भोपाल, 4 अगस्त (आईएएनएस)| फिल्मी दुनिया के अलमस्त कलाकारों की बात चले और मध्यप्रदेश के खंडवा से नाता रखने वाले कलाकार किशोर कुमार का जिक्र न आए, ऐसा हो नहीं सकता।
मुंबई में तो लोग उन्हें खास दिनों पर याद करते होंगे, मगर उनके गृहप्रदेश में खंडवा और इंदौर कई ऐसे स्थान हैं, जो किशोर दा के बिंदास अंदाज के कारण पहचाने जाते हैं।
फिल्मी दुनिया के एक निराले कलाकार को खंडवा और इंदौर के लोग ‘अपना किशोर’ कहकर पुकारते हैं। खंडवा जिले में रहने वाले गांगुली परिवार में 4 अगस्त, 1929 को जन्मे किशोर के किस्से यहां हर तरफ सुने जा सकते हैं। भले ही किशोर की पीढ़ी के कम लोग बचे हों, मगर किस्से अगली पीढ़ी भी ठीक वैसे ही सुनाती है, जैसे उसकी आंखों के सामने घटित हुआ हो।
खंडवा की ‘लालजी जलेबी दुकान’ आज भी किशोर कुमार के किस्सों के लिए पहचानी जाती है, उन्हें दूध-जलेबी खासा पसंद था। उनका जब भी खंडवा आना हुआ, वे जलेबी खाने इस दुकान पर जाना नहीं भूले। इतना ही नहीं, यहां वे लोगों को तरह-तरह से छेड़ने से नहीं हिचकते थे।
इस दुकान के संचालक शर्मा परिवार के बादल शर्मा कहते हैं कि उन्होंने किशोर कुमार को तो नहीं देखा, मगर दादा जी और पिता जी उनके किस्से खूब सुनाते थे और बताते थे कि लोगों से मजाक करना उनके स्वभाव का हिस्सा था।
बादल शर्मा बताते हैं कि जब भी किशोर दा आते थे तो दूध-जलेबी खाते थे और चार लाइन हमेशा गुनगुनाते थे- “लालजी की दूध-जलेबी खाएंगे और प्यारे खंडवा शहर में हम बस जाएंगे।” उनकी इच्छा भी यही थी, इसीलिए उन्हें अंतिम समय में खंडवा लाया गया था।
खंडवा के मुख्य बाजार में गांगुली परिवार का लगभग 10 हजार वर्ग फुट में फैला मकान अब खंडहर में बदल चुका है। इस मकान की बीते चार दशक से सीताराम देखभाल कर रहे हैं। वे बताते हैं कि “साहब साल में एक दो बार आते थे तो सभी से मिलते थे। उनके आने पर मेल-मुलाकात करने वाले बड़े खुश होते थे और कहते थे, आ गए साहब खंडवा वाले।”
पिछले दिनों किशोर कुमार के पुश्तैनी मकान को बेचने की काफी चर्चा रही, बाद में उनके पुत्र अमित कुमार ने स्वयं इन चर्चाओं पर विराम लगाया।
किशोर कुमार ने हाईस्कूल तक की पढ़ाई खंडवा में की, और फिर पहुंचे इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज, जहां उनका चुलबुलापन पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया।
लगभग 16 हजार गाने गाने और आठ बार िंफल्मफेयर अवार्ड जीतने वाले किशोर कुमार के तराने आज भी इस कॉलेज में गुनगुनाए जाते हैं। इस कॉलेज के छात्रावास के कमरा नंबर 34 को आज भी किशोर कुमार के कमरे के तौर पर पहचाना जाता है। इस कमरे और छात्रावास की हालत जर्जर हो चली है। इससे पूर्व छात्रों में नाराजगी है।
कॉलेज के पूर्व छात्र लक्ष्मीकांत पंडित कहते हैं कि छात्रावास और कमरे की दुर्दशा पर किसी का ध्यान नहीं है, इसके लिए काफी हद तक कॉलेज प्रशासन भी जिम्मेदार है। इस स्थान को स्मारक के तौर पर विकसित किया जाना चाहिए।
इस कॉलेज की चर्चा हो और चाय की दुकान का जिक्र न आए, ऐसा हो नहीं सकता। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस चाय दुकान की उन पर उधारी थी, इस उधारी पर उनका गीत खूब चर्चित हुआ। इसी चाय की दुकान के करीब एक इमली का पेड़ हुआ करता था जो आज भी है, इसी इमली के पेड़ के नीचे बैठकर किशोर कुमार गीत गुनगुनाया करते थे और अपने शिक्षकों की नकल उतारते थे।
पूर्व छात्र स्वरूप वाजपेयी बताते हैं कि किशोर कुमार के दिमाग में जो भी शौक चल रहे थे, उसे आकार मिला क्रिश्चियन कॉलेज में आकर। उन्होंने यहां नाटक किया, स्टेज पर गाने गए, लोगों की मिमिक्री की, इसके अलावा वे जो भी करना चाहते थे वो यहां किया। उन पर पांच रुपया बारह आना बकाया था तो उसे मजाक में ले लिया, काका की डायरी में उनके नाम पर उधार दर्ज रहा, वह उनके दिमाग में रहा और आगे चलकर उस पर किशोर ने गाना बनाया।
किशोर के चाहने वालों का खंडवा में जमावड़ा है। उनके चाहने वाले समाधि स्थल पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। कोई गीत गाकर उन्हें याद कर रहा है तो कई लोग दूध-जलेबी का भोग लगाकर। उनके प्रशंसकों ने सरकार से किशोर कुमार को भारतरत्न सम्मान देने की मांग उठाई है। उनके दीवानों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लखनऊ के एक व्यक्ति देवा ने अपने नाम के आगे किशोर जोड़ लिया।
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