जनधन योजना मोदी सरकार का जुमला : चिदंबरम

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नई दिल्ली, 1 नवंबर (आईएएनएस)| कांग्रेस नेता व पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने गुरुवार को कहा कि प्रधानमंत्री जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) मोदी सरकार का जुमला और आत्म-वंचना की कवायद है। उन्होंने आरोप लगाया कि नोटबंदी के बाद जनधन खातों का इस्तेमाल धन-शोधन के लिए किया गया। कालेधन को इन खातों में डलवाकर सफेद करवाने की तरकीब सोची गई।

चिदंबरम ने यहां प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जैसा हमें विश्वास दिलाना चाहते हैं कि जनधन योजना से वित्तीय समावेशन की शुरुआत हुई है, ऐसा नहीं हुआ है।

पूर्व वित्तमंत्री ने कहा कि वित्तीय समावेशन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की अवधारणा थी और भारतीय रिजर्व बैंक ने बेसिक सेविंग्स बैंक डिपॉजिट अकाउंट (बीएसबीडीए) की शुरुआत की, जिसे बगैर तामझाम का खाता या जीरो बैलेंस अकाउंट भी कहा जाता है।

उन्होंने कहा, “मई 2014 तक 25 करोड़ बीएसबीडी खाते खोले जा चुके थे और सामान्य नागरिक आधुनिक बैंकिंग का लाभ उठाने लगे थे। साथ ही, आधार कार्यक्रम की शुरुआत हुई और 65 करोड़ आधार संख्या मई 2014 तक जारी की गई।”

उन्होंने कहा, “बीएसबीडीए और आधार ऐतिहासिक उपलब्धियां थीं और यह संभव हुआ, क्योंकि कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार ने नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) एनपीसीआई द्वारा शुरू किए गए इमिडिएट पेमेंट सिस्टम (आईएमपीएस) और बीएसबीडीए और एनपीसीआई द्वारा शुरू किया गया रुपेकार्ड का सृजन किया।”

उन्होंने बताया कि 2010-2014 के दौरान 12,748 ग्रामीण शाखाएं और 3,03,504 ग्रामीण बैंकिंग अभिकर्ताओं (बीसी) की नियुक्ति की गई, जबकि मोदी सरकार के चार साल में 4,679 ग्रामीण शाखाएं खोली गईं और 1,77,639 बीसी की नियुक्ति की गई।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के तहत बीएसबीडीए योजना का ही नाम बदलकर जनधन योजना रखा गया। असली वित्तीय समावेशन को जारी रखने की जगह राजग सरकार का मकसद सिर्फ सुर्खियां बटोरना है।

उन्होंने कहा, “जब राजग सरकार जनधन खाते की बात करती है तो वह 2014 से पहले खोले गए 25 करोड़ खातों का जिक्र नहीं करती। जनधन योजना मोदी और राजग सरकार का दूसरा जुमला और जनता को धोखा देने की कवायद भर है।”

कांग्रेस नेता ने कहा कि दिसंबर 2016 तक 24 फीसदी खातों में जमा संतुलित रकम शून्य थी। उसके बाद की अवधि का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। बाकी 15-20 फीसदी खातों में सिर्फ संतुलित रकम थी, क्योंकि बैंक प्रबंधकों को खाते में एक रुपया जमा करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

उन्होंने कहा कि 6.1 करोड़ जनधन खाते यानी पांच में से एक खाता निष्क्रिय है और 33 फीसदी खाते उनलोगों के हैं, जिनके नाम पहले से ही एक खाता है।

उन्होंने कहा कि खातों की संख्या बढ़ने से ग्रामीण आबादी में साख प्रवाह में अभिवृद्धि नहीं हो पाई।

उन्होंने कहा, “यह सामान्य बुद्धि की बात है कि जनधन खातों का उपयोग नोटबंदी के बाद धनशोधन के लिए किया गया। आठ नवंबर 2016 और 30 दिसंबर 2016 के बीच जनधन खातों में 42,187 करोड़ रुपये यानी भारी रकम जमा हुई थी।”

 

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