लातेहार (झारखंड), 25 नवंबर (आईएएनएस)| यूं तो देशभर में मुसलमानों में ‘तलाक’ को लेकर जमकर राजनीति हो रही है, मगर शरीयत में हराम समझे जाने वाले दहेज को लेकर कभी किसी राजनीतिक दलों द्वारा ठीक ढंग से पहल नहीं की गई। इससे अलग झारखंड के लातेहार जिले के पोखरी कला में दहेज के खिलाफ चला अभियान आज पूरे झारखंड में नई रौशनी दिखा रहा है।
पोखरी कला गांव के 62 वर्षीय हाजी मुमताज अली दहेज के खिलाफ ऐसी मुहिम चला रहे हैं, जिसमें अब तक 800 से ज्यादा परिवारों से दहेज की राशि वापस कराई गई है।
लातेहार जिला के पोखरी गांव के रहने वाले जाकिर अंसारी की पुत्री साजदा परवीन की शादी इस्लामपुर गांव के सलीम अंसारी के पुत्र से हुई थी। दहेज के रूप में 1़50 लाख रुपये की मांग के बाद लड़की वालों ने उनकी मांग पूरी की थी। इसके बाद दहेज के खिलाफ मुहिम चल रहे हाजी मुमताज अली की पहल पर शादी के दिन ही दहेज में दी गई पूरी राशि वापस की गई।
मोहम्मद जाकिर बताते हैं कि गांव में दहेज का लेनदेन आम था, इसीलिए उन्होंने भी नकद रुपये देना सही समझा।
जाकिर कहते हैं, “जब दहेज के खिलाफ मुहिम चली तो मेरे समधी ने मुझे दहेज की रकम लौटा दी। मुझे लगता है कि उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि दहेज लेना गलत है और उसके बाद उन्होंने सार्वजनिक तौर पर दहेज लौटाने का फैसला किया।”
इसके अलावे पोखरी खुर्द गांव के रहने वाले हदीस अंसारी ने भी अपनी पुत्री रुखसाना खातून के विवाह में लड़के वालों गढ़वा जिला के बेरमा बभंडी निवासी सईद मियां के पुत्र सदरे आलम को दी थी। रुखसाना आज अपने पति के साथ खुश है।
रुखसाना बताती है, “दहेज के रूप में अब्बा ने कर्जकर उनकी मांग पूरी की थी, मगर शादी से पहले ही समाज के दबाव में पैसा वापस कर दिया गया। आज मुझे फा है कि मैं ऐसे घर की बहू हूं, जिसने अपनी गलती को सुधार करने में हिचक नहीं रखी।”
ऐसा नहीं कि यह कहानी सिर्फ दो परिवारों की है। हाजी मुमताज अली की पहल पर अब तक 800 परिवारों ने ली गई दहेज की राशि वापस की है।
62 वर्षीय हाजी मुमताज अली ने मुस्लिम समाज में दहेज की मांग के खिलाफ इस अभियान की शुरुआत की। दरअसल, हाजी मुमताज को इस अभियान का विचार तब आया, जब लोग अक्सर उनके पास दहेज के लिए मदद मांगने आते।
हाजी मुमताज ने आईएएनएस को बताया, “सबसे पहले तो मैंने अपने आसपास के लोगों को इकट्ठा कर इस सामाजिक बुराई के बारे में बताया और कहा कि दहेज के रूप में नकद की मांग के खिलाफ हमें कोई कदम उठाना चाहिए, वहां जमा सभी लोगों ने इसका समर्थन किया। इसके बाद हमने एक महासम्मेलन कर दहेज मांगने वालों के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार का ऐलान किया।”
दहेज मांगने वालों के खिलाफ सख्ती के लिए जो लड़के वाले दहेज मांगते हैं उनकी बारात में गांव के लोगों के शामिल नहीं होने का निर्णय लिया गया तथा जिस गांव में बारात जाएगी वहां के काजी के भी निकाह नहीं पढ़ने पर सहमति बनी।
बकौल हाजी, “इस अभियान का नतीजा यह रहा कि अप्रैल 2016 से शुरू ‘मुतालबा-ए-दहेज’ और ‘तिलक रोको अभियान’ की मदद से छह करोड़ रुपये लड़की वालों को लौटा, गए।”
हाजी अली कहते हैं कि जबरदस्ती या मांगकर ली गई रकम शरीयत के हिसाब से हराम है। इससे तो विवाह भी वैध नहीं माना जाएगा।
वे कहते हैं कि वर्तमान समय में उनका यह अभियान पलामू प्रमंडल के तीन जिलों पलामू, लातेहार और गढ़वा में चल रहा है, लेकिन इसका प्रभाव झारखंड के अन्य क्षेत्रों में भी देखने को मिल रहा है। उन्होंने दावे के साथ कहा कि अन्य धर्म के लोगों में इस अभियान का प्रभाव देखा जा रहा है।
इस्लाम के जानकार मौलाना हनाम मुसवाही का कहना है, “कुरान में कहीं भी दहेज का जिक्र नहीं है, बल्कि इस्लाम में लड़कियों को संपत्ति में हक देने का हुक्म है। दहेज लेना और देना शरीयत के खिलाफ तो है ही, साथ ही यह एक कुप्रथा भी है जिसे जल्द खत्म होने की जरूरत है।”
हाजी मुमताज के सहयोगी और दहेज विरोधी अभियान चला रहे मौलाना महताब आईएएनएस से कहते हैं कि इस अभियान के बाद लोग दहेज और नकद की मांग करने से डरते हैं और सोचते हैं कि गांव के लोगों को पता चल जाएगा कि हमने दहेज की मांग की है तो हमारी बेइज्जती तो होगी ही, साथ ही हमारा सामाजिक बहिष्कार भी हो जाएगा।
उन्होंने कहा, “इस अभियान के बाद लोगों की दहेज देने और लेने के बारे में सोच बदली है। लोग अब अपनी बेटियों को शिक्षित करने की ओर उन्मुख हुए हैं। यह इस अभियान की सफलता को दर्शाता है।”
हाजी मुमताज अली के इस अभियान में अब इस प्रमंडल के 3,000 से ज्यादा गांव के लोग जुड़े हुए हैं। भविष्य में अपनी योजनाओं के विषय में उनका कहना है कि इस अभियान को वे झारखंड के अन्य क्षेत्रों में भी ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि दहेज वापसी में कई घर उजड़ने से बच जा रहे हैं।
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