किसान खुदकुशी रोकने में मनोवज्ञानिक बने मददगार

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हैदराबाद, 16 मार्च (आईएएनएस)| एक कॉरपोरेट अस्पताल की बेहतर नौकरी से असंतुष्ट एक मनोवैज्ञानिक एक ऐसी टीम में शामिल हो गईं जो तेलंगाना में किसानों की खुदकुशी रोकने के लिए काम करती है।

श्रुति नाइक यह जानना चाहती थीं कि आखिर ग्रामीण क्षेत्र में व्याप्त संकट का कारण क्या है और उन्होंने इसे जानने और इसका समाधान तलाशने के कार्य को चुनौती के रूप में स्वीकार किया।

श्रुति ने बताया, “मैंने महसूस किया कि समस्या कितनी गंभीर है और बाहर की दुनिया में किस प्रकार भ्रांति फैलाई जाती है।”

वह यहां किसान मित्र हेल्पलाइन के दफ्तर में आईएएनएस से बातचीत कर रही थीं।

उन्होंने कहा, “किसान परिस्थितियों, आर्थिक असमानता और खेती से संबंधित समस्याओं के शिकार हैं। उनके पास कर्ज चुकाने का कोई जरिया नहीं है। उनको निजी साहूकार और बैंक परेशान करते हैं। वे हमेशा इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि वे कर्ज कैसे चुकाएंगे और परिवार का भरण-पोषण कैसे करेंगे।”

वर्ष 2017 की बात है, जब विकराबाद जिले की तत्कालीन जिला कलेक्टर दिव्या देवराजन ने सुझाव दिया कि एनजीओ को इस मसले पर काम करना चाहिए।

हालांकि उन्होंने माना कि इसके लिए महज हेल्पलाइन से काम नहीं चलेगा।

श्रुति ने कहा, “कभी-कभी संकटग्रस्त किसान हमारे पास नहीं आ सकते, क्योंकि मदद मांगने को कलंक समझा जाता है। उसके बाद हमने क्षेत्रीय दल बनाने का फैसला लिया जो किसानों से बात कर सके।”

हेल्पलाइन का कार्यकलाप आदिलाबाद जिले तक बढ़ाया गया, क्योंकि देवराजन का वहां कलेक्टर के रूप में तबादला हो चुका था। बाद में कार्यकलाप का विस्तार मनचेरियल जिला तक किया गया।

श्रुति ने बताया, “हमें अब तक जमीन, फसल, भुगतान, कर्ज और बैंक से संबंधित मसलों को लेकर 8,000 कॉल्स मिले हैं। हमने 4,000 मामलों का समाधान करने की कोशिश की है। मसला यह है कि संकट आने से पहले समस्या का समाधान हो।”

वह सात सदस्यों की टीम की अगुवाई करती हैं, जिसमें सभी महिला सदस्य हैं। काउंसल कॉल्स लेती हैं और किसानों से उनकी समस्याओं का ब्योरा नोट करती हैं। इसके बाद उसे संबंधित क्षेत्र स्तरीय संयोजक को भेज देती हैं जो समस्या के समाधान में जुट जाते हैं।

संगठन खुदकुशी करने वाले किसानों के परिवारों के की मदद व उनके पुनर्वास के लिए भी सरकार के साथ मिलकर काम करता है।

इस संगठन ने पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आदिलाबाद में 120 विधवाओं और उनके परिवारों की एक बैठक बुलाई और सरकार की मदद से उनके लिए वैकल्पिक आजीविका की व्यवस्था की।

तेलंगाना में असली समस्या काश्तकारों की है, जिन्हें रायतू बंधु योजना के तहत शामिल नहीं किया गया है। इस योजना के तहत सरकार किसानों को प्रति एकड़ सालाना 8,000 रुपये बतौर निवेश सहायता प्रदान करती है।

सर्वेक्षण के अनुसार, तेलंगाना में खुदकुशी करने वाले किसानों में 75 फीसदी काश्तकार हैं जो किराये की जमीन पर खेती करते हैं।

किसान मित्र ने किराये की जमीन पर खेती करने वाले 5,000 किसानों की मदद की है। उन्होंने कुछ बैंकरों से समझौता कर संयुक्त दायी समूहों का गठन किया है। प्रत्येक समूह में चार-पांच सदस्य होते हैं। प्रत्येक समूह को एक लाख रुपये का ऋण मुहैया कराया जाता है।

 

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