कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार जो कुछ भी करती है, उसमें ‘एकाधिकार’ की भावना रखती है और यह सरकार किसी भी तरह की बातचीत में विश्वास नहीं करती। हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप सम्मिट में श्रोताओं के साथ संवाद में राहुल ने कहा कि सरकार ने बातचीत के उनके प्रयास को भी हमेशा अस्वीकार कर दिया है।
राहुल ने कहा, “अगर इन बातचीतों को दरकिनार न किया गया होता तो, वस्तु एवं सेवा कर(जीएसटी) को सही तरीक से लागू किया जा सकता था और जम्मू एवं कश्मीर में स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती।”
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, “सत्ता में बैठे लोग इस बात पर सहमत हैं कि उन लोगों का ज्ञान पर एकाधिकार है। वे सहमत हैं कि केवल वे लोग हीं है, जो समझते हैं कि इस देश में और कोई नहीं है, जो उनके अलावा देश को समझता है, या यहां के लोगों के सपने को समझता है।”
राहुल ने कहा कि मोदी सरकार की ‘मूर्खतापूर्ण’ नोटबंदी और जीएसटी पहल ने व्यापारियों को मुश्किल में डाल दिया।
उन्होंने कहा कि देश अपने हितधारकों के साथ बातचीत के अभाव में आगे नहीं बढ़ सकता।
राहुल ने कहा, “ऐसी बातचीत की जरूरत है, जो आगे बढ़ने की दृष्टि प्रदान करे, लेकिन वास्तव में इसी का अभाव है।”
कश्मीर के मुद्दे पर केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली से बातचीत करने का प्रयास असफल रहने पर राहुल ने कहा, “मैंने कई बार बातचीत का प्रयास किया, लेकिन इसे नजरअंदाज किया गया।”
राहुल ने कहा, “एक बार जेटली से मेरी मुलाकात हुई और मैंने कश्मीर पर उनसे बातचीत शुरू की। यह वहां हिंसा शुरू होने से पहले की बात है। मैंने कहा कि हम घाटी में गंभीर समस्या का सामना करने वाले हैं और उनका जवाब था, ‘नहीं, ऐसा नहीं है।”‘
उन्होंने कहा कि कांग्रेस-नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(संप्रग) सरकार में जीएसटी का प्रारूप काफी आसान और लोगों के अनुकूल था।
राहुल ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने जुलाई 2017 में नई कर व्यवस्था लागू करने के दौरान विचारों को तवज्जो नहीं दी।
उन्होंने कहा, “अगर बातचीत हुई होती, तो हमारे पास बेहतर जीएसटी होता। कोई भी जीएसटी से खुश नहीं है और यह उद्योग व अर्थव्यवस्था दोनों को चौपट कर रहा है।”
राहुल ने यह भी कहा कि संप्रग के कार्यकाल में आधार का मतलब लोगों की जिंदगी को आसान बनाना था, जबकि मोदी के कार्यकाल में यह एक प्रकार का ‘निगरानी’ रखने वाला उपकरण बन गया।
उन्होंने कहा, “उनके और हमारे बीच यही अंतर है कि हम लोगों पर विश्वास करते हैं, हमारा मानना है कि ज्ञान सभी के पास होता है।”
राहुल ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि धार्मिक स्थानों पर उनके दौरे से भाजपा क्यों ‘व्यथित’ होती है।
राहुल ने कहा, “मेरे मंदिर जाने का हिंदुत्व से कुछ लेना-देना नहीं है। मैं यह समझ नहीं पाता कि मैं क्यों नहीं मंदिर, चर्च और गुरुद्वारा जा सकता। भाजपा को लगता है कि केवल वे लोग ही मंदिर जा सकते हैं।”
उन्होंने कहा, “वे जो कुछ भी करते हैं, उसपर एकाधिकार की भावना रखते हैं, सभी संस्थानों पर एकाधिकार। अगर कोई मंदिर जाता है तो यह उसका अपना स्वभाव है।”
–आईएएनएस
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