Raaj Kumar Birth Anniversary: राजकुमार ने अपनी डायलॉग डिलीवरी से बनाया सबको फैन, ये हैं उनके कुछ बेहतरीन डायलॉग्स

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Raaj Kumar Birth Anniversary: राजकुमार हिंदी सिनेमा के ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने अपनी एक्टिंग और डायलॉग डिलीवरी से सभी के दिल में एक खास जगह बनाई। दर्शक उनके अंदाज और आवाज दोनों के कायल थे। आज इस महान कलाकार की जन्मतिथि है।

राजकुमार का जन्म 8 अक्टूबर 1926 को हुआ था और उनका असली नाम कुलभूषण पंडित था, मगर प्यार से सब उन्हें ‘जानी’ कह कर बुलाते थे। फिल्मों में आने से पहले उन्होंने मुंबई पुलिस में सब इंस्पेक्टर के तौर पर काम किया। राजकुमार ने साल 1952 में आई फिल्म ‘रंगीली’ से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। साल 1957 में आई फिल्म ‘नौशेरवां -ए-आदिल’ उन्हें पहचान मिली। अपने फिल्मी करियर में उन्होंने लगभग 60 फिल्मों में काम किया, जिनमें ‘अनमोल’, ‘सहारा’, ‘अवसर’, ‘घमंड’, ‘नीलमणि’ और ‘कृष्ण सुदामा’ जैसी फिल्में शामिल हैं। राजकुमार ने 3 जुलाई 1996 को दुनिया को अलविदा कह दिया था।

उन्होंने अपनी एक्टिंग से तो सभी को अपना फैन बनाया ही, लेकिन आज भी उन्हें सबसे ज्यादा उनकी बेहतरीन आवाज और डायलॉग डिलीवरी के लिए जाना जाता है। आज भी ‘जानी’ सुनते ही सबसे पहले ज़हन में राजकुमार ही आते हैं। अपनी आवाज और अंदाज से वह हर डायलॉग में जान डाल देते थे। आइये आपको बताते हैं उनके कुछ फेमस डायलॉग के बारे में, जिन्हें राजकुमार ने हमेशा के लिए यादगार बना दिया।

राजकुमार के कुछ बेहतरीन डायलॉग

सौदागर (1991)

जानी…हम तुम्हें मारेंगे और जरूर मारेंगे, पर बंदूक भी हमारी होगी और गोली भी हमारी होगी और वह वक्त भी हमारा होगा।

काश कि तुमने हमे आवाज दी होती तो हम मौत की नींद से भी उठकर चले आते।

तिरंगा (1993)

हमारी जुबान भी हमारी गोली की तरह है। दुश्मन से सीधी बात करती है।

हम आंखो से सुरमा नहीं चुराते। हम आंखें ही चुरा लेते हैं।

वक्‍त (1965)

ये बच्‍चों के खेलने की चीज नहीं, हाथ कट जाए तो खून निकलने लगता है।

चिनॉय सेठ, जिनके घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते।

पाकीजा (1972)

आपके पांव देखे, बहुत हसीन हैं, इन्‍हें जमीन पर मत उतारिएगा मैले हो जाएंगे।

राजतिलक (1984)

आपके लिए मैं जहर को दूध की तरह पी सकता हूं, लेकिन अपने खून में आपके लिए दुश्‍मनी के कीड़े नहीं पाल सकता।

बेताज बादशाह (1994)

आजकल का इश्‍क जन्‍मों का रोग नही है, वक्‍ती नशा है, शाम को होता है, सुबह उतर जाता है।

जब हम मुस्‍कुराते हैं तो दुश्‍मनों के दिल दहल जाते हैं।

मरते दम तक (1987)

इस दुनिया के तुम पहले और आखिरी बदनसीब कमीने होगे, जिसकी न तो अर्थी उठेगी ओर न किसी के कंधे का सहारा, सीधे चिता जलेगी।

बाजार के किसी सड़क छाप दर्जी को बुलाकर उसे अपने कफन का नाप दे दो।

हम तुम्हें ऐसी मौत मारेंगे कि तुम्हारी आने वाली नस्लों की नींद भी उस मौत के खौफ को सोचकर उड़ जाएगी।

जिंदगी एक नाटक ही तो है, लेकिन जिंदगी और नाटक में फर्क है, नाटक को जहां चाहो, जब चाहो बदल दो, लेकिन जिदंगी के नाटक की डोर तो ऊपर वाले के हाथ होती है।


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This post was last modified on October 8, 2019 6:59 AM

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