किसी भी बड़ी गणना के लिए हम मशीन जैसे कैलकुलेटर या कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं। हमारा दिमाग उन गणनाओं को हल करने में सक्षम नहीं हैं। लेकिन शकुंतला देवी (Shakuntala Devi) को चाहे कितनी से कितनी बड़ी गणना क्यों न पूछ ली जाए, पल भर में जवाब तैयार होता था। 4 नवंबर, 1929 को देश की ‘मानव कंप्यूटर’ कही जाने वाली शकुंतला देवी का जन्म हुआ था। उनकी जन्मतिथि पर आइए आज जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें…
मानव कम्प्यूटर’ के नाम से विख्यात गणितज्ञ एवं ज्योतिषी शकुंतला देवी को संख्यात्मक परिगणना में गजब की फुर्ती और सरलता से हल करने की क्षमता के कारण ‘मानव कम्प्यूटर’ कहा जाता था। इन्होंने अपने समय के सबसे तेज माने जाने वाले कंप्यूटरों को गणना में मात दी थी। शकुंतला देवी (Shakuntala Devi) भारत की एक महान शख्सियत और बहुत ही जिंदादिल महिला थीं। वर्ष 1980-90 के दशक में भारत के गांव और शहरों में यदि कोई बच्चा गणित में होशियार हो जाता था, तो उसके बारे में कहा जाता था कि वह शकुंतला देवी बन रहा है।
कर्नाटक के एक ब्राह्मण परिवार में शकुंतला देवी (Shakuntala Devi) का जन्म हुआ। उनका जीवन गरीबी और तंगहाली में गुजरा। उनका लालन पालन गाविपुरम में हुआ था जो गुट्टाहल्ली का झोपड़पट्टी वाला इलाका था। उनके पिता एक सर्कस में काम करते थे जहां वे अपना करतब दिखाया करते थे। पिता की आय परिवार को चलाने के लिए काफी नहीं होती थी। अभावों में जीवन गुजरने के बाद भी उनकी प्रतिभा पर कोई असर नहीं पड़ा। गरीबी के अभाव में उनको कोई औपचारिक शिक्षा भी नहीं मिली। उनके जीवन का एक बहुत ही दुखद घटना भी है। एक तो आर्थिक तंगी की वजह से उनका दाखिला 10 साल की उम्र में सेंट थेरेसा कॉन्वेंट, चमाराजपेट में पहली क्लास में कराया गया। गरीबी की वजह से उनके पिता स्कूल की फीस देने में असक्षम थे जिस कारण 3 महीने बाद ही स्कूल से उनका नाम काट दिया गया। लेकिन स्कूल से नाम कटने पर उनकी प्रतिभा ठहर नहीं गई, उन्होंने अपनी प्रतिभा को निखारना शुरू रखा और बाद में दुनिया ने उनका लोहा माना।
वे बचपन से ही अद्भुत प्रतिभा की धनी एवं मानसिक परिकलित्र (गणितज्ञ) थीं। महज तीन साल की उम्र में ही संख्याओं की गणना की असाधारण प्रतिभा उनमें नजर आने लगी। एक बार पिता के साथ वह ताश खेल रही थीं। ताश खेलने के दौरान उन्होंने संख्यात्मक गणना की अपनी प्रतिभा का परिचय दिया जो उनके पिता ने पहचान लिया। समय के साथ-साथ उनकी प्रतिभा में निखार आता गया। दुनिया के सामने उनकी गणना क्षमता और असाधारण प्रतिभा मैसुरु यूनिवर्सिटी और अन्नामलाई यूनिवर्सिटी में आयोजित कार्यक्रमों से सामने आई। बहुत जल्द ही उनकी प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया मानने लगी। मैसुरु यूनिवर्सिटी में जब उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया तो उनकी उम्र महज 6 साल थी। 1944 में वह अपने पिता के साथ लंदन चली गईं। धीरे-धीरे लंदन, अमेरिका और यूरोप में भी उनकी अंकगणितीय क्षमता की चर्चा होने लगे। उनके समय में ट्रूमैन हेनरी सेफर्ड जैसे असाधारण गणना करने वाले व्यक्ति भी मौजूद थे लेकिन शकुंतला की ख्याति दब नहीं पाई।
उनसे अगर पिछली सदी की कोई तारीख या दिन के बारे में पूछा जाता था तो जवाब देने में पल भर भी नहीं लगाती थीं। वह कंप्यूटर से भी तेज गणना करने में सक्षम थीं। साल 1977 की बात है, उनको अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी ने आमंत्रित किया था। उनको 201 का 23वां घात बताने को कहा गया जो उन्होंने 50 सेकंड के अंदर बता दिया था। उन्होंने कलम और कॉपी का भी इस्तेमाल नहीं किया।
18 जून, 1980 को उन्होंने इंपीरियल कॉलेज, लंदन में 13 अंकों की दो संख्याओं का गुणनफल सिर्फ 26 सेकंड्स में बता दिया था।
गणनाओं के अलावा शकुंतला देवी (Shakuntala Devi) ने लेखन में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उन्होंने गणित के अलावा ज्योतिषशास्त्र के बारे में भी लिखा। गणित और पहेलियों के बारे में जहां उन्होंने ‘फन विद नंबर्स’, ‘मैथब्लीट’ और ‘पजल्स टू पजल्स यू’ जैसी किताबें लिखीं, वहीं उन्होंने ज्योतिषशास्त्र पर ‘ऐस्ट्रॉलजी फॉर यू’ लिखी। उन्होंने 1977 में दी वर्ल्ड ऑफ होमोसेक्शुअल लिखी थी, जो समलैंगिकता पर पहली किताब थी।
शकुन्तला देवी (Shakuntala Devi) का विवाह वर्ष 1960 में कोलकात्ता के एक बंगाली आई.ए.एस अधिकारी परितोष बनर्जी के साथ हुआ। इनका वैवाहिक सम्बन्ध बहुत दिनों तक नहीं चल सका और किसी कारणवश वर्ष 1979 में ये अपने पति से अलग हो गईं। वर्ष 1980 में ये अपनी बेटी के साथ पुन: बेंगलुरु लौट आईं। यहां वे सेलिब्रिटीज और राजनीतिज्ञों को ज्योतिष का परामर्श देने लगीं। अपने जिन्दगी के अंतिम दिनों में ये बहुत कमजोर हो गईं थीं और 21 अप्रैल, 2013 को बेंगलुरु में किडनी की बीमारी के चलते उनका निधन हो गया।
This post was last modified on November 4, 2019 12:36 PM
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