मप्र में दलितों को रिझाने की जुगत, भाजपा-कांग्रेस आमने सामने

Follow न्यूज्ड On  

भोपाल, 18 फरवरी (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश में सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी दल कांग्रेस इन दिनों दलित वोट बैंक को रिझाने की जुगत में लगे हैं। भाजपा के तमाम बड़े नेता जहां दलितों के घर भोजन कर सामाजिक समरसता का संदेश दे रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस दलितों के साथ पंचायत करने की रणनीति पर काम कर रही है। कुल मिलाकर दोनों दलों की नजर इस वोट बैंक पर है।

राज्य की सियासत में दलित के साथ आदिवासी वोट बैंक की खासी अहमियत रही है। यही कारण है कि सत्ता हासिल करने के लिए दोनों ही राजनीतिक दल आदिवासियों के साथ दलित वोट बैंक को रिझाने की कोशिश करते रहे हैं। राज्य में अनुसूचित जाति के लगभग साढ़े 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के 21 फीसदी वोटर हैं। यह दोनों ही वर्ग सत्ता की बाजी पलटने में सक्षम हैं। यही कारण है की इन दिनों एक बार फिर दलितों पर डोरे डालने का अभियान चल पड़ा है।

राज्य में दलित और आदिवासी वर्ग को कांग्रेस का समर्थक माना जाता रहा है, मगर धीरे-धीरे हालात बदले हैं।

राज्य मंे वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटों पर भाजपा को अपेक्षा के अनुरुप सफलता नहीं मिल पाई थी। यही कारण है कि नगरीय निकाय के चुनाव से पहले भाजपा ने नई रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। इसी के तहत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा जब कई इलाकों के दौरे पर गए तो, उन्होंने दलितों के आवास पर भोजन भी किया, भाजपा इसे सामाजिक समरसता बता रही है।

भाजपा के प्रदेश महामंत्री भगवानदास सबनानी का कहना है कि, भाजपा सहज रुप से समाज की अंतिम पंक्ति में जो व्यक्ति बैठा है, उसको मुख्य धारा में लाना चाहती है। पं दीनदयाल उपाध्याय के एकात्ममानव दर्शन के सिद्धांत पर काम करते हुए जो नीचे हैं, पीछे हैं, उसका हौसला बढ़ाते हुए आगे बढ़ाना हमारे अंत्योदय के कार्यक्रम में है। वहीं कांग्रेस चुनाव आते ही प्रपंच करने लगती है।

भाजपा नेताओं के दलितों के घर जाकर भोजन करने के अभियान पर कांग्रेस तंज कस रही है। प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा का कहना है कि, कांग्रेस ने हमेशा दलित वर्ग के उत्थान की योजनाएं बनाई है, वहीं भाजपा सिर्फ दिखावा करती है। चुनाव आते ही फोटो सेशन का दौर शुरू हो जाता है। कांग्रेस वास्तव में दलित हितैशी है इसीलिए दलित पंचायत लगाने जा रहे हैं।

वही राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आगामी समय में नगरीय निकाय के चुनाव होने वाले हैं, यही कारण है कि दलितों पर दोनों ही दलों की खास नजर है। नगरीय इलाकों में आदिवासियों की तादाद कम है, इसलिए अभी आदिवासियों पर ज्यादा ध्यान नहीं है। जैसे ही पंचायत के चुनाव आएंगे, आदिवासियों को लुभाने का सिलसिला शुरू हो जाएगा।

–आईएएनएस

एसएनपी/एएनएम

Share

Recent Posts

जीआईटीएम गुरुग्राम ने उत्तर भारत में शीर्ष प्लेसमेंट अवार्ड अपने नाम किया

नवीन शिक्षण पद्धतियों, अत्याधुनिक उद्यम व कौशल पाठ्यक्रम के माध्यम से, संस्थान ने अनगिनत छात्रों…

March 19, 2024

बिहार के नींव डालने वाले महापुरुषों के विचारों पर चल कर पुनर्स्थापित होगा मगध साम्राज्य।

इतिहासकार प्रोफ़ेसर इम्तियाज़ अहमद ने बिहार के इतिहास पर रौशनी डालते हुए बताया कि बिहार…

March 12, 2024

BPSC : शिक्षक भर्ती का आवेदन अब 19 तक, बिहार लोक सेवा आयोग ने 22 तक का दिया विकल्प

अब आवेदन की तारीख 15 जुलाई से 19 जुलाई तक बढ़ा दी गई है।

July 17, 2023

जियो ने दिल्ली के बाद नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद में ट्रू5जी सर्विस शुरु की

पूरे दिल्ली-NCR में सर्विस शुरु करने वाला पहला ऑपरेटर बना

November 18, 2022

KBC 14: भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान कौन थे, जिन्होंने इंग्लैंड में भारत को अंतिम बार एक टेस्ट सीरीज जिताया था?

राहुल द्रविड़ की अगुवाई में टीम इंडिया ने 1-0 से 2007 में सीरीज़ अपने नाम…

September 23, 2022