Javed Akhtar Birthday: ये हैं जावेद अख्तर के कुछ बेहतरीन शेर

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बॉलीवुड के प्रसिद्ध गीतकार और शायर जावेद अख्तर को आज किसी पहचान की जरूरत नहीं है। गज़लों को आसान रूप देने में जावेद साहब का बहुत बड़ा योगदान है। सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी ने शोले, ज़ंजीर और न जाने कितनी कालजयी फ़िल्मों की पटकथा साथ में लिखी थी। इस जोड़ी को सिनेमा में सलीम-जावेद के नाम से भी जाना जाता है। जावेद साहब को वर्ष 1999 को पद्म भूषण और 2007 में पद्म भूषण से नवाजा जा चुका है।

जावेद अख्तर का जन्म 17 जनवरी 1945 को ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता जान निसार अखतर शायर और माता सफिया अखतर मशहूर उर्दु लेखिका तथा शिक्षिका थीं। जब जावेद साहब की उम्र कम थी तभी उनकी मां का निधन हो गया था। माँ के इंतकाल के बाद वह कुछ दिन अपने नाना-नानी के पास लखनऊ में रहे उसके बाद वो अलीगढ अपने खाला के घर रहने लगे। जहाँ के स्कूल में उनकी शुरूआती पढाई हुई। उसके बाद वह वापस भोपाल आ गये, यहाँ आकर उन्होंने अपनी पढाई को पूरा किया। जावेद अख्तर की पहली पत्नी हनी ईरानी थीं। जिनसे उन्हें दो बच्चे है फरहान अख्तर और जोया अख्तर हैं। उनकी दूसरी शादी हिंदी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री शबाना आजमी से की थी।

जावेद अख्तर ने अपने करियर की शुरुआत सरहदी लूटेरा की थी। इस फिल्म में सलीम खान ने छोटी सी भूमिका भी अदा की थी। इन दोनों की जोड़ी ने वर्ष 1971-1982 तक करीबन 24 फिल्मों में साथ किया जिनमे सीता और गीता, शोले, हठी मेरा साथी, यादों की बारात, दीवार जैसी फिल्मे शामिल हैं। उनकी 24 फिल्मों में से करीबन 20 फ़िल्में बॉक्स-ऑफिस पर ब्लाक-बस्टर हिट साबित हुई थी।

1987 में प्रदर्शित फिल्म मिस्टर इंडिया के बाद सलीम-जावेद की सुपरहिट जोड़ी अलग हो गई। इसके बाद भी जावेद अख्तर ने फिल्मों के लिए संवाद लिखने का काम जारी रखा। जावेद अख्तर को मिले सम्मानों को देखा जाए तो उन्हें उनके गीतों के लिए आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 1999 में साहित्य के जगत में जावेद अख्तर के बहुमूल्य योगदान को देखते हुए उन्हें पदमश्री से नवाजा गया। 2007 में जावेद अख्तर को पदम भूषण सम्मान से नवाजा गया। आइए जावेद साहब के जन्मदिन के मौके पर पढ़ते हैं उनके कुछ बेहतरीन शेर।

ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ायदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता

ये ज़िंदगी भी अजब कारोबार है कि मुझे
ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का

बिछड़ के डार से बन बन फिरा वो
हिरन को अपनी कस्तूरी सज़ा थी

बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी
ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया

दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं
ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं

यही हालात इब्तिदा से रहे
लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे

छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था
अब मैं कोई और हूं वापस तो आ कर देखिए

दर्द अपनाता है पराए कौन
कौन सुनता है और सुनाए कौन

मैं कब से कितना हूं तन्हा तुझे पता भी नहीं
तिरा तो कोई ख़ुदा है मिरा ख़ुदा भी नही

मेरे अल्फ़ाज़ में जो रंग है वो उस का है
मेरे एहसास में जो है वो फ़ज़ा उस की है

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