भोपाल, 15 फरवरी (आईएएनएस)| भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लंबी जद्दोजहद और खींचतान के बाद मध्य प्रदेश में पार्टी इकाई प्रमुख के रूप में सांसद वी.डी. शर्मा की ताजपोशी कर दी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के रास्ते से पार्टी में आए शर्मा की इस नियुक्ति ने एक बात साफ कर दी है कि आने वाले दिनों में राज्य में संघ के एजेंडे को लेकर पार्टी आगे बढ़ेगी। शर्मा का भाजपा में सियासी सफर मुश्किल से सात साल का है।
चंबल इलाके के मुरैना से नाता रखने वाले वी.डी. शर्मा ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही हासिल की और उसके बाद कृषि में स्नातकोत्तर किया। वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में 1986 में सक्रिय हुए, जहां वह 2013 तक रहे। इस दौरान राष्ट्रीय मंत्री, राष्ट्रीय महामंत्री, प्रदेश संगठन मंत्री जैसे पदों की जिम्मेदारी उन्होंने संभाली। वर्ष 2013 मंे उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली।
शर्मा का बीते सात साल का सियासी सफर बड़ा दिलचस्प रहा। भाजपा की प्रदेश इकाई में वह वर्ष 2016 से प्रदेश महामंत्री बने। इसके अलावा उन्हें झारखंड की छह लोकसभा सीटों का प्रभारी बनाया गया। दिल्ली, बिहार, असम आदि प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कार्य संचालन एवं प्रबंधन की जिम्मेदारी उन्हें दी गई। नेहरू युवा केंद्र के वह उपाध्यक्ष रहे हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में शर्मा को उम्मीदवार बनाने की बात आई तो तमाम दिग्गज नेताओं ने उनका खुलकर विरोध किया। विदिशा, भोपाल, मुरैना, ग्वालियर से विरोध के चलते उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया गया। संघ का दवाब होने पर शर्मा को खजुराहो से उम्मीदवार बनाना ही पड़ा और वहां से उनके खाते में जीत आई। शर्मा की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से नजदीकी किसी से छिपी नहीं है।
भाजपा के सूत्रों का कहना है कि शर्मा को अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर तमाम बड़े नेता विरोध कर रहे थे, मगर संघ के वीटो के आगे किसी की नहीं चली। शर्मा की जहां संघ प्रमुख से नजदीकी है, तो वहीं वह पार्टी के प्रमुखों के बीच भी गहरी पैठ रखते हैं। संगठन क्षमता भी अन्य नेताओं के मुकाबले उनमें कहीं ज्यादा है। प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक उन्होंने एबीवीपी में संगठनात्मक ढांचे को काफी मजबूत किया था, जिससे सभी वाकिफ हैं।
राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस कहते हैं, “वी.डी. शर्मा युवा हैं, उनकी उम्र अभी 50 के पार नहीं है। युवाओं के बीच गहरी पैठ है, इसलिए पार्टी और संघ उनका बेहतर उपयोग करना चाहते हैं। इसी के चलते तमाम विरोधों और दावेदार दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। राज्य में सक्रिय नेताओं में शर्मा उन कम नेताओं में हैं, जिन्हें संगठन और संघ दोनों का संरक्षण हासिल है। वहीं बड़े नेताओं के बीच अपने कौशल को दिखाना शर्मा के लिए बड़ी चुनौती होगी।”
भाजपा और संघ दोनों ही नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के लिए जनसमर्थन जुटाने के प्रयास में लगे हुए हैं। राज्य की कमलनाथ सरकार लगातार इसका विरोध कर रही है, वहीं भाजपा इसके समर्थन में माहौल नहीं बना पाई है। पिछले दिनों संघ प्रमुख मोहन भागवत का राज्य का प्रवास हुआ तो उन्होंने सीएए के समर्थन के लिए अभियान चलाने पर जोर दिया। अब संगठन और संघ दोनों ही शर्मा के सहारे अपने अभियान को तेजी से आगे बढ़ा सकते हैं।
राज्य में पार्टी के तीनों प्रमुख पद संगठन महामंत्री सुहास भगत, प्रदेश प्रभारी डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे और प्रदेश अध्यक्ष शर्मा ऐसे नेता हैं, जिनकी कार्यशली संघ की है। लिहाजा इस बात की संभावना बढ़ गई है कि राज्य में अब भाजपा संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम करेगी, जिससे पार्टी एक अरसे से दूर चल रही थी।
भाजपा राज्य में डेढ़ दशक बाद सत्ता से बाहर हुई है। विधानसभा के उपचुनाव में भी उसे हार मिली। आने वाले समय में राज्य में दो स्थानों पर उपचुनाव होना है, वहीं नगरीय निकाय चुनाव नजदीक है। भाजपा को कांग्रेस की सरकार के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है। इस स्थिति में संगठन को एक बेहतर नेतृत्व की तलाश थी, उसी के चलते शर्मा पर दांव लगाया गया है।
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