नई दिल्ली, 18 अगस्त (आईएएनएस)| हमारी बॉलीवुड फिल्मों में हाल फिलहाल में यथार्थवाद का दौर चला है। यथार्थ आधारित फिल्मों में सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक है फिल्मों के दृश्यों को यथार्थ रूप देना, जो सेट डिजाइन के जरिए दिया जा सकता है।
हालांकि डिजाइन से जुड़े लोगों को उतनी तवज्जो नहीं मिलती है, जितनी मिलनी चाहिए। आर्ट और प्रोडक्शन डिजाइनर के रूप में वर्षों से काम कर रहे संदीप शरद रावडे काफी खुश हैं कि उन्होंने ‘मिशन मंगल’ में जितनी मेहनत की थी, वह लोगों का ध्यान आर्कषित करने में कामयाब रहा। वहीं उनका यह भी मानना है कि यथार्थ, काल्पनिक कथा से ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है।
रावडे ने बॉलीवुड की नई फिल्म ‘मिशन मंगल’ के अलावा ‘परमाणु : द स्टोरी ऑफ पोखरण’ और ‘ठाकरे’ जैसी फिल्मों में काम किया है। वह अपने उनके यथार्थवादी सेट के लिए जाने जाते हैं। वह कहते हैं कि इन दिनों और आज के दौर में वास्तविकता आवश्यक है, और यह एक काल्पनिक फिल्म पर काम करने से भी अधिक चुनौतीपूर्ण है।
रावडे ने आईएएनएस से कहा, “वास्तविकता पर आधारित फिल्में करना हमेशा मुश्किल होता है। आप प्रेम कहानी में कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन जब आप सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्में या बायोग्राफी फिल्में करते हैं, तो लोग कहानी के बारे में पहले से ही जानते हैं। आप ऐसी फिल्म के साथ कुछ भी गलत नहीं कर सकते। आपको इस बारे में खास जानकारी होनी चाहिए कि किसी विशेष युग में शहर कैसा दिखता था या उस दौर में या उसके आसपास किस तरह की फिल्में रिलीज हुई थीं।”
उन्होंने आगे बताया, “जब आप फ्रेम देखते हैं तो वह सिर्फ किरदार के बारे में नहीं होता। अगर आप किरदार को हटा देते हैं तो स्क्रीन पर सबसे अधिक प्रोडक्शन का डिजाइन नजर आता है।”
रावडे ने सिर्फ यर्थाथ आधारित फिल्मों में ही काम नहीं किया है। उन्होंने अपने दो दशक के करियर में ‘सिंह इज किंग’, ‘3 इडियट्स’, ‘हाउसफुल’ और ‘ये जवानी है दीवानी’ जैसी कॉमेडी फिल्मों में भी काम किया है।
‘मिशन मंगल’ जैसी फिल्म के लिए लुक और फील बनाना, जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) मार्स ऑर्बिटर मिशन (मॉम) पर आधारित है, आसान काम नहीं था।
उन्होंने कहा, “सेटेलाइट्स और रॉकेटों को बनाने से लेकर वास्तविकता बहुत महत्वपूर्ण थी। उसके लिए हमें बहुत अध्ययन और शोध करना पड़ा। ऐसा करने में हमें लगभग ढाई महीने लग गए।”
इसरो में प्रवेश करना बहुत बड़ी बात थी।
रावडे ने कहा, “यह संभव नहीं था। हमने अपना शोध ऑनलाइन किया। सुरक्षा कारणों से इसरो की जानकारी ऑनलाइन ज्यादा उपलब्ध नहीं थी। इसरो में साधारण लोगों का एक सरल सेट-अप है। हमें अपने सेट पर सादगी चाहिए थी।”
उन्होंने आगे बताया, “इसके अलावा, निर्देशक जगन शक्ति के रिश्तेदार इसरो में काम कर रहे थे। वह एक-दो बार उस जगह का दौरा करने में सक्षम थे। यहां तक कि वहां की तस्वीरें लेने की भी अनुमति नहीं थी। इसलिए उन्होंने वहां जो भी देखा, उसे याद किया और मेरे साथ साझा किया।”
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