नई दिल्ली, 26 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को फिर कोरोना महामारी के संकट में किसानों की मेहनत को याद किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि किसानों के परिश्रम से ही आज देश के पास अक्षय अन्न भंडार है।
प्रधानमंत्री रविवार को रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के माध्यम से देशवासियों को संबोधित कर रहे थे। अक्षय तृतीया के मौके पर मन की बात कार्यक्रम में उन्होंने इस त्योहार के महत्व पर प्रकाश डालने के साथ-साथ देश के अन्नागार में भरे अनाज के लिए किसानों के परिश्रम और संकट की इस घड़ी में उनके योगदान को याद किया।
मोदी ने कहा, ”मेरे प्यारे देशवासियो, यह सुखद संयोग ही है कि आज जब आपसे मैं मन की बात कर रहा हूं तो अक्षय-तृतीया का पवित्र पर्व भी है। साथियो, ‘क्षय’ का अर्थ होता है विनाश लेकिन जो कभी नष्ट नहीं हो, जो कभी समाप्त नहीं हो वो ‘अक्षय’ है। अपने घरों में हम सब इस पर्व को हर साल मनाते हैं लेकिन इस साल हमारे लिए इसका विशेष महत्व है। आज के कठिन समय में यह एक ऐसा दिन है जो हमें याद दिलाता है कि हमारी आत्मा, हमारी भावना, ‘अक्षय’ है।”
मोदी ने आगे कहा, ”यह दिन हमें याद दिलाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ रास्ता रोकें, चाहे कितनी भी आपदाएं आएं, चाहे कितनी भी बीमारियोँ का सामना करना पड़े- इनसे लड़ने और जूझने की मानवीय भावनाएं अक्षय है। माना जाता है कि यही वो दिन है जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण और भगवान सूर्यदेव के आशीर्वाद से पांडवों को अक्षय-पात्र मिला था। अक्षय-पात्र यानी एक ऐसा बर्तन जिसमें भोजन कभी समाप्त नही होता है।”
उन्होंने कहा, ”हमारे अन्नदाता किसान हर परिस्थिति में देश के लिए, हम सब के लिए, इसी भावना से परिश्रम करते हैं। इन्हीं के परिश्रम से, आज हम सबके लिए, गरीबों के लिए, देश के पास अक्षय अन्न-भंडार है।”
बता दें कि कोरोना संक्रमण की कड़ी को तोड़ने के लिए देशभर में लॉकडाउन है जिससे आर्थिक गतिविधियां बाधित हैं, लेकिन किसानों का कोई काम नहीं रूका है। केंद्र सरकार ने लॉकडाउन में भी किसानों को फसलों की बुआई, कटाई और विपणन समेत खेती-किसानी से जुड़े तमाम कार्यों को छूट दी है।
मोदी ने इस अवसर पर पर्यावरण संरक्षण के बारे में भी लोगों को सोचने की सलाह दी। उन्होंने कहा, ”इस अक्षय-तृतीया पर हमें अपने पर्यावरण, जंगल, नदियाँ और पूरे इकोसिस्टम के संरक्षण के बारे में भी सोचना चाहिए, जो, हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अगर हम ‘अक्षय’ रहना चाहते हैं तो हमें पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी धरती अक्षय रहे।”
–आईएएनएस
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