मोदी का नया मिशन : खाद्य आयात पर खर्च का पैसा किसानों की झोली में डालने की तैयारी

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नई दिल्ली, 21 फरवरी (आईएएनएस)। मोदी सरकार अब खाद्य तेल आयात पर देश की निर्भरता कम करने को लेकर मिशन मोड में काम करने जा रही है, जिसके तहत विभिन्न स्रोतों से खाने के तेल का उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ तेल की किफायती खपत के लिए जन-जागरूकता भी फैलाई जाएगी। विशेषज्ञों की मानें तो मोदी सरकार के इस नये मिशन का मकसद खाद्य तेल के मामले में न सिर्फ आत्मनिर्भरता लाना है बल्कि इसके आयात पर होने वाले खर्च का पैसा किसानों की झोली में डालना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीति आयोग की छठी गवर्निंग काउंसिल की बैठक में शनिवार को इस बात का जिक्र भी किया कि कृषि प्रधान देश होने बावजूद भारत सालाना करीब 65,000-70,000 करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात करता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आयात पर खर्च होने वाला यह पैसा देश के किसानों के खाते में जा सकता है।

हम बात राष्ट्रीय तिलहन मिशन की कर रहे हैं जिस पर अगले पांच साल में करीब 19,000 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मिशन की तैयारी मुक्कमल है और आगामी वित्त वर्ष में एक अप्रैल से इसे अमलीजामा पहनाया जाएगा।

भारत हर साल तकरीबन 150 लाख टन खाद्य तेल का आयात करता है, जबकि घरेलू उत्पादन करीब 70-80 लाख टन है। देश की बढ़ती आबादी के साथ खाने के तेल की खपत भी आगे बढ़ेगी। ऐसे में इतने बड़े अंतर को पाटकर खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता हासिल करना एक बड़ा लक्ष्य है। लेकिन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र कहते हैं कि जब कोई काम मिशन मोड में होता है तो उसमें सफलता मिलने की संभावना ज्यादा होती है।

उन्होंने बताया कि देश में तिलहनों का उत्पादन बढ़ाने के लिए रकबा के साथ-साथ उत्पादकता बढ़ाने पर ज्यादा जोर दिया जाएगा। डॉ. महापात्र ने बताया कि देश के पूर्वी क्षेत्र में करीब 110 लाख हेक्टेयर जमीन ऐसी है जो धान की फसल लेने के बाद खाली रहती है, उसमें सरसों उगाने से इसका रकबा बढ़ सकता है। इसके अलावा, पंजाब, हरियाणा समेत उत्तर भारत में जहां पानी की कमी है वहां धान, गेहूं और गन्ना जैसी फसलों के बजाय दलहनों व तिलहनों की खेती के प्रति किसानों को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

डॉ. महापात्र ने कहा कि धान और गेहूं की तरह किसानों को अगर तिलहनों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिलेगा और उच्च पैदावार देने वाले बीज उपलब्ध होंगे तो इन फसलों की खेती में उनकी दिलचस्पी बढ़ेगी।

उन्होंने बताया कि आईसीएआर के अध्ययन के अनुसार, देश में 20 एग्रो इकोलोजिकल रीजन यानी कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्र हैं जिन्हें 60 कृषि पारिस्थितिकी उपक्षेत्रों में बांटा गया है। डॉ. महापात्र ने कहा कि क्षेत्र विशेष की जलवायु में उपयुक्त फसलों की खेती के लिए बीजों की वेरायटी तैयार की जाती है जिससे पैदावार बढ़ती है। उन्होंने बताया कि भारत सबसे ज्यादा पाम तेल आयात करता है, लेकिन देश में अब पाम की खेती बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है जोकि आत्मनिर्भरता लाने में मदद मिले।

भारत में कुल नौ तिलहनी फसलों की खेती हर साल की जाती है। इनका सालाना उत्पादन विगत चार साल से 300 लाख टन से ज्यादा हो रहा है और साल दर साल वृद्धि हो रही है। इनमें ऐसे भी तिलहन व तेल शामिल हैं जिनका उपयोग सिर्फ उद्योग में ही होता है लेकिन ज्यादातर का उपयोग खाद्य तेल के रूप में होता है। आईसीएआर के तहत आने वाले राजस्थान के भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डॉ. पी.के. राय ने बताया कि देश में तिलहनों का उत्पादन बढ़ाने की काफी संभावना है और इसकी मिसाल के तौर पर सरसों को देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि मिशन मोड में सरसों की खेती पर जोर देने से इस साल रकबा रकबा बढ़ा है और फसल अच्छी होने से उत्पादन 110 से 120 लाख टन के बीच रह सकता है।

कृषि मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि अगले पांच साल में देश में तिलहनों का उत्पादन दोगुना तक जा सकता है।

मौसमी फसलों के अलावा, देश में कुछ बारहमासी पेड़ों के बीज से तेल प्राप्त किया जाता है। फिर, तेल के द्वितीयक स्रोत भी हैं। कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हर स्तर पर प्रगति का लक्ष्य रखा गया है। राष्ट्रीय तिलहन मिशन के तहत चार सब मिशन बनाया गए हैं जो इस प्रकार हैं:

प्राथमिक स्रोत से तेल का उत्पादन बढ़ाना : इसके अंर्तगत सोयाबीन, सरसों-तोरिया, मूंगफली, सूर्यमुखी, तिल, कुसुम और रामतिल का उत्पादन बढ़ाने की योजना है।

द्वितीयक स्रोत से तेल का उत्पादन बढ़ाना : इसके अंतर्गत ऐसी फसल, जिसका उत्पादन मुख्य रूप से तेल के लिए नहीं किया जाता है, बल्कि तेल उससे एक उपोत्पाद (बाई प्रोडक्ट) के रूप में मिलता है। मसलन, कॉटन तेल, अलसी का तेल, ब्रायन राइस तेल आदि।

तिलहन उत्पादन क्षेत्र में प्रसंस्करण युनिट लगाना : जिन क्षेत्रों में तिलहनों का उत्पादन होता है, वहां प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना का प्रावधान किया गया है, जिससे किसानों को उनकी फसलों का दाम मिल सके।

उपभोक्ता जागरूकता : तेल का किफायती उपभोग के फायदे से लोगों को अवगत कराने के लिए जागरूकता अभियान चलाना।

विषेषज्ञ बताते हैं कि देश की बढ़ती आबादी के साथ तेल खपत में लगातार वृद्धि हो रही है, लेकिन भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), के एक शोध में एक व्यक्ति को रोजाना 30 ग्राम तेल खाने की सलाह दी गई है। इसका अनुपालन करने पर प्रति व्यक्ति सालाना तेल की खपत करीब 11 किलो होगी। जबकि 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में प्रति व्यक्ति तेल की सालाना खपत 19.3 किलो है।

–आईएएनएस

पीएमजे-एसकेपी

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