नई दिल्ली, 19 जनवरी (आईएएनएस)| करीब 50 से 70 कश्मीरी पंडितों ने अपनी मातृभूमि से जबरन पलायन के 29वें साल में शनिवार को राजघाट पर मौन प्रदर्शन किया, जिसमें स्कूली बच्चे भी शामिल थे। कश्मीर में आतंकवाद जब चरम पर था, 1990 में लगभग 50 लाख कश्मीरी पंडितों को आतंकवादियों और इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा कश्मीर से बाहर कर दिया गया था। अधिकांश विस्थापितों ने जम्मू में शरण ली, जहां वे शिविरों में रहते थे और कईयों राष्ट्रीय राजधानी में भी शरण ली।
समन्वय समूह ‘रूट्स फॉर कश्मीर’ के प्रवक्ता अमित रैना ने आईएएनएस को बताया, “हम एकमात्र समुदाय हैं, जो कभी किसी हिंसा में लिप्त नहीं रहे। यहां तक कि जब हम पीड़ित थे तब भी हमने हिंसा का सहारा नहीं लिया।”
उन्होंने कहा, “इस स्थान को विरोध के लिए इसलिए चुना गया है, ताकि अगली पीढ़ी में अहिंसा की भावना जगे और उन्हें यह सिखाया जाए कि संघर्ष जारी रहना चाहिए, लेकिन महात्मा गांधी की भावना के साथ।”
उनकी शिकायतों के बारे में पूछे जाने पर, रैना ने कहा कि 29 साल बाद भी, एक भी एफआईआर में दोषसिद्धि नहीं हुई है। उन्होंने मांग की कि पलायन को नरसंहार के रूप में मान्यता दी जाए और हत्याओं की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया जाए।
उन्होंने कहा, “सरकार को एक बात समझनी चाहिए – कि हम आर्थिक प्रवासी नहीं हैं। हम एक नरसंहार के शिकार हैं। 1990 के पलायन के दौरान 1,386 कश्मीरी पंडित मारे गए, 282 प्राथमिकी दर्ज की गईं और किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया।”
रैना के समूह द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीएएल) को सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने साल 2017 में खारिज कर दिया और कहा कि कोई भी विश्वसनीय सबूत जुटाने के लिए यह मामला बहुत पुराना है।
रैना ने जोर देकर कहा कि जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत की जांच की मांग की जा सकती है, जिनके बारे में माना जाता है कि 1945 में ताइवान में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी। तो 1989-90 के दौरान मारे गए लोगों के मामलों पर भी विचार किया जा सकता है।
एक अन्य शरणार्थी ने यह पूछे जाने पर कि क्या वापल लौटने का विकल्प है। उन्होंने आईएएनएस को बताया कि वहां रहने वाले कश्मीरियों और उनके बीच ‘खाई बहुत अधिक चौड़ी हो गई है।’
वीरेंद्र काचरू ने कहा, “समस्या सामाजिक या राजनीतिक नहीं है। लौटने क्या मतलब है, जब वहां मुझे लगातार मारे जाने के डर में जीना होगा।”
उन्होंने कहा, “जो लोग यासीन मलिक और बिट्टा कराटे (दोनों एक अलगाववादी समूह जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के हैं) की तरह खुलेआम हत्या करने की धमकी देते हैं, वे अभी भी आजाद घूम रहे हैं। दिल्ली में हमें कम से कम न्याय की उम्मीद तो है .. वहां (कश्मीर) हमें कौन सुनेगा?”
उन्होंने कहा, “हम लौटना नहीं चाहते, बल्कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई चाहते हैं।”
नवीन शिक्षण पद्धतियों, अत्याधुनिक उद्यम व कौशल पाठ्यक्रम के माध्यम से, संस्थान ने अनगिनत छात्रों…
इतिहासकार प्रोफ़ेसर इम्तियाज़ अहमद ने बिहार के इतिहास पर रौशनी डालते हुए बताया कि बिहार…
अब आवेदन की तारीख 15 जुलाई से 19 जुलाई तक बढ़ा दी गई है।
पूरे दिल्ली-NCR में सर्विस शुरु करने वाला पहला ऑपरेटर बना
KBC 14 Play Along 23 September, Kaun Banega Crorepati 14, Episode 36: प्रसिद्ध डिजाइनर्स चार्ल्स…
राहुल द्रविड़ की अगुवाई में टीम इंडिया ने 1-0 से 2007 में सीरीज़ अपने नाम…