झारखंड के चुनावी मैदान में ‘रणकौशल’ दिखा रहे नौकरशाह, कुछ को मिला टिकट तो कुछ की अधूरी रही मुराद

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रांची। झारखंड में नौकरशाहों को नौकरी छोड़कर या सेवानिवृत्त होकर राजनीति के मैदान में आना कोई नई बात नहीं है। झारखंड विधानसभा के इस चुनाव में भी कई पूर्व अधिकारी चुनावी मैदान में भाग्य आजमा रहे हैं, जबकि कई पूर्व अधिकारी संबंधित पार्टियों से टिकट नहीं मिलने से मायूस हैं।

झारखंड की सियासी जमीन नौकरशाहों के लिए प्रारंभ से ही उपजाऊ रही है, परंतु कई नौकरशाह अभी भी अपेक्षित सफलता के इंतजार में हैं। इस चुनाव में कई पूर्व नौकरशाह कई सीटों पर विभिन्न पार्टियों की ओर मैदान में पसीना बहा रहे हैं।

झारखंड के लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र में दो नौकरशाह आमने-सामने हैं। भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी और कांग्रेस के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव जहां यहां से चुनावी मैदान हैं, वहीं उनके सामने झारखंड लोकसेवा आयोग के पूर्व अधिकारी सुखदेव भगत भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर भाग्य आजमा रहे हैं। सुखदेव पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे, परंतु चुनाव के कुछ ही दिन पहले वह भाजपा में शामिल हो गए।

पूर्व अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) रेजी डुंगडुंग झारखंड पार्टी के टिकट पर सिमडेगा से, जबकि भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद भाजपा के टिकट पर राजधनवार से और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे जे.बी तुबिद भाजपा के टिकट पर चाईबासा से चुनाव लड़ रहे हैं।

ये नौकरशाह तो चुनावी मैदान में अपनी जीत के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं, परंतु कई अधिकारी ‘नेता’ तो बन गए, लेकिन जनप्रतिनिधि बनने की उनकी मुराद अभी तक पूरी नहीं हो सकी है। पूर्व पुलिस महानिदेशक डी क़े पांडेय ऐसे ही अभागे अधिकारी हैं। वह टिकट की उम्मीद में भाजपा में शामिल होकर ‘नेता’ तो बन गए, परंतु उनकी मुराद धरी की धरी रह गई।

ऐसे ही भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी अरुण उरांव ने कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़कर भाजपा का ‘कमल’ थाम लिया, परंतु उन्हें भी निराश होना पड़ा है। उन्हें भी टिकट नहीं मिला। हालांकि भाजपा ने इन्हें अनुसूचित जनजाति मोर्चा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जरूर बना दिया है।

पूर्व पुलिस महानिदेशक राजीव कुमार भी ऐसे ही लोगों में शामिल हैं। राजीव कुमार को कांग्रेस ने रांची के कांके से प्रत्याशी बना दिया, परंतु कार्यकर्ताओं के विरोध के कारण उनके सपने पूरे नहीं हो सके, और अंत में कांग्रेस ने वहां से दूसरा उम्मीदवार उतार दिया।

भारतीय प्रशासनिक सेवा की पूर्व अधिकारी सुचिता सिन्हा को भी भाजपा ने ‘बेटिकट’ रखा। सिन्हा अक्टूबर में भाजपा में शामिल हुई थीं, परंतु उन्हें टिकट नहीं मिल सका।

झारखंड में नौकरशाहों की राजनीतिक भूख कोई नई बात नहीं है। इससे पहले पूर्वी सिंहभूम के जिला मुख्यालय जमशेदपुर में एक अच्छे पुलिस अधिकारी की छवि बना चुके अमिताभ चौधरी भी पुलिस की नौकरी छोड़ 2014 में राजनीति में कूद गए। राजनीति में आने के बाद उनके भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से चुनाव लड़ने की चर्चा हुई, लेकिन जब भाजपा ने उन्हें मौका नहीं दिया तो वह झाविमो में शामिल हो गए और रांची लोकसभा सीट से चुनाव भी लड़े, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। हालांकि वह झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन से जुड़े रहे।

पूर्वी सिंहभूम में 90 के दशक में पुलिस अधीक्षक के रूप में पदस्थापित डॉ. अजय कुमार ने इस्तीफा देकर राजनीति को लोगों की सेवा का माध्यम बनाया। अजय झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के टिकट पर लोकसभा उपचुनाव (2011 में) लड़े, और भारी मतों से विजयी हुए, लेकिन उन्हें झाविमो रास नहीं आया और वह कांग्रेस में शामिल हो गए।

कांग्रेस ने भी उनपर विश्वास जताते हुए प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी। परंतु कांग्रेस से भी उनका मोहभंग हो गया और फिर वह कांग्रेस को छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए।


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This post was last modified on November 27, 2019 6:16 PM

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