चंड़ीगढ़, 10 नवंबर (आईएएनएस)| राष्ट्रीय अकादमी पुरस्कार विजेता चित्रकार व लेखिका ज्योतिका सहगल का कहना है कि जपजी साहिब (सिखों का पवित्र धर्मग्रंथ) से उनका परिचय उनकी मां ने तभी कराया था, जब वह प्राइमरी स्कूल में थीं।
अपनी हालिया अंग्रेजी किताब ‘गुरु नानक देव जी जपजी साहिब : मेनिफेस्टेशंस ऑफ द मेगनिफिसेंट’ के प्रस्तावना में ज्योतिका ने लिखा है, “बाद में जब मैंने सही तरह से पढ़ना सीख लिया, तो मेरी मां ने मेरे लिए हिंदी में एक जपजी साहिब गुटखा (एक छोटा सा पवित्र ग्रंथ) खरीद दिया। जैसा कि मुझे तब तक अच्छी तरह से पंजाबी पढ़ना नहीं आया था, इसलिए मेरे उच्चारण के भ्रम को दूर करने के लिए उन्होंने हिंदी में हस्तलिखित ग्रंथ का पाठ कराया।”
ज्योतिका दिल्ली में कॉलेज ऑफ आर्ट में पेंटिंग विभाग की प्रमुख हैं। उनकी किताब 12 नवंबर को सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव के 550वें प्रकाश पर्व (जयंती) को देखते हुए लॉन्च की गई है।
उन्होंने आईएएनएस से कहा, “मेरे मन में गुरु नानक जी की छवि पूजनीय भगवान की तरह थी। हालांकि सालों बाद एक दिल दहला देने वाली घटना, जिसमें मैंने अपनी मां को खो दिया, मैंने अपने मन से उस विचार को त्याग दिया।”
उन्होंने आगे कहा, “हालांकि बीते 15 सालों में मेरी शादी के बाद और हमारी बेटी के जन्म के बाद मैंने हर पल सृष्टि के निर्माता को अपने आसपास महसूस किया।”
ज्योतिका ने कहा, “इसलिए मेरी सुबह फिर से जपजी साहिब के पूरे पाठ के साथ शुरू होने लगी। उस 18 से 20 मिनट के पाठ के दौरान मैंने अपनी जिंदगी के हर दिन के अनुभवों और कल्पनाओं के बारे में, लोगों और स्थानों पर विचार करना शुरू किया।”
उन्होंने आगे कहा, “उन्हीं आंतरिक पाठों के अनुभव मेरी ज्यादातर पेंटिंगों में नजर आएंगे।”
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