थोडुपुझा (केरल), 16 दिसम्बर (आईएएनएस)| केरल के छोटे से एक गांव में 475 वर्गफुट का एक घर क्षेत्र में मशहूर हो रहा है।
यह घर अपने स्वामित्व को लेकर नहीं, बल्कि इसे जिन्होंने बनाया है उनकी वजह से मशहूर हो रहा है। यह ऐसा घर नहीं है, जिसे किसी प्रसिद्ध वास्तुकार ने बनाया है। इस भवन को दिहाड़ी मजदूरी करने वाली 20 महिलाओं के एक समूह ने बनाया है।
20 महिलाओं का यह समूह ‘निर्माणश्री कंस्ट्रक्शन’ निर्माण उद्योग की रुढ़िवादिता व इस क्षेत्र में पुरुष प्रभुत्व को चुनौती दे रहा है।
20 महिलाओं के समूह ‘निर्माणश्री कंस्ट्रक्शन’ ने केरल के इडुक्की जिले के एल्मादेशम गांव में अपने पहले भवन निर्माण को पूरा करके पुरुष वर्चस्व वाले क्षेत्र की सीमा तोड़ दी है।
इन महिलाओं को दो महीने से कम समय में राजमिस्त्री बनने के लिए प्रशिक्षित किया गया। इन महिलाओं में से ज्यादातर पास के वेल्लियामात्तोम गांव की हैं। ये अपने पुरुष समकक्षों से बेहतर हैं।
इन्होंने अपने प्रशिक्षण के हिस्से के तौर पर न सिर्फ भवन का निर्माण कार्य पूरा किया, बल्कि वे अपनी अगली परियोजना पर बातचीत के अंतिम चरण में हैं।
महिलाएं देश में निर्माण कार्यो में मजदूर के तौर पर आधा हिस्सा रखती हैं, लेकिन वह मिस्त्री, बढ़ईगिरी व दूसरे पुरुष वर्चस्व वाले कार्यो से दूर रहती हैं।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के ‘राइट टू वर्क’ के तहत इस साल अगस्त तक इन 20 महिलाओं में से ज्यादातर घर के काम या दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर रही थीं।
बी.कॉम की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर शादी के लिए कॉलेज छोड़ने वाली सुजा (43) ने आईएएनएस से गर्व के साथ कहा, “हम पेशेवर बन चुके हैं। इसके लिए हम वेल्लियामात्तोम ग्राम परिषद की अध्यक्ष शीबा राजशेखरन की आभारी हूं।”
राजशेखरन केरल सरकार की महिलाओं के सशक्तिकरण कार्यक्रम ‘कुडुम्बश्री’ देखती हैं। राजशखरन ने पहले एक बैठक बुलाई और राजमिस्त्री बनने की इच्छा रखने वाली महिलाओं को प्रशिक्षित करने का विचार रखा।
उन्होंने कोट्टायम-मुख्यालय स्थित अर्चना महिला केंद्र (एडब्ल्यूसी) से संपर्क किया। एडब्ल्यूसी की महिला सशक्तिकरण के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने में विशेषज्ञता हासिल है। एडब्ल्यूसी महिलाओं में नए कौशलों को बढ़ावा देता है।
राजशेखरन ने कहा, “महिलाओं द्वारा बहुत ही ज्यादा रुचि दिखाई गई और इनमें 30 को पंजीकृत किया गया। इनमें से 10 जनजातीय महिलाएं हैं, क्योंकि मेरे गांव की परिषद में दो जनजातीय गांव आते हैं।”
एडब्ल्यूसी अपने साथ सिविल इंजीनियर प्रियंका व एक पुरुष राजमिस्त्री को लाते हैं, जो उन्हें दिशा-निर्देश देते थे।
यह प्रयोग 30 महिलाओं के साथ शुरू हुआ, जिसमें से 10 ने खुद को इस कार्य को जारी रखने में मुश्किल पाया।
बिंदु (40) ने आईएएनएस से कहा कि इसे लेकर बहुत ही ज्यादा संदेह था कि क्या समूह की सभी महिलाएं घर निर्माण के कार्य को अच्छी तरह से करने के योग्य होंगी, जिसे आम तौर पर पुरुषों का काम माना जाता है।
बिंदु ने कहा, “कुछ दिनों तक कक्षा की तरह पढ़ाई हुई, जिसमें हमें निर्माण प्रक्रिया व कौशल से जुड़ी हर चीज के बारे में सिखाया गया। इसके बाद हमें सीधे मौकास्थल पर ले जाया जाने लगा, जहां हमसे कहा गया कि आप को घर का निर्माण करना है। यह आसान काम नहीं था, लेकिन हम दृढ़ थे और जल्द ही हमें कार्य में प्रगति को देखकर आनंद की अनुभूति होने लगी।”
महिलाओं ने पहले घर का खाका कागज पर डिजाइन किया और इसके बाद हाल ही सिविल इंजीनियरिंग से स्नातक करने वाली इंजीनियर प्रियंका के निर्देश में उन्होंने निर्माण का कार्य शुरू किया। महिलाओं ने सलवार व कमीज के ऊपर शर्ट पहना और अपने सिर पर गमछा बाधकर काम करना शुरू कर दिया।
प्रियंका कहती हैं, “यह मेरे लिए और उन महिलाओं के लिए एक बड़ा अनुभव था।”
प्रियंका ने कहा कि एक तजुर्बेकार पुरुष राजमिस्त्री के निर्देशन में महिलाओं ने नींव रखने से लेकर भवन की दीवार खड़ी करने, छत ढालने और प्लास्टर तथा पेटिंग तक के सभी कार्य किए।
प्रियंका ने कहा, “आज न सिर्फ उन्होंने सफलतापूर्वक कार्य को पूरा किया, बल्कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा है और वे नए कार्य लेने को तैयार है, जिसके लिए वे पहले ही चर्चा शुरू कर चुकी हैं।”
इस पहली परियोजना के दौरान, जो कि उनके प्रशिक्षण का हिस्सा था, महिलाओं को प्रतिदिन 200 रुपये और 70 रुपये भोजन के लिए तथा 50 रुपये यात्रा के लिए दिए गए।
अब वे पूरी तरह से प्रशिक्षित एक राजमिस्त्री बन गई हैं। उन्हें 700 से 1,000 रुपये प्रतिदिन मिलने की उम्मीद है। पुरुष राजमिस्त्रियों को न्यूनतम 1,000 रुपये मिलते हैं।
राजशेखरन ने कहा, “हम मूल रूप से राज्य सरकार की योजनाओं के तहत घर के निर्माण के काम से जुड़ना चाहते हैं, जिसमें सरकार चार लाख रुपये देती है। इस बजट में घर को पूरा करना एक मुश्किल कार्य है और यहां हम मानते हैं कि महिला राजमिस्त्री इस काम को आसान बना सकती हैं।”
उन्होंने कहा कि इस पहल के जरिए महिलाओं को कौशल प्रदान करना व बिना किसी पर निर्भर हुए आमदनी कमाने में समर्थ बनाने की मंशा है।
— (यह साप्ताहिक फीचर श्रृंखला आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम फाउंडेशन की एक सकारात्मक पत्रकारिता परियोजना का हिस्सा है।)
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