जन्मदिन विशेष: लेनिन ने की थी भारतीय आजादी की वकालत, तिलक का किया था खुला समर्थन

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इतिहास के सबसे महान क्रांतिकारियों में से एक लेनिन का जन्म साल 1870 में आज ही के दिन हुआ था। प्रखर मार्क्सवादी विचारक व्लादिमीर लेनिन का रूस के इतिहास में बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। रूस को क्रांति की राह दिखाकर ज़ार की निरंकुश सत्ता को उखाड़ फेंकने में लेनिन का अहम योगदान था। लेनिन की ख्याति एक ऐसे नेता की है जिसने सिर्फ सोवियत संघ या रूस ही नहीं बल्कि वैश्विक राजनीति को एक नया रंग दिया। भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो लेनिन ऐसे पहले वैश्विक नेता थे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में भारत की जनता की शक्ति को पहचाना और भारत की आजादी की खुलकर वकालत की।

कौन थे लेनिन?

सारी दुनिया जिन्हें ‘लेनिन’ के नाम से जानती, पहचानती है, उनका असली नाम है- व्लादीमिर इलीच उल्यानोव। लेनिन नाम तो रूस की ज़ार सरकार से छुपने के लिए रखा गया था। इतिहास के जानकार मानते हैं कि ‘लेनिन’ नाम साइबेरिया में लेना नदी से होकर आया है। लेनिन का जन्म साल 1870 में 22 अप्रैल को वोल्गा नदी के किनारे बसे सिम्ब्रिस्क शहर में हुआ था।

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20वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण और असरदार शख़्सियतों में गिने जाने वाले लेनिन ने प्रसिद्द ऑक्टूबर रिवॉल्यूशन (अक्टूबर क्रांति) का सूत्रपात कर ज़ार साम्राज्य को सत्ता से बेदख़ल कर दिया। ये रूसी क्रांति ही थी, जिसने रूस का भविष्य हमेशा के लिए बदल दिया।

ब्रिटिश हुकूमत को कहा था चंगेज खां का शासन

बात साल 1908 की है जब भारत में बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन चल रहा था। इस आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने तरह-तरह के हथकंडे अपनाए थे और भारतीय जनता पर भंयकर दमन किया था। तिलक से डरकर अंग्रेजों ने 6 साल के लिए उन्हें बर्मा की जेल में फेंकने का फ़ैसला सुनाया।

तिलक पर मुकदमे के अगले ही दिन लेनिन ने एक लेख छापा और उसमें कहा कि तिलक समूची दुनिया की राजनीति में आग लगा देगा, तिलक को दबाया नहीं जा सकता। आपको बता दें कि उस दौर में विदेशों में भारत के बारे में बहुत कम जानकारियां सामने आती थीं। अंग्रेज भारत की गरीबी, बदहाली और शोषण को दुनिया से छिपाने की हर मुमकिन कोशिश करते थे लेकिन फिर भी लेनिन ने भारत पर पैनी नजर बनाये रखी।

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1908 में लिखे अपने लेख में लेनिन ने लिखा था कि रूस के बाद अगर सबसे ज्यादा दुनिया में कहीं भूखमरी और गरीबी है तो वह भारत में ही है। इसी लेख में लेनिन अंग्रेजों के इस दमन की तुलना चंगेज खां के शासन से करते हैं और तिलक के ऊपर किए गए अत्याचारों की भर्त्सना करते हैं।

लेनिन लिखते हैं- ‘हिंदुस्तान के शासकों के रूप में असली चंगेज खां बन रहे हैं। अपने कब्जे की आबादी को ‘शांत करने के लिए’ वे सब कार्रवाईयां, यहां तक की हंटरों की वर्षा, कर सकते हैं…लेकिन देशी लेखकों और राजनितक नेताओं की रक्षा के लिए हिंदुस्तान की जनता ने सड़कों पर निकल आना शुरू कर दिया है। अंग्रेज गीदड़ों द्वारा हिंदुस्तानी जनवादी तिलक को दी गई घृणित सजा…थैलीशाहों के गुलामों द्वारा एक जनवादी के खिलाफ की गई बदले की कार्रवाई की वजह से बंबई (अब मुंबई) की सड़कों पर प्रदर्शन और हड़ताल हुई। हिंदुस्तान का सर्वहारा वर्ग भी इतना काफी वयस्क हो चुका है कि एक वर्ग-जागृत राजनीतिक संघर्ष चला सके।’ लेनिन इसी लेख में लिखते हैं कि अंग्रेजी शासन के भारत में दिन लद गए।

