इस समय दुनिया के कई देशों में मंकी पॉक्स का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। यह एक दुर्लभ बीमारी मानी जाती है। सिंगापुर में मंकीपॉक्स का मामला सामने आने के बाद दक्षिण एशिया में खतरे की घंटी बज गई है। 9 मई को सिंगापुर के स्वास्थ्य मंत्रालय ने मीडिया को बताया था कि एक नाइजीरियाई नागरिक इस वायरल बीमारी से पीड़ित था। मंकी पॉक्स, स्मॉल पॉक्स से काफी मिलता-जुलता है। यह मुख्य रूप से रोडेंट्स और प्राइमेंट्स के जरिए फैलता है। यह रोग वायरसेज के पॉक्सविरिडी परिवार से संबंधित होता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, नाइजीरियाई व्यक्ति ने सिंगापुर आने से पहले बुशमीट (वाइल्ड एनिमल का मांस) खाया था।
1958 में पहली बार बंदरों में खोजे जाने के बाद से इस बीमारी को मंकीपॉक्स कहा जाने लगा। अफ्रीका के वर्षावनों (रेनफॉरेस्ट) में मंकीपॉक्स कॉमन है, जहां इंसान नियमित रूप से उन जानवरों के संपर्क में आते हैं, जिनमें यह वायरस होता है। हालांकि, व्यक्ति-से-व्यक्ति के प्रसारण का कोई सबूत नहीं मिला है।
मंकी पॉक्स एक इंफेक्शन है। जो कि एक से दूसरे में आसानी से पहुंच जाता है। यहां तक की इसमें पीडित व्यक्ति की छींक के संपर्क में आने से भी आपको यह बीमारी हो जाएगी। यह बीमारी भी जानवरों से फैलती है। खासकर बंदरों से। जिसके कारण इसे इसे मंकी पॉक्स नाम दिया गया है। ये एक संक्रामक बीमारी है इसलिए संक्रमित व्यक्ति को छूने, उसकी छींक या खांसी के संपर्क में आने, उसके मल के संपर्क में आने या उसकी वस्तुओं को इस्तेमाल करने से ये बीमारी दूसरे व्यक्ति में फैल सकती है।
अफ्रीका के जंगली जानवरों से इंसानों में फैले मंकी पॉक्स का वायरस शुरुआत में तो स्थानीय स्तर पर ही फैलता है लेकिन इस दौरान इनसानों में पाए जाने वाले दूसरे वायरस और उनके डीएनए के संपर्क में आने के बाद इस वायरस के आनुवांशिक संरचना में ऐसे बदलाव आएंगे कि यह बहुत तेजी से फैलेगा और खांसी या छींक के जरिए भी इसका संक्रमण होने लगेगा।
मंकी पॉक्स चिकन पॉक्स की तरह होता है। जिसके बारें में जानकारी न हो पाने के कारण जानलेवा साबित हो सकती है। अगर आपके शरीर के चकत्ते घाव में बदलने लगे और उसमें अधिक दर्द हो तो समझ लें कि यह खतरनाक साबित हो सकती है आपके लिए।
अभी तक इस बीमारी का कोई भी इलाज और टीका नहीं है। चेचक को रोकने के लिए लगाए जाने वाले चेचक के टीके 85 प्रतिशत प्रभावी साबित हुए हैं। हालांकि, इस वायरस के शरीर में प्रवेश करने के बाद शुरुआत में ही स्मॉल पॉक्स का टीका लगाया जाना चाहिए, तभी इसे रोका जा सकता है। साथ ही खतरा भी काफी कम तक हो जाता है।
This post was last modified on June 4, 2019 3:36 PM
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