नई दिल्ली, 11 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट तीन कृषि कानूनों का विरोध करने वाली कई याचिकाओं के साथ ही दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर बैठे प्रदर्शनकारियों को हटाने संबंधी याचिका पर मंगलवार को अपना फैसला सुनाएगा।
न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और वी. रामसुब्रमण्यन के साथ ही प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को इन याचिकाओं पर की गई सुनवाई के दौरान कहा, यह मामला कल यानी 12 जनवरी 2021 को फैसले के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सोमवार को एक विस्तृत सुनवाई की, जो लगभग दो घंटे तक चली। इस दौरान प्रधान न्यायाधीश बोबडे ने कई बार केंद्र की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल (एजी) के. के. वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता से पूछा कि आखिर वे कानून के कार्यान्वयन पर इतना जोर क्यों दे रहे हैं।
पीठ ने केंद्र से कहा, हम अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ नहीं हैं। आप ही हमें बताएं कि क्या आप इन कानूनों को होल्ड करने जा रहे हैं, या फिर हम यह काम करें।
मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट रूप से उद्धृत किया कि केंद्र ने इन कानूनों के कार्यान्वयन को कुछ समय के लिए अपमानजनक रखने के प्रस्ताव पर इसे सूचित नहीं किया है।
एजी ने शीर्ष अदालत के सामने दलील दी कि कानूनों पर तब तक रोक (स्टे) नहीं लगाई जा सकती, जब तक कि वे संवैधानिक प्रक्रियाओं या मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करते हैं और इसके लिए एक विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है।
इसके बाद शीर्ष अदालत ने जवाब दिया कि केंद्र आंदोलन को रोकने में विफल रहा है और समस्या अभी भी अनसुलझी है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि भारत सरकार जिम्मेदारी लेने में विफल रही है और कानूनों के परिणामस्वरूप स्ट्राइक देखने को मिल रही है। जैसे ही एजी ने दोहराया कि कानूनों पर रोक नहीं लगाई जा सकती है, इस पर पीठ ने कहा कि केंद्र आंदोलन को रोकने में विफल रहा है और समस्या अभी तक अनसुलझी है।
शीर्ष अदालत ने माना कि किसानों और केंद्र के बीच हुई बातचीत में कोई समाधान नहीं निकल पाया है और वार्ता हर बार विफल रही है।
प्रधान न्यायाधीश ने कृषि कानूनों की जांच के लिए एक समिति के गठन के उद्देश्य से पूर्व प्रधान न्यायाधीशों का नाम सुझाए जाने को भी कहा, जो संभवत इस समिति में शामिल हो सकते हैं। यह समिति यह निर्धारित करेगी कि किसानों के लिए क्या प्रावधान अच्छे हो सकते हैं और उन्हें किन प्रावधानों से नुकसान हो सकता है।
इसके बाद दवे ने न्यायमूर्ति आर. एम. लोढा का नाम सुझाया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने न्यायमूर्ति पी. एस. सतशिवम से बात की थी, लेकिन वह हिंदी में अच्छे नहीं है, जिस कारण उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।
–आईएएनएस
एकेके/एएनएम
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