झारखंड: भाजपा उम्मीदवारों की आज हो सकती है घोषणा, इन नेताओं का कट सकता है टिकट

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भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए 184 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। गुरुवार को दिल्ली में केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया। इसके साथ ही अन्य राज्यों में भी भाजपा उम्मीदवारों की घोषणा की संभावना बढ़ गई है।

लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा में उम्मीदवारों के चयन का काम तेजी से चल रहा है। ऐसे में झारखंड की सीटों से भाजपा उम्मीदवारों का फैसला शुक्रवार को हो सकता है। नई दिल्‍ली में भाजपा चुनाव समिति की बैठक में इसकी घोषणा की जा सकती है। इससे पहले मंगलवार को नई दिल्ली में हुई पार्टी की बैठक में बड़े राज्यों के उम्मीदवारों पर चर्चा हुई, जहां पहले और दूसरे चरण में मतदान है। झारखंड में मतदान की शुरुआत चौथे चरण से होनी है इसलिए इस पर फैसला टाला गया थ। हालांकि सूत्रों का दावा है कि टिकट बंटवारे की प्रक्रिया भाजपा में पूरी कर ली गई है।

टिकट बंटवारे को लेकर दिल्ली- रांची में हुआ है काफी मंथन

प्रदेश भाजपा ने संभावित प्रत्याशियों पर रांची के साथ-साथ दिल्ली में भी काफी मंथन किया है और सूची केंद्रीय चुनाव समिति को सौंप दी है। मुख्यमंत्री रघुवर दास चुनाव से संबंधित चर्चाओं में शीर्ष नेताओं के साथ शामिल हुए थे। पार्टी सूत्रों के अनुसार भाजपा झारखंड में महागठबंधन के प्रत्याशियों का चेहरा सामने आने के बाद ही अपने पत्ते खोलने की जुगत में है।

दरअसल, झारखंड में भाजपा का सीधा मुकाबला महागठबंधन से ही होगा। आमने-सामने के मुकाबले में वोटों के बंटवारे की संभावना भी कम रहती है। इसीलिए महागठबंधन को लेकर भाजपा कुछ ज्यादा ही गंभीर है। हालांकि प्रत्यक्ष तौर पर भाजपा महागठबंधन की चुनौती को नकार रही है और एनडीए के सभी 14 सीटों पर जीत का दावा भी कर रही है।

टिकट बंटवारे ने कई नेताओं की बढ़ाई बेचैनी

वहीं टिकट बंटवारे के इस माहौल में कुछ सांसदों की चिंता भी बढ़ गई है। ऐसी संभावना है कि आधा दर्जन के करीब भाजपा सांसदों के टिकट कट सकते हैं। कुछ के संसदीय क्षेत्र को बदलने की भी बात चल रही है। अभी तक टिकट कटने को लेकर जो प्रमुख कारण सामने आ रहे हैं उनमें अधिक उम्र से लेकर संगठन और आरएसएस की पसंद-नापसंद भी शामिल है।

राज्य सरकार से बेहतर संबंध नहीं होना और रघुवर सरकार की नीतियों की आलोचना अथवा सार्वजनिक तौर पर अवहेलना करना भी सांसदों पर भारी पड़ सकता है। पार्टी सूत्रों की मानें तो सबसे बड़ा कारण उम्रदराज होना ही है और पार्टी यह मानकर चल रही है कि संगठन मजबूत होगा तो कोई भी जीत जाएगा। लंबे समय से पार्टी के वरिष्ठ नेता और 8 बार के सांसद कडिय़ा मुंडा के टिकट कटने की चर्चा चल रही है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह उनकी अधिक उम्र है। इसके अलावा वे कई बार राज्य सरकार की नीतियों (खासकर CNT एक्ट में संशोधन और स्थानीय नीति पर सरकार के रुख) का विरोध कर चुके हैं।

रांची, धनबाद, पलामू और लोहरदगा सांसदों पर संकट

वहीं रांची सांसद रामटहल चौधरी और धनबाद सांसद पीएन सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही मामला सामने आ रहा है। स्कूलों का मर्जर करने के केंद्र के आदेश के खिलाफ पत्र सार्वजनिक करनेवाले सांसद भी निशाने पर रहेंगे। सार्वजनिक मंचों से राज्य सरकार की नीतियों की आलोचना को केंद्रीय संगठन ने गंभीरता से लिया है। इसके अलावा चतरा सांसद के क्षेत्र बदलने की भी बात चल रही है।

भाजपा सूत्रों की मानें तो पलामू सांसद को संगठन से दूरी बरतने की सजा मिल सकती है। मृदुभाषी लोहरदगा सांसद को लेकर भी संशय है और उन्हें बदलने पर विचार चल रहा है। मोदीलहर में सबसे कम अंतर से जीत दर्ज करनेवालों में शामिल लोहरदगा सांसद यहां विधानसभा उपचुनाव में राजग उम्मीदवार के लिए कुछ खास नहीं कर पाए और नतीजा यह रहा कि कांग्रेस को जीत मिल गई। अभी हाल ही में जिस प्रकार भाजपा सांसदों के टिकट कटे हैं उससे इन दावों को भी बल मिल रहा है।

इन पांच कारणों से कट सकते हैं टिकट

  • उम्रदराज होना
  • संगठन और आरएसएस से दूरी
  • उपचुनावों में भाजपा-राजग प्रत्याशी की हार
  • पार्टी कार्यक्रमों में कम भागीदारी
  • अपनी ही सरकार की नीतियों की आलोचना

इन सांसदों को टिकट पर है संशय

खूंटी कडिय़ा मुंडा

  • उम्रदराज हैं, 83 साल में चलने-फिरने में भी कठिनाई।
  • राज्य संगठन से दूरी बनाकर रखते हैं।
  • कोलेबिरा उपचुनाव में पार्टी उम्मीदवार की करारी हार।
  • CM की आलोचना से बाज नहीं आते हैं।

रांची रामटहल चौधरी

  • उम्र 77 साल हो चुकी है।
  • जिला संगठन में हस्तक्षेप लेकिन राज्य संगठन से दूरी।
  • आरएसएस की पसंद नहीं।
  • सीएम की अपरोक्ष आलोचना करने से भी बाज नहीं आते।
  • सिल्ली उपचुनाव में राजग प्रत्याशी सुदेश महतो की हार। सुदेश से इनकी बनती भी नहीं।

धनबाद पीएन सिंह  

  • उम्र 70 वर्ष से अधिक।
  • जिला संगठन पर पकड़ लेकिन बोकारो के दो क्षेत्रों में कमजोर पकड़ और जिला कमेटी से विरोध भी।
  • मुख्यमंत्री का विरोध नहीं लेकिन संबंध बेहतर भी नहीं।
  • संसदीय क्षेत्र के 4 भाजपा विधायकों में से दो का विरोध। एक विस क्षेत्र मासस तो एक झाविमो के पास है।

पलामू वीडी राम

  • संगठन का विरोध नहीं लेकिन बेहतर तालमेल का भी अभाव। आरएसएस के करीब नहीं आ सके।
  • एक विधायक (रिश्तेदार भी हैं) के अलावा अन्य का विरोध।
  • संसदीय क्षेत्र का फीडबैक इनके खिलाफ।
  • जातिगत मतों का धु्रवीकरण तो संभव लेकिन दूसरी बिरादरी से नाराजगी।

This post was last modified on March 22, 2019 6:23 PM

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