भोपाल, 2 अगस्त (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार के भविष्य को लेकर बीते सात माह से लगातार सवाल उठ रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) गोवा व कर्नाटक के घटनाक्रम को राज्य में दोहराने की रणनीति पर काम कर रही थी, मगर पिछले दिनों के घटनाक्रमों से भाजपा के इन मंसूबों पर धुंधलका छाने लगा है। राज्य में कांग्रेस सरकार के पास पूर्ण बहुमत नहीं है। यह सरकार बहुजन समाज पार्टी (बसपा), समाजवादी पार्टी (सपा) और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से चल रही है। इसी के चलते भाजपा की नजर असंतुष्ट विधायकों पर थी, क्योंकि समर्थन देने वाले विधायकों को मंत्री बनाने की चर्चा रही है, साथ ही कई विधायकों के विद्रोही बयान भी आ रहे थे।
सरकार के भीतर सब कुछ ठीक न होने के कारण ही भाजपा को उम्मीद थी कि गोवा और कर्नाटक को राज्य में दोहराना आसान होगा। यही कारण था कि भाजपा की ओर से पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा था, “गोवा के समंदर से मॉनसून उठा है, कर्नाटक होते मध्यप्रदेश की ओर बढ़ रहा है। कुछ दिनों बाद मध्यप्रदेश का मौसम सुहाना होगा।” मिश्रा के इस बयान के बाद सियासी गलियारों में हलचल मच गई।
मिश्रा के बयान पर शुरू हुई हलचल थमी भी नहीं थी कि नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने विधानसभा तक में सरकार के भविष्य पर सवाल उठाते हुए दावा किया कि उनके दल को विधायकों की खरीद-फरोख्त जैसे कार्यो पर विश्वास नहीं है, लेकिन ऊपर से नंबर एक और दो का आदेश हुआ तो राज्य में ऐसा करने में एक दिन भी नहीं लगेगा।
लेकिन इसी बीच कांग्रेस सरकार ने 24 जुलाई को विधानसभा में दंड विधान संशोधन विधेयक पारित कराने के लिए भाजपा के दो विधायकों नारायण त्रिपाठी और शरद कोल का समर्थन हासिल कर भाजपा के इरादों को कमजोर करने का काम किया है।
दोनों विधायकों ने न सिर्फ विधेयक को समर्थन दिया, बल्कि उन्होंने बयान भी दिया कि वे पार्टी में घुटन महसूस कर रहे हैं।
इस घटनाक्रम के बाद से भाजपा का रुख ही बदल चला है और अब वह सीधे तौर पर कांग्रेस पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगाने लगी है। पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष राकेश सिंह और नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने भी गुरुवार को कांग्रेस पर विधायकों को लालच देने का आरोप लगाया है। साथ ही दावा किया है कि उनके विधायक एकजुट हैं और चट्टान की तरह अडिग हैं।
भाजपा के दो विधायकों द्वारा सरकार के विधेयक का समर्थन किए जाने के बाद राज्य सरकार के जनसंपर्क मंत्री पी. सी. शर्मा ने तो यहां तक कह दिया है कि “भाजपा के कई विधायक बाउंड्री लाइन पर खड़े हैं। जो विधायक आते हैं, उनका कांग्रेस स्वागत करती है।”
सूत्रों के अनुसार, भाजपा के पांच विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं।
दूसरी ओर भाजपा के पूर्व मंत्री और विधायक विश्वास सारंग का कहना है, “भाजपा सरकार को गिराना नहीं चाहती है। यह सरकार तो अपने भीतर चल रहे असंतोष के चलते खुद ही गिर जाएगी।”
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटेरिया का मानना है, “भाजपा के दो विधायकों का विधानसभा में सरकार के विधेयक का समर्थन करना और पांच विधायकों के कांग्रेस के संपर्क में होने के कारण राज्य का सियासी तापमान बदला हुआ है। इसी के चलते भाजपा नेताओं के स्वर बदले हुए हैं।”
राज्य की 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं। यानी पूर्ण बहुमत से दो कम। सरकार को बसपा के दो, सपा के एक और चार निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है। इस तरह कांग्रेस के पास 121 विधायकों का समर्थन है। वही भाजपा के पास 108 विधायक हैं। भाजपा के एक विधायक के सांसद बनने से एक स्थान खाली है। इस बीच भाजपा के दो विधायकों का समर्थन मिलने से सरकार अपने को ज्यादा सुरक्षित महसूस करने लगी है।
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