कालाष्टमी का पर्व प्रत्येक माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कालभैरव का व्रत रख पूजा आराधना की जाती है। कालभैरव को शिवजी का एक अवतार माना जाता है। इसे कालाष्टमी, भैरवाष्टमी आदि नामों से जाना जाता है। आज के दिन मां दुर्गा की पूजा और व्रत का भी विधान माना गया है। कालभैरव को भगवान शिव का रूद्र अवतार माना जाता है। ये काशी की रखवाली करते हैं। इसलिए उन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है।
इस बार कालाष्टमी 26 अप्रैल को मनाई जाएगी। इस दिन पूजा आराधना करने से दुःख और भूत पिचास दूर हो जाते हैं। कालाष्टमी का व्रत करने से रोग दूर भागते हैं और सभी कार्यों में सफलता मिलती है। सबसे मुख्य कालाष्टमी जिसे कालभैरव जयंती कहा जाता है। उत्तरी भारत के पुर्णिमांत पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में मनाई जाती है। जबकि दक्षिण भारत के अमांत पंचांग के अनुसार कार्तिक महीने में मनाई जाती है। हालांकि दोनों कालभैरव जयंती एक ही दिन पड़ती है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव भैरव रूप में प्रकट हुए थे।
जिन लोगों पर शनि का प्रकोप है उन्हें काल भैरव की पूजा करनी चाहिए। शनि का प्रकोप उनकी आराधना से ही शांत होगा। पुराणों के अनुसार भैरव अष्टमी का दिन भैरव और शनि को प्रसन्न करने और भैरव जी की पूजा के लिए अति उत्तम माना गया है।
शिवपुराण के अनुसार एक बार ब्रम्हा और विष्णु जी में श्रेष्ठ कौन है इस बात को लेकर विवाद छिड़ गया। बात इतनी ज्यादा बढ़ गई कि दोनों में युद्ध होने लगा। इस बात का जवाब जब वेद से पूछा गया तो उन्हें जवाब मिला कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ हैं। वेद द्वारा की गई भगवान शिव की महिमामंडन ब्रम्हा जी को पसंद नहीं आई। उन्होंने अपने पांचवें मुंह से शिव जी को अपशब्द कहा। उसी समय दिव्य ज्योति के रूप में शिव प्रकट हुए। ब्रह्मा जी ने भगवान भैरव से कहा कि तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। अधिक रुदन के कारण मैंने तुम्हारा नाम रूद्र रखा है। इसलिए तुम अब मेरी सेवा में आ जाओ। ब्रम्हा जी की इस बात से शिव को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उसी समय काल भैरव को प्रकट किया और उन्हें ब्रम्हा जी पर राज करने को कहा। भगवान काल भैरव ने अपनी कानी उंगली के नाखून से ब्रम्हा जी के उस सिर को काट दिया जिसने शिव की बुराई की थी।
मान्यता है कि बुरी शक्तियां रात में अधिक निकलती हैं और उनका अंत भी रात में ही किया जा सकता है। इसी वजह से कालाष्टमी की पूजा रात में ही की जाती है। इस दिन काल भैरव की पूजा करते समय उनकी कथा जरूर सुनें। यह पूजा रात को चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही पूरी होती है। स्नान करने के बाद भगवान शिव के भैरव रूप पर राख चढ़ाई जाती है। इस दिन काले कुत्ते की भी पूजा की जाती है. व्रत के बाद उड़द, धूप, दीप, काले तिल आदि से पूजा की जाती है।
शिव पुराण में कहा है कि भैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं, इसलिए कालाष्टमी के दिन “अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्, भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!! मंत्र का जाप करना फलदाई होता है।
नारद पुराण के अनुसार कालाष्टमी के दिन कालभैरव और मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। इस रात देवी काली की उपासना करने वालों को अर्ध रात्रि के बाद मां की उसी प्रकार से पूजा करनी चाहिए जिस प्रकार दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रिकी पूजा का विधान है।
इस दिन शक्ति अनुसार रात को माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुन कर जागरण का आयोजन करना चाहिए। आज के दिन व्रती को फलाहार ही करना चाहिए। कालभैरो की सवारी कुत्ता है अतः इस दिन कुत्ते को भोजन करवाना शुभ माना जाता है।
This post was last modified on April 25, 2019 5:21 PM
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