चेन्नई, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)| चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इसी महीने भारत आने को हैं। अपने दौरे के दौरान वह तमिलनाडु के मामल्लापुरम भी जाएंगे, जहां का निकटवर्ती गांव कल्पंतनदलम यूनेस्को का विरासत स्थल है।
चीन के पहले प्रधानमंत्री झोउ एनलाई ने सन् 1956 में इस गांव में एक प्रसूति एवं बाल कल्याण केंद्र खोला था। कल्पंतनदलम को उस समय आदर्श गांव के रूप में जाना जाता था।
कई साल पहले ली गई एक तस्वीर में एक पट्टिका दिखती है, जिस पर लिखा है : “चीन गणराज्य के प्रधानमंत्री माननीय श्री चोउ एन-लाइ द्वारा खोला गया प्रसूति एवं बाल कल्याण केंद्र।” यह पट्टिका हालांकि अब खो गई है।
कल्पंतनदलम गांव के रहने वाले वी. स्थलासयनम ने आईएएनएस से कहा, “हाल ही में स्वास्थ्य केंद्र का भवन फिर से बनाया गया, उस क्रम में पुरानी पट्टिका खो गई। लोग इसके ऐतिहासिक महत्व को नहीं समझते।”
कल्पंतनदलम ने आदर्श गांव के रूप में सन् 1954 में नेहरू पुरस्कार जीता था।
मामल्लापुरम से लगभग 10 किलोमीटर दूर इस गांव में उन दिनों बहुत से नामचीन लोग आया करते थे।
यहां पहुंचने वाले विशिष्ट आगंतुकों में झोउ के अलावा अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता मार्टिन लूथर किंग जूनियर और राष्ट्रमंडल संसदीय समिति के महासचिव हॉवार्ड डि’इगविल का नाम भी दर्ज है।
कई विदेशी पर्यटक व अन्य लोग भी इस गांव का दौरा किया करते थे, जिसे अब भुला दिया गया है।
कल्पंतनदलम ने प्रथम पंचवर्षीय योजना में शामिल सामुदायिक विकास परियोजना के तहत हुए कार्यो की बदौलत उन दिनों ईष्या करने लायक प्रतिष्ठा अर्जित कर ली थी।
इस गांव में पहली बार कम लागत के मकान बनाए गए थे, फूस के छाजन के बजाय खपरैल छतें बनाई गई थीं। ये सब देश में पहली बार इसी गांव में हुआ था।
इस गांव के सभी 300 घरों में खादी धागों की कताई हुआ करती थी। कल्पंतनदलम ही पहला ऐसा गांव है जहां फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए पहली बार खेती का जापानी तरीका अपनाया गया था।
इस गांव में एक और अग्रणी परियोजना शुरू की गई थी, जिसके तहत पशु प्रजनन एवं वीर्य-सेचन केंद्र बनाया गया था।
कल्पंतनदलम में एक प्रसूति अस्पताल, एक सामुदायिक पुस्तकालय और रेडियो लगा एक पुनर्सृजन केंद्र भी है।
गांव की आगंतुक-पुस्तिका में तत्कालीन जिला कलक्टर जे.एम. लोबो प्रभु की लिखी टिप्पणियों के अनुसार, गांव में कराए गए विकास के सभी कार्यो का श्रेय तत्कालीन ग्राम प्रधान जी. वीराराघवाचारी को जाता है।
वीराराघवाचारी के बेटों में से एक स्थलासयनम ने याद किया, “मेरे पिता अपना पैसा समुदाय के कल्याण पर खर्च किया करते थे। सन् 1965 में उनके निधन के समय उनकी समूची 40 एकड़ जमीन बेचनी पड़ी या गिरवी रखनी पड़ी और परिवार गरीबी की हालत में पहुंच गया।”
देश के इस पहले आदर्श गांव कल्पंतनदलम को अब मगर भुला दिया गया है। उम्मीद है कि चीनी राष्ट्रपति के आगमन से यह गांव एक बार फिर चर्चा में आएगा।
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