मनमोहन सरकार में 8.5 प्रतिशत तो मोदी सरकार में 38.8 प्रतिशत बढ़ा कृषि बजट: बीजेपी

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नई दिल्ली, 21 सितंबर(आईएएनएस)। संसद के दोनों सदनों से पास हुए कृषि क्षेत्र से जुड़े बिलों पर भाजपा का मानना है कि इससे किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल करने में आसानी होगी। वहीं, कृषि क्षेत्र में सुधारों को अमलीजामा पहनाने में भी मदद मिलेगी। किसानों से जुड़े बिलों पर मचे घमासान के बीच भाजपा ने मोदी सरकार को किसानों का हितैषी बताया है।

पार्टी का कहना है कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले यूपीए सरकार पांच वर्ष के मुकाबले मोदी सरकार में कृषि बजट कहीं ज्यादा बढ़ा है।

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव के मुताबिक 2009 से 2014 (मनमोहन सरकार) के पांच सालों में कृषि बजट में 8.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, वहीं केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृžव वाली सरकार आने बाद 2014 से 2019 के बीच कृषि बजट में 38.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह आंकड़ा मोदी सरकार के किसान हितैषी नीयत, नीति और नेतृत्व का प्रमाण है।

भूपेंद्र यादव के मुताबिक, “जब हम कृषि सुधारों की बात करते हैं तो इसकी आवश्यकता को लेकर कुछ तथ्यों को समझना जरुरी है। भारत की भू-संपदा कृषि उपज के लिहाज से समृद्ध है। इसके बावजूद खाद्यान्न प्रोसेसिंग के मामले में भारत की भागीदारी आजादी के इतने साल बाद भी सिर्फ 5 फीसद ही हो पाई है। देश की पचास प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि क्षेत्र में कार्यरत है और देश की जीडीपी में इसका योगदान 12 प्रतिशत है। लेकिन इसके बावजूद साठ सालों तक देश में रही सरकारों द्वारा नीतिगत उपेक्षा का परिणाम हुआ कि कृषि क्षेत्र अपेक्षित विकास नहीं कर सका।”

भाजपा के राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव ने अपने चर्चित ‘संसद डायरी’ में कहा, इसमें भी कोई संदेह नहीं कि हमारे अन्नदाता किसानों की कठोर मेहनत की बदौलत हमारी उपज बढ़ी है। लेकिन इतना पर्याप्त नहीं होता। उपज का सही मूल्य नहीं मिले, पारदर्शी और सुलभ बाजार नहीं मिले तो किसान की उपज का मोल कम हो जाता है। किसानों की इस समस्या की तरफ पिछली कांग्रेस सरकारों में आंख मूंदे रखा। ऐसा बिलकुल नहीं है कि पिछली सरकार को इसका भान नहीं था, किन्तु इसमें सुधार करने की उनकी नीयत नहीं थी।”

उन्होंने कहा कि 2014 में आई मोदी सरकार ने उन बदलावों को अमल में लाने की नीयत दिखाई। कृषि व्यापार, बाजार, मूल्य संवर्धन, निर्यात को बल देते हुए एक न्यू एज एग्रीकल्चर को लाया जाए, इन सबके लिए हमारी सरकार ने एक लाख करोड़ रुपए का कृषि में निवेश करने का न केवल लक्ष्य तय किया है, बल्कि आगे भी बढ़ रही है। यह कृषि बिल इसकी एक कड़ी है।

आज कृषि क्षेत्र को उच्चस्तरीय तकनीक, बेहतर बाजार संरचना, प्रोसेसिंग, व्यापार और निर्यात व्यवस्था की आवश्यकता है। इसमें कृषि स्टार्टअप शुरू करने की जरूरत है। सरकार के प्रयासों से आज इस दिशा में काम शुरू हो चुका है और कृषि विषय के जानकार युवाओं द्वारा 1000 कृषि स्टार्टअप एवं 20000 कृषि क्लीनिक शुरू कर किए गए हैं।

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव ने कहा कि किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य मिले, बिचौलियों से कृषि बाजार को मुक्ति मिले, पारदर्शी और तकनीकयुक्त सुगम बाजार का वातावरण हो, इस दिशा में कृषि सुधार से जुड़े ये विधेयक कारगर सिद्ध होने वाले हैं। किन्तु दुर्भाग्यपूर्ण है की किसान हितों से जुड़े इन सुधारों को विरोधी दल अपनी सतही राजनीति की भेंट चढाने का प्रयास करते हुए रोकने की कोशिश में लगे रहे। जबकि 2010 में खुद कांग्रेस-नीत संप्रग की सरकार में ही उनके ही एक मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अध्यक्षता में कृषि उत्पादन पर गठित वकिर्ंग ग्रुप ने अपनी रिपोर्ट में कृषि बाजार से एकाधिकार को मुक्त करके इसे पारदर्शी बनाने की जरूरत को बताया था। लेकिन एक बार फिर कांग्रेस ने उस रिपोर्ट की अनदेखी की। परिणाम हुआ कि कृषि सुधारों के मामले में नीतिगत पंगुता बरकरार रही है। आज जब मोदी सरकार ने किसान हितों में इस निर्णय को लिया है तो इसका विरोध कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता है।

भूपेंद्र यादव ने कहा कि, ” आज जो बिल हम किसानों की स्थिति में सुधार के लिए लाए हैं, वो वैल्यू एडिशन है। यानी जो वर्तमान व्यवस्था है, उसमें एक नया विकल्प इसके द्वारा जोड़ा गया है। इस विकल्प के द्वारा यदि हम इस क्षेत्र में विकास की नयी संभावनाओं को तलाशना चाहते हैं, तो उसे विपक्ष क्यों रोक रहा है? विपक्ष को इस मुद्दे पर राजनीति के लिए किसानों को गुमराह करना बंद करना चाहिए. यह बिल किसानों के हित में हैं, अत: विपक्ष को भी अपनी धारणा पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।”

–आईएएनएस

एनएनएम/जेएनएस

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