देश भर में आज यानी 17 जून को संत कबीर दास जी की जयंती मनाई जा रही है। उन्हें कबीर साहब भी कहा जाता है। उनका जन्म सन 1455 में ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। इसलिए ही हर वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ‘कबीर जयंती’ मनाई जाती है।
कबीर दस जी एक लेखक और कवी थे वह अपने सुविचारों के लिए जाने जाते हैं और लोग उन्हें भगवान के रूप में पूजते हैं। उनके नाम पर ‘कबीरपंथ’ नामक संप्रदाय आज भी प्रचलित है। वह सामाजिक बुराइयों का विरोध करते थे और सभी को एकता का पाठ पढ़ाते थे। उनके लिखित दोहे आज भी जीने की नै उमग और प्रेरणा देते हैं। उन्होंने विधिवत शिक्षा प्राप्त नहीं की, लेकिन इसके बावजूद भी उनके ज्ञान ने उन्हें महान बना। उन्होंने अपने जीवन में सभी धर्मों का बराबर सम्मान किया इसलिए ही मुस्लिम और हिंदू, दोनों धर्मों के लोग उनके अनुयायी थे।
संत कबीर दास के दोहे आज भी विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में पढ़ाये जाते हैं, क्योंकि ये जीवन को एक नई राह देते हैं। इस कबीर जयंती पर, जानें उनके कुछ प्रमुख दोहों के बारे में।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय॥
भावार्थ: यह कबीर दास जी का सबसे प्रसिद्द दोहा है। इस दोहे में वह कहते हैं कि एक इंसान अपना सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहता है। लेकिन वह अपने भीतर झांककर नहीं देखता। अपने भीतर झांकने में वह पाएगा कि उससे बुरा और कोई नहीं है। इसलिए हर इंसान को सबसे पहले खुद के भीतर की बुराइयों को दूर करना चाहिए।
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ॥
भावार्थ: इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करोगे? वह आगे कहते हैं कि गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है, इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥
भावार्थ: इस दोहे का भावार्थ है कि यह शरीर है विष से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना सर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
भावार्थ: संत कबीर कहते हैं कि इस संसार को चलाने के लिए ऐसे व्यक्ति की जरूरत है, जैसे अनाज साफ करने वाला सूप होता है। जो साफ समान को बचा लेता है और गंदा को बाहर निकालकर फेंक देता है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
This post was last modified on June 17, 2019 11:51 AM
नवीन शिक्षण पद्धतियों, अत्याधुनिक उद्यम व कौशल पाठ्यक्रम के माध्यम से, संस्थान ने अनगिनत छात्रों…
इतिहासकार प्रोफ़ेसर इम्तियाज़ अहमद ने बिहार के इतिहास पर रौशनी डालते हुए बताया कि बिहार…
अब आवेदन की तारीख 15 जुलाई से 19 जुलाई तक बढ़ा दी गई है।
पूरे दिल्ली-NCR में सर्विस शुरु करने वाला पहला ऑपरेटर बना
KBC 14 Play Along 23 September, Kaun Banega Crorepati 14, Episode 36: प्रसिद्ध डिजाइनर्स चार्ल्स…
राहुल द्रविड़ की अगुवाई में टीम इंडिया ने 1-0 से 2007 में सीरीज़ अपने नाम…