क्यों देशद्रोह को मजबूर हुई ईरान की ‘सुनामी’ किमिया अलीजादेह?

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नई दिल्ली, 13 जनवरी (आईएएनएस)| पुरुष प्रधान ईरानी समाज में जब महिला सशक्तीकरण का अलख जगाने वाली महिलाओं की चर्चा होती है तो यह चर्चा चंद नामों तक सिमटकर रह जाती है। दुनिया की पहली महिला अंतरिक्ष पर्यटक अनोसेह अंसारी, डॉक्टर और गायिका पारदिस साबेती, ईरान की पहली नेशनल बैलेट कम्पनी की सदस्या सुसैन डेहिम, इतिहासकार नीना अंसारी और गूगल क्रोम की सिक्यूरिटी हेड पारिसा ताबरीज ही कुछ ऐसे नाम हैं, जो काफी मशक्कत के बाद हमारे जेहन में आते हैं। अनोसेह, साबेती, डेहिम, नीना और पारिसा के बीच एक बात कॉमन है। इन सबने ईरान के बाहर रहकर ये तमाम उपलब्धियां हासिल कीं लेकिन एक नाम ऐसा है, जिसने पुरुष प्रधान ईरान में ही रहकर एक ऐसे खेल में अपना नाम किया, जो धार्मिक कट्टरपंथियों के मुताबिक महिलाओं के लिए पाप है। हम ईरान के लिए ओलंपिक में पदक जीतने वाली एकमात्र महिला एथलीट किमिया अलीजादेह की बात कर रहे हैं।

ताइक्वांडो खिलाड़ी किमिया ने 2016 के रियो ओलंपिक में 57 किग्रा वर्ग का कांस्य पदक जीता था। ऐसा नहीं है कि यह किमिया की पहली सफलता थी। आज 21 साल की हो चुकीं किमिया ने 2014 के यूथ ओलंपिक में 63 किग्रा वर्ग में सोना जीता था और उसके बाद 2015 में विश्व चैम्पियनशिप में 57 किग्रा में कांस्य और फिर 2017 में विश्व चैम्पियनशिप में रजत जीता था। इन सबके अलावा किमिया ने 2018 के एशियाई चैम्पियनशिप में 62 किग्रा वर्ग में कांस्य जीता था लेकिन रियो की सफलता किमिया के लिए खास थी क्योंकि वह ईरान के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला एथलीट बनी थीं।

ईरान सरकार ने किमिया को हाथोंहाथ लिया था और उनकी उपलब्धि को खूब सराहा था लेकिन साथ ही साथ यह भी कहा था कि ताइक्वांडो जैसे खेल में महिलाओं को हिस्सा नहीं लेना चाहिए क्योंकि महिलाओं को सार्वजनिक तौर पर पैर फैलाना शोभा नहीं देता। यह हास्यास्पद लगता है लेकिन ईरान में महिलाओं की आजादी को लेकर सदियों से जारी पाबंदियों को देखते हुए हास्यास्पद नहीं लगता।

किमिया ईरानी और अजरबैजानी माता-पिता की पढ़ी-लिखी संतान हैं और अपने अधिकारों को लेकर चिंतित और सचेत रहती हैं। 10 जनवरी को किमिया ने अपना जन्म का देश छोड़ने का ऐलान किया। किमिया ने नीदरलैंड्स में शरण ली और अब वहीं ओलंपिक की तैयारी में जुटी हैं। वह ईरान के लिए ओलंपिक में हिस्सा नहीं ले सकेंगी लेकिन उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) से अनुरोध किया है कि वह उन्हें ओलंपिक झंडे के नीचे टोक्यो में खेलने की अनुमति दे।

किमिया के इस कदम से पहले भी कई ईरानी खिलाड़ी या तो देश छोड़कर कहीं और चले गए या फिर उन्होंने खेलना बंद कर दिया। सितम्बर 2019 में जूडो के विश्व चैम्पियन सैयद मोलाई ने जर्मनी की शरण ली। दिसम्बर में ईरान की टॉप रैंक्ड शतरंज चैम्पियन अलीरेजा फिरौजा ने ईरान के लिए खेलना छोड़ दिया। इसी तरह ईरान के इंटरनेशनल रेफरी अलीरेजा फाघानी ने 2019 में आस्ट्रेलिया की शरण ली।

किमिया ओलंपिक की तैयारियों के बहाने नीदरलैंड्स गईं और फिर दो दिन बाद स्वदेश कभी नहीं लौटने की घोषणा की। साथ ही किमिया ने ईरान की मौजूदा सरकार और धार्मिक कट्टरपंथियों पर जमकर हमला बोला। अपने ट्विटर हैंडल पर किमिया ने लिखा कि ईरान में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के कारण वह अब वहां कभी नहीं लौटेंगी। किमिया ने लिखा, “मैं वहां गई जहां लोगों ने चाहा। मैंने वही पहना जो उन्होंने कहा। मुझे जो भी कहा गया, मैंने किया। जहां मौका मिला, वहां मेरा शोषण किया गया लेकिन अब मैं यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकती।”

ऐसा नहीं है कि किमिया या फिर ईरान के तमाम खिलाड़ियों के इस कदर देश छोड़ने का विरोध नहीं हो रहा है। ईरानी संसद के सदस्य अब्दुलकरीम हैसेनजादेह ने कहा है कि मौजूदा सरकार की नीतियों के कारण मानव संसाधन देश छोड़कर जा रहा है।

किमिया को ईरान में ‘सुनामी’ के नाम से जाना जाता है। सरकार उनकी उपलब्धियों से बहुत खुश थी और उनके माध्यम से उसने दुनिया के सामने महिलाओं के प्रति सौम्य होने का नाटक भी किया लेकिन खुद किमिया ने स्वीकार किया है कि वह अपने देश के लिए कुछ भी मायने नहीं रखती थीं।

किमिया ने लिखा है, “मैं उनके (सरकार) लिए मायने नहीं रखती थी। असल में ईरान की कोई महिला उनके लिए मायने नहीं रखती। हम उनके लिए साधन थे क्योंकि इसी सरकार ने मेडल जीतने के बाद यहां तक कहा था कि पैर फैलाना महिलाओं को शोभा नहीं देता।”

सरकार को अपने निशाने पर लेने के बाद किमिया ने यह भी कहा कि उनके लिए देश छोड़ने का फैसला ओलंपिक स्वर्ण जीतने से भी कठिन था। किमिया ने लिखा, “मैं देश में बढ़ रहे झूठ, पाखंड और अन्याय का हिस्सा नहीं बनना चाहती। मैं एक स्वस्थ और सुरक्षित जीवन चाहती हूं। इसीलिए मैंने यह फैसला किया है लेकिन मैं जहां भी रहूंगी, ईरान की बेटी कहलाऊंगी।”

 

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