यही नहीं जब लेनिन सोवियत संघ के राष्ट्रप्रमुख थे तो उन्होंने खुलेआम भारत की आजादी की लड़ाई का समर्थन किया था। यह बहुत बड़ी बात थी क्योंकि रूस उस वक्त कई मुश्किलों से गुजर रहा था और वह इस स्थिति में नहीं पहुंचा था कि ब्रिटेन जैसे समृद्ध और शक्तिशाली शासन से सीधे टकराव मोल ले सके। लेकिन लेनिन ने अंग्रेजों की परवाह नहीं करते हुए भारत की आजादी का खुलकर समर्थन किया।

जब भगत सिंह ने लगाया था लेनिन ज़िंदाबाद का नारा

लेनिन को शहीद-ए-आजम भगत सिंह अपना आदर्श मानते थे। यह भगत सिंह और उनके साथी ही थे जिन्होंने भारत में सबसे पहली बार खुलेआम ‘लेनिन ज़िंदाबाद’ का नारा लगाया था। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर मुकदमा चल रहा था तभी ‘लेनिन दिवस’ आ गया (21 जनवरी यानी लेनिन की पुण्यतिथि)

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भगत सिंह और उनके साथियों ने तीसरे इंटरनेशनल (कम्युनिस्टों की अंतर्राष्ट्रीय संस्था) के लिए एक तार तैयार किया और सुनवाई के दौरान अदालत में पढ़ा। अखबारों में इसकी रिपोर्ट यूं लिखी गई थी- ‘21 जनवरी, 1930 को लाहौर षड्यंत्र केस के सभी अभियुक्त अदालत में लाल रुमाल बांध कर उपस्थित हुए। जैसे ही मजिस्ट्रेट ने अपना आसन ग्रहण किया उन्होंने ‘समाजवादी क्रांति जिंदाबाद’, ‘कम्युनिस्ट इंटरनेशनल जिंदाबाद’, ‘जनता जिंदाबाद,’ ‘लेनिन ज़िंदाबाद’ और ‘साम्राज्यवाद का नाश हो’ के नारे लगाए। इसके बाद भगत सिंह ने अदालत में तार का मजमून पढ़ा और मजिस्ट्रेट से इसे तीसरे इंटरनेशनल को भिजवाने का आग्रह किया।

टेलिग्राम में लिखा था, ”लेनिन दिवस पर हम उन सभी लोगों को दिली अभिवादन भेजते हैं जो महान लेनिन के विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं। हम रूस में चल रहे महान प्रयोग की कामयाबी की कामना करते हैं।”

भगत सिंह लेनिन के इतने बड़े मुरीद थे कि फांसी से दो घंटे पहले उनसे मिलने आये वकील प्राणनाथ मेहता से रूसी क्रांति पर आधारित किताब ‘रिवॉल्युशनरी लेनिन’ मंगवाकर पढ़ रहे थे।

भगत सिंह के साथ-साथ लेनिन से वैचारिक रूप से बिल्कुल विपरीत महात्मा गांधी भी लेनिन के प्रशंसक थे। लेनिन की बोल्शेविक क्रांति के पहलुओं की आलोचना करने के बावजूद गांधीजी लेनिन के बारे में लिखते हैं- ‘लेनिन जैसे प्रौढ़ व्यक्ति ने अपना सर्वस्व उस पर निछावर कर दिया था; ऐसा महात्याग व्यर्थ नहीं जा सकता और उस त्याग की स्तुति हमेशा की जाएगी।’

21 जनवरी, 1924 को 54 वर्ष की अवस्था में हृदयाघात से लेनिन का निधन हो गया। लेकिन मरने के बाद उनके शव को दफनाया नहीं गया। लेनिन जैसे जिंदादिल नेता को हमेशा जिंदा रखने के लिए उनके शव को ममी में तब्दील कर दिया गया। ये ममी आज भी मॉस्को के रेड स्क्वॉयर संग्रहालय में रखी है।

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