भोपाल, 22 जुलाई (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां लोगों को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए ‘पानी का अधिकार’ अधिनियम बनने जा रहा है।
अधिनियम कैसा हो, हर वर्ग के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने और दुरुपयोग रोकने के लिए क्या प्रावधान किए जाएं, इस पर सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर मंथन चल रहा है। राज्य सरकार ने आमजन को पानी का अधिकार देने के लिए अधिनियम बनाने का ऐलान पिछले माह किया था।
अधिनियम बनाने के लिए चल रही कवायद का ब्यौरा देते हुए लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचईडी) मंत्री सुखदेव पांसे ने आईएएनएस से कहा कि पानी के अधिकार अधिनियम का प्रारूप तैयार करने के लिए एक कमेटी गठित की गई है। कमेटी में पंचायत एवं ग्रामीण विकास, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, नगरीय प्रशासन एवं विकास, राजस्व, वन विभाग एवं जल संसाधन विभाग के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है। विभिन्न विभागों के आला अधिकारी इस मसले पर अध्ययन कर रहे हैं और प्रारूप को अंतिम रूप देने में लगे हैं।
उन्होंने आगे बताया, “मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है, जहां पानी के अधिकार का अधिनियम बनाने की प्रक्रिया चल रही है। इस अधिनियम को लागू करने के लिए बजट में एक हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।”
प्रदेश में एक तरफ जहां सरकारी स्तर पर पानी के अधिकार का अधिनियम बनाने की प्रक्रिया जारी हैं, वहीं दूसरी ओर गैर सरकारी संगठन भी इस दिशा में सक्रिय हैं। राजधानी में रविवार को मंथन अध्ययन केंद्र और जिदगी बचाओ अभियान द्वारा आयोजित जन परामर्श (पब्लिक कंसल्टेशन) कार्यक्रम में इस बात पर जोर दिया गया कि प्रदेश सरकार द्वारा बनाए जा रहे कानून में निजीकरण से बचा जाए, ताकि समाज के सभी वर्गो को बिना भेदभाव के जरूरत का पानी मिल सके।
जन परामर्श के दौरान विभिन्न संगठनों से जुड़े लोगों ने कहा कि सबसे पहले जरूरी है कि स्थानीय जलस्रोत आधारित जलापूर्ति योजनाएं बनाई जाएं, जहां जलस्रोत नहीं है, वहां पुराने जलस्रोतों को पुनर्जीवित किया जाए। इसके साथ ही अभियान चलाकर नए जलस्रोतों का निर्माण भी किया जाए, ताकि स्थानीय जरूरत को पूरा किया जा सके।
विशेषज्ञों ने कहा कि जल संरक्षण के काम हो रहे हैं मगर वे दिखाई नहीं देते, क्योंकि जो काम हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा पानी का उपयोग हो रहा है। इसलिए जरूरी है कि इस समस्या से निपटने के लिए कानून में ऐसे प्रावधान करने होंगे, जिससे जल संरक्षण की दर बढ़े और पानी का कम उपयोग किया जाए।
उन्होंने कहा कि जल संकटग्रस्त इलाकों में पानी की अधिक खपत करने वाले उद्योग नहीं लगना चाहिए, साथ ही सरकार को चाहिए कि वह इस जनहितैषी कानून को पारित करने से पहले इसके प्रारूप को सार्वजनिक कर इसके बारे में नागरिकों की राय ले। ऐसा होने पर ही जनता की हिस्सेदारी वाला अधिनियम बन पाएगा।
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