभी पक्षों को साफ कर देते हैं तो उन्हें उनके पद पर बने रहने दिया जाए।
लोढ़ा मानते हैं कि यह साफ तौर पर लोकपाल के काम में दखल देना है जिससे वो बिल्कुल भी इत्तेफाक नहीं रखते।
लोढ़ा ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि जौहरी ने जो किया है वो बताता है कि एक इंसान किस तरह अपने पद का इस्तेमाल करके बीसीसीआई के पारदर्शी कामकाज में दखल दे सकता है।
उन्होंने कहा, “सही है (यह दखल देना है)। देखिए जिन लोगों पर नियमों को लागू करने की जिम्मेदारी है, अगर वही इसे हल्के में ले लेंगे तो फिर भगवान ही मालिक है। मैं इस पर क्या कहूं? मेरा पूरा विचार मटियामेट कर दिया गया। अगर वह हितों के टकराव में रियायत बरतते हैं तो यह दुख की बात है।”
लोढ़ा की बात पर सहमति जताते हुए बीसीसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि लोढ़ा समिति कुछ मामलों में आगे चली गई थी और ऐसा भी प्रतीत हुआ कि एक व्यवस्था के बजाए व्यक्ति पर ध्यान केंद्रित हो रहा है, लेकिन यह सब मायने नहीं रखता क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला अंतिम है।
उन्होंने कहा, “देखिए, लोढ़ा समिति की पूरी सिफारिशें हितों के टकराव के उन्मूलन पर आधारित थीं। मुझे लगता है कि लोढ़ा समिति इसे बताने में कुछ आगे चली गई कि हितों का टकराव है क्या। ऐसा भी लगा कि समस्या को संबोधित करने के बजाए व्यक्ति को बाहर करने पर जोर दिया जा रहा है। मुझे ऐसा भी लग रहा है कि वह उस खेल के वातावरण को बनाए रखने में कामयाब नहीं हो पाए जो अच्छा कर रहा था।”
उन्होंने कहा, “लेकिन, जो मैं या कोई अन्य शख्स सोच रहा है उसकी कोई अहमियत नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया है, उसे लागू किया जाना चाहिए। अगर इस तरह का पत्र (जौहरी का जैन को लिखा गया पत्र) गया है तो यह नियमों के खिलाफ है, लेकिन हितों के टकराव में (लोधा समिति सुधारों के उल्लंघन में) हो सकता है कि यह शायद सही हो।”
उन्होंने कहा, “हम सभी जानते हैं कि यह नियम कितना मुश्किल था। हम सभी जानते थे कि असल टकराव का मुद्दा हितधारकों और फैसले लेने वाले के सामने है। हमने इस मुद्दे को लगातार उठाया था, लेकिन इसे लगातार नजरअंदाज किया गया।”
अधिकारी ने कहा, “हमसे कहा गया था कि हम अपने निजी लाभ के कारण इसकी मुखालफत कर रहे हैं लेकिन अब जबकि प्रशासकों की समिति (सीओए) के आदेश पर सीईओ ने पत्र लिखा है तो यह हमारे पक्ष को रखता है और उसे मजबूत करता है।”
एक और अधिकारी ने कहा कि मेल भेजना प्रक्रिया को बिगाड़ना है। उन्हें लगता है कि इसकी भी जांच होनी चाहिए।
अधिकारी ने कहा, “मेल एथिक्स अधिकारी को लिखा जाना चाहिए था या नहीं, यह एक अलग मुद्दा है। उनका मेल लिखना प्रक्रिया के खिलाफ है क्योंकि यह अधिकारी के काम में दखल देने जैसा है।”
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