कर्ज मुद्दे, राज्यस्तरीय लालफीताशाही उद्यमिता में बाधक

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कोलकाता, 19 अगस्त (आईएएनएस)। स्टार्टअप्स को बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा कर्ज देने की अनिच्छा, नौकरशाही की लालफीताशाही और अकर्मण्यता, राज्य सरकारों के स्तर पर समन्वय और अवसंरचना की कमी तथा उचित मार्गदर्शन का अभाव उन प्रमुख कारणों में है, जो देश में उद्यमिता की भावना का नाश कर रहे हैं। उद्योग पर नजर रखनेवालों और विशेषज्ञों का ऐसा कहना है।

कोलकाता स्थित मुख्यालय वाली फेडरेशन ऑफ स्मॉल एंड मीडियम इंडस्ट्रीज (एफओएसएमआई) के अध्यक्ष विश्वनाथ भट्टाचार्य ने कहा कि स्टार्टअप्स के लिए वित्त हासिल करना एक प्रमुख समस्या है।

भट्टाचार्य ने आईएएनएस को बताया, “इसका कारण यह है कि बैंक अनिच्छुक होते हैं। हालांकि केंद्र सरकार की सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गांरटी फंड ट्रस्ट (सीजीटीएमएसई) योजना के तहत एक उद्यमी बिना गिरवी रखे दो करोड़ रुपये तक का कर्ज प्राप्त कर सकता है, लेकिन बैंकों की शाखाओं के स्तर पर इस प्रकार की योजनाओं को बढ़ावा नहीं दिया जाता है।”

उन्होंने कहा, “अन्य योजनाओं को लेकर भी बैंकों द्वारा स्टार्टअप्स की मदद नहीं की जाती है। क्योंकि बैंकों और वित्तीय कंपनियों द्वारा बाजार की व्यवहार्यता पर बहुत अधिक जोर दिया जाता है। उन्हें स्टार्टअप्स में भरोसा नहीं होता है।”

अहमदाबाद स्थित मुख्यालय वाली एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को केंद्र सरकार द्वारा 4 वर्षीय स्टार्टअप विलेज एंटरप्रेन्योरशिप प्रोग्राम्स (एसवीईपी) के लिए नेशनल रिसोर्स ऑगेनाइजेशन के रूप में चुना गया है। संस्था के फैकल्टी गौतम मजूमदार भी भट्टाचार्य के सुर में सुर मिलाते हैं।

मजूमदार ने आईएएनएस को बताया, “मुद्रा योजना के तहत कर्ज देने के लिए बैंकों के अपने मुद्दे हैं, गारंटी को लेकर मुद्दे हैं। ये सिस्टम की खामी है। खासतौर से चल रही मंदी को देखते हुए बैंक सतर्क हो गए हैं।”

कार्यक्रम के तहत पश्चिम बंगाल के दो ब्लॉकों – कूच बिहार जिले के दिनहाटा और दक्षिण 24 परगना जिले के पथारप्रतिमा में काम करने के अपने अनुभव से मजूमदार ने कहा, “कर्ज पाने में बैंकों से शायद ही कोई मदद मिलती है। हमारे पास उद्यमी हैं, हमारे पास उन उद्यमियों के प्रदर्शन का डेटाबेस है, लेकिन बैंक अभी भी कर्ज देने से हिचक रहे हैं।”

ईको-फ्रेंडली जूट, कॉटन और कैनवास बैग बनाने वाली कंपनी जूकोस एक्सपो के अभिषेक बागारिया ने याद करते हुए कहा कि अपने वेंचर को साढ़े तीन साल पहले लांच करने के बाद विभिन्न सरकारी निकायों से संपर्क करने के बावजूद वे किसी प्रकार का कर्ज हासिल नहीं कर सके हैं।

उन्होंने कहा, “उन्हें बहुत सी कागजी कार्रवाई करने की जरूरत थी और उन्होंने मुझसे कई अन्य दायित्वों को पूरा करने के लिए कहा। उसके बाद ही कर्ज देने पर विचार करते।”

उन्होंने आगे कहा, “इसलिए मुझे लगा कि कर्ज पाना एक बड़ी समस्या है, क्योंकि स्टार्टअप्स का पहले दो-तीन सालों में समान्यत: कमजोर बैंलेंस शीट होता है। अच्छे वित्तीय नतीजे देने के लिए किसी को भी वित्त की जरूरत होती है, लेकिन कमजोर नतीजे देखने के बाद उद्यमियों को कोई भी बैंक ज्यादा कर्ज नहीं देता है।”

बागारिया ने आईएएनएस से कहा, “मुझे याद है कि जब मैंने कर्ज का आवेदन किया था तो मुझे केवल 1.5 लाख रुपये का कर्ज देने की पेशकश की गई, जो कि मूंगफली बराबर भी नहीं था।”

बागारिया ने कहा कि उन्हें सरकार की स्टार्टअप इंडिया नीति से कोई मदद नहीं मिली।

उन्होंने कहा, “जो भी मैंने किया है, अपने बूते किया है।”

मजूमदार हालांकि महसूस करते हैं कि “स्टार्टअप नीति एक अच्छी पहल है और पिछले पांच सालों में चीजें बदली है।”

उन्होंने स्वीकार किया कि ‘कई चीजें’ राज्य, जिला और ब्लॉक स्तरों पर शामिल की जानी हैं। “केंद्र सरकार से जिस तरह का बुनियादी ढांचा या कार्यबल का समर्थन मिलता है, वह राज्य स्तर पर नहीं होता है।”

उन्होंने कहा कि राज्यों में विभिन्न विभागों के बीच लगभग ‘कोई समन्वय नहीं’ है। इसलिए अगर कोई स्टार्टअप मशीनें खरीदने में या सब्सिडी पाने में कोई मदद मिलती है, उसके लिए कार्यशील पूंजी जुटाना किसी उद्यमी के लिए एक कठिन काम बन जाता है।

मजूमदार ने कर्जो के वितरण में होनेवाली देरी की भी शिकायत की।

 

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