नई दिल्ली, 5 अप्रैल (आईएएनएस)| कृषि रसायनों व कीटनाशकों को आमतौर पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है, फसलों की सुरक्षा और उपज बढ़ाने के लिए इनकी जरूरत होती है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि क्या ये रसायन सर्वथा हानिकारक है या इसके सही उपयोग नहीं किए जाने से इसके हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं।
धानुका एग्रीटेक के चेयरमैन आर.जी. अग्रवाल की माने तो इन रसायनों के सुरक्षित और सही उपयोग से कोई नुकसान नहीं होता है और फसल की पैदावार बढ़ाने में ये सहायक होते हैं।
उन्होंने बताया कि जिस प्रकार दवाइयां मानव स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होती हैं, उसी प्रकार ये रसायन पौधों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होते हैं।
उन्होंने कहा कि एक भ्रांति है कि कीटनाशक का उपयोग उत्पादन बढ़ाने का महज शॉर्टकट तरीका है। उन्होंने कहा, “कीटनाशक फसलों के स्वास्थ्य के संरक्षण के लिए आवश्यक है। हमारे खेतों में करीब 40,000 प्रकार के कीट, खरपतवार व अन्य रोगाणु पाए जाते हैं, जो हर साल करीब 11 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के कृषि उत्पाद को नष्ट कर देते है। कीटनाशक फसल के स्वास्थ्य को सुधारने और इन कीटों, खरपतवार, फफूंद, बैक्टीरिया, वायरस तथा सूक्ष्मजीवों से बचाने के लिये आवश्यक होते हैं।”
उन्होंने बताया कि टाटा स्ट्रैटेजिक, एफआईसीसीआई 2016 के एक अध्ययन/विश्लेषण के अनुसार, भारत में कीटनाशकों की खपत काफी कम है और यहां प्रति हेक्टेयर खपत केवल 0.6 किलोग्राम है, जबकि अमेरिका में यह खपत 5-7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और जापान में 11-12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।
भारत में पंजीकृत कीटनाशकों की संख्या कई अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। इनका उपयोग बेहद चक्रीय है और कुछ ही राज्यों में तथा कुछ फसलों तक ही सीमित है, जोकि स्वस्थ और अच्छी गुणवत्ता की फसल के लिए जरूरी है। भारत में दुनिया के कीटनाशक उपयोग का महज दो प्रतिशत उपयोग होता है जबकी यहां दुनिया के खाद्य का 16 प्रतिशत से अधिक उत्पादन किया जाता है।
उन्होंने कहा कि एक और भ्रांति है कि कीटनाशकों के उपयोग से कैंसर और जन्मजात विकृति हो सकती है। धानुका ने कहा, “भारत में उपयोग होने वाले कृषि रसायनों का परीक्षण वैधानिक विनियमन के अंतर्गत होता है। एक कठोर पंजीकरण प्रक्रिया में हानिकारक तत्वों/ सुरक्षा मापदंडों का मूल्यांकन होता है, जिसमें कैंसर और प्रजनन संबंधी प्रभाव भी आंका जाता है।”
उन्होंने कहा, “डब्लूएचओ के अनुसार, कोई भी कीटनाशक निर्णायक रूप से कार्सिनोजेनिक के तौर पर पंजीकृत नहीं है जबकि शराब, तंबाकू, लाल मांस आदि का इनमें उल्लेख किया गया है। हमारे देश में एक लाख की आबादी पर कैंसर के लगभग 166 मामले हैं। जबकि सिंगापुर जैसे देश में जहां बमुश्किल ही कोई कीटनाशक इस्तेमाल किया जाता है, एक लाख की आबादी पर कैंसर के लगभग 454 मामले हैं।”
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