जनसंख्या को समायोजित करने के लिए 2030 तक इन्फ्रा पर 500 अरब डॉलर खर्च करने होंगे

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नई दिल्ली, 3 नवंबर (आईएएनएस)। भारत की ओर से अपनी बढ़ती आबादी को समायोजित करने के लिए वर्ष 2030 तक बुनियादी ढांचे (इन्फ्रास्ट्रक्च र) पर लगभग 513 अरब डॉलर खर्च किए जाने की संभावना है। मेस की एक हालिया रिपोर्ट में यह बात कही गई है।

इनसाइट्स 2020: ब्लूप्रिंट फॉर मॉडर्न इन्फ्रास्ट्रक्च र डिलीवरी शीर्षक से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य बड़े देश भी समान रूप से बड़े बुनियादी ढांचे पर खर्च करेंगे।

रिपोर्ट में कहा गया है, भारत 2030 तक अपनी तेजी से बढ़ती आबादी को समायोजित करने (रहने के लिए जगह मुहैया कराना) के लिए प्रति वर्ष 500 अरब डॉलर खर्च करेगा, संयुक्त राज्य अमेरिका वैश्विक सुपर पावर के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए 665 अरब डॉलर खर्च करेगा। इसके अलावा पेरू एल नीनो जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए इसे अधिक लचीला बनाने के लिए प्रति वर्ष 28 अरब डॉलर खर्च करेगा।

मेस की ओर से दुनिया भर में परियोजनाओं और कार्यक्रमों पर पड़ने वाले प्रभावों एवं कारणों को खोजने के लिए यह सर्वेक्षण किया गया। इसमें पाया गया कि प्रमुख योजनाओं के रूप में आगे बढ़ने के लिए कौन सी योजनाओं को आगे बढ़ाया जाए, इसमें स्पष्टता की कमी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्सर फैसले कठोर दबाव और लाभ विश्लेषण के बजाय राजनीतिक दबाव से प्रेरित होते हैं।

रिपोर्ट में बताया गया है, शुरुआती दौर में प्रोजेक्ट टीमों की खराब भविष्यवाणिय क्षमता, जो सटीक अनुमान या संभावित भविष्यवाणी से पहले अच्छी तरह से निर्धारित मूल्य अनुमान और कार्यक्रम प्रदान करने के लिए दबाव में हैं।

इसमें आगे कहा गया है कि इन तथ्यों के अलावा, अवास्तविक प्रारंभिक बजटों में फिट होने के लिए मूल्य के बजाय सबसे सस्ती कीमत पर आधारित खरीद एवं बड़ी और जटिल परियोजनाओं पर सस्ती कीमत खरीद एक भ्रामक या बनावटी अर्थव्यवस्था (फॉल्स इकोनॉमी) है।

मेस में कंसल्टेंसी के सीईओ जेसन मिलेट का विचार है कि दुनिया भर में अच्छा बुनियादी ढांचा सामाजिक आर्थिक समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा कि भारत अलग नहीं है और दुर्भाग्य से, सभी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं उचित रूप से नियोजित और वितरित नहीं की जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप विलंब होता है इससे लागत अधिक हो जाती है।

उन्होंने कहा, इसका नकारात्मक प्रभाव महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारी गणना से पता चलता है कि भारत में 2030 तक 10,820 अरब रुपये की अतिरिक्त लागत हो सकती है। वैश्विक रूप से यह लागत 900 अरब डॉलर जितनी हो सकती है।

उन्होंने कहा कि यह वित्तीय बोझ, परियोजना की देरी और कुप्रबंधन के कारण वितरण क्षमता की कथित कमी के साथ पड़ता है। उनका मानना है कि यह क्षेत्र में सभी के विश्वास को भी गंभीर नुकसान पहुंचाता है।

–आईएएनएस

एकेके/एएनएम

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