झारखंड : बूढ़ी बाघिन की मौत पर हड़कंप, तरह तरह के तर्क

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लातेहार (झारखंड), 17 फरवरी (आईएएनएस)| झारखंड में लातेहार जिले के बेतला राष्ट्रीय पार्क में रविवार को एक बाघिन की मौत के बाद पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) क्षेत्र में हड़कंप मच गया है। इस बाघिन की मौत को भले ही वन विभाग के अधिकारी स्वाभाविक और बायसन के झुंड से लड़ाई का कारण मान रहे हैं, मगर पीटीआर की स्थिति को लेकर सवाल उठने लगे हैं।

अधिकारियों के अनुसार, मृत बाघिन चार महीने पूर्व ही छत्तीसगढ़ के जंगल से लौट आई थी। कथित तौर पर बाघ की प्रवृत्ति होती है कि वे स्वाभाविक मृत्यु से पूर्व अपने जन्मस्थान पर पहुंच जाते हैं।

पीटीआर के क्षेत्रीय निदेशक यतींद्र दास ने कहा, “उक्त बाघिन चार महीने पूर्व बेतला आई थी। बाघों की यह प्रवृत्ति होती है कि वह स्वाभाविक मृत्यु से पूर्व अपने जन्म स्थान पर पहुंच जाते हैं। बाघ की अधिकतम आयु 16 से 18 वर्ष तक की होती है। बाघों की प्रवृत्ति होती है कि उसका बचपन जहां गुजरता है, वहीं पर वे अपने अंतिम समय में भी पहुंच जाते हैं। वे उक्त स्थान के चप्पे-चप्पे से वाकिफ होते हैं और ऐसी जगह खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं।”

उन्होंने कहा कि इसकी संभावना काफी अधिक है कि उक्त बाघिन का जन्म बेतला में हुआ हो।

दास ने कहा कि जिस बाघिन की बेतला में मौत हुई है, वह बूढ़ी हो चुकी थी और उसके पंजे भी घिस गए थे, और वह बड़ा शिकार करने में भी सक्षम नहीं थी।

वन्यजीव विशेषज्ञ डी. एस. श्रीवास्तव ने आईएएनएस को बताया, “बाघ की प्रवृत्ति पर वंशानुगत प्रभाव काफी पड़ता है। बचपन में मां के साथ एक साल गुजारे गए समय और स्थान को कोई बाघ नहीं भूल पाता है।”

उन्होंने इसे हालांकि पूरी तरह वैज्ञानिक नहीं बताया, मगर इतना जरूर कहा कि बाघ का व्यवहार ही ऐसा होता है कि वह अपने अंतिम समय में अपने जन्मस्थान पर पहुंचना चाहता है।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में जारी नवीनतम राष्ट्रीय बाघ गणना के आंकड़ों के अनुसार, राज्य के एकमात्र ब्याघ्र आरक्ष में बाघों की कोई मौजूदगी नहीं है। पीटीआर लातेहार और गढ़वा जिले में 1129 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।

बाघिन की मौत के बाद आई पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हवाले से सूत्रों ने कहा कि बाघिन की पीठ पर चोट के निशान मिले हैं और इस आधार पर कहा जा सकता है कि बायसन ने बाघिन को उठाकर पटक दिया होगा। बाघिन 16 साल से अधिक उम्र की थी और उसके नाखून व दांत भी टूट चुके थे।

गौरतलब है कि एक सप्ताह पूर्व वन विभाग के बड़े अधिकारियों की पीटीआर में बाघों की संख्या बढ़ाने को लेकर मैराथन बैठक हुई थी। इस बैठक में पीटीआर के समक्ष आ रही मुख्य चुनौतियों की पहचान करने और उनके निदान खोजने पर चर्चा हुई थी।

पलामू टाइगर रिजर्व की स्थापना 1973 में हुई थी। पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक प्रदीप कुमार की पुस्तक ‘मैं बाघ हूं’ के मुताबिक, “प्रारंभ में इस क्षेत्र में 22 बाघ थे, उसके बाद यहां इनकी संख्या में गिरावट आती गई। यहां वर्ष 2010 में 10 और 2014 में तीन बाघ ही बचे थे।”

 

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