Happy Birthday MS Dhoni: भारतीय टीम का सबसे करिश्माई कप्तान जिसने हार को हराकर अपनी अलग पहचान बनाई

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Happy Birthday MS Dhoni: कहते हैं कुछ लोग अपनी किस्मत लेकर पैदा होते हैं, लेकिन कुछ शख्स ऐसे भी भी होते हैं जो अपनी किस्मत खुद लिखते हैं और इन्हीं लोगों में से एक है भारतीय क्रिकेट टीम पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी। धोनी ने अपनी मेहनत, लगन, जुनून और जज्बे के बलबूते खेल की जिन बुलंदियों को छूआ वो किसी सपने से कम नहीं।

हम सभी इस बात से अच्छे से वाकिफ है कि सपने जितने बड़े होते है उसके पीछे उतनी ही मेहनत छिपी होती है। धोनी ने एक छोटे शहर से निकल कर कामयाबी के इस शिखर को छूने के लिए एक बहुत मुश्किल सफ़र तय किया हैं। ये धोनी ही थे जिसने दिखाया कि हारी हुई बाजी को जीत में कैसे बदला जाता है।

एक वक्त धोनी ने जिसे भी छुआ वो सोना बन गया। लेकिन वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में मिली हार के बाद सबसे ज्यादा बात इसी बात को लेकर की जा रही है कि आखिर धोनी कब क्रिकेट को अलविदा कहेंगे। कई क्रिकेट फैंस तो मान चुके है कि धोनी अपना आखिरी मैच खेल चुके है। लेकिन इसके इतर उनके उस सफर पर नजर डालते है जिसकी बदौलत उन्होंने भारत को क्रिकेट की दुनिया में एक अलग पहचान दिलाई।

धोनी का क्रिकेट सफ़र

ये सफर है रांची में पैदा हुए एक ऐसे साधारण से लड़के का…जिसे उसके असाधारण खेल ने बाकियों से अलग कतार में खड़ा कर दिया। धोनी को खुद अपनी उड़ान की ऊंचाई मालूम नहीं थी। ये कहानी है छोटे शहर में बड़े सपने देखने वाले एक नौजवान लड़के की… ये दास्तां है करियर और अपने सपने में किसी एक को चुनने की। ये एक ऐसे संघर्ष की कहानी है जो जिंदगी की कई कशमकश से भरी है।

शुरूआत में धोनी अपनी फुटबाल टीम के गोलकीपर थे लेकिन अपने कोच की सलाह पर धोनी बचपन में क्रिकेट खेलने लगे। अपनी शानदार विकेटकीपिंग के जरिये उन्हें एक लोकल क्रिकेट क्लब में खेलने का मौका मिला। असल मायनों में धोनी के क्रिकेट करियर की शुरूआत यहीं से हुई।

इसके बाद वीनू मांकड़ अंडर 16 चैंपियनशिप में उन्होंने शानदार खेल दिखाया। जहां उनकी बैटिंग और विकेटकीपिंग लगातार बेहतर होती गई और वे बिहार रणजी टीम का हिस्सा बन गए। साल 2001 में उन्होंने पश्चिम बंगाल के खड़गपुर रेलवे स्टेशन पर टिकेट कलेक्टर की सरकारी नौकरी की।

हालांकि उनको यहां रूकना मंजूर नहीं था। यहीं से धोनी ने कुछ अलग करने की ठानी और दिखाया कि जब आपके हौंसले बुलदं हो तो आप हार को हराकर नया मुकाम पा सकते है। धोनी को सबसे बड़ी कामयाबी तब मिली जब साल 2003 में उन्हें इंडिया ए टीम में चुना गया। धोनी के बल्ले ने इस सीरीज में खूब रन बनाए।

इसके बाद वे घरेलू क्रिकेट में भी वे शानदार प्रदर्शन करते रहे जिसके चलते 2004/05 में उन्हें बांग्लादेश जाने वाले टूर में शामिल कर लिया गया। अपने पहले ही मैच में वे दुर्भाग्य से शून्य पर रनआउट हो गए। इंटरनेशनल क्रिकेट में पहली बार धोनी के बल्ले की गूंज तब सुनाई दी। जब अपने पांचवे ही मैच में उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ ताबड़ तोड़ शतक ठोक के भारत को जीत दिला दी।

अब धोनी को दुनिया माही के नाम से जानने लगी। मगर धोनी की सफलता का कारवां यहां कहां रुकने वाला था। 2007 के विश्वकप में भारत सुपर 8 में भी जगह नहीं बना सका और बांग्लादेश और श्रीलंका से हारकर बाहर हो गया। ये भारतीय क्रिकेट का सबसे मुश्किल दौर था। ये महत इत्तेफाक ही था कि साल 2007 में ही T20 विश्वकप भी था।

धोनी को इस विश्वकप के लिए भारतीय टीम का कप्तान बना दिया गया। पहली बार टी20 वर्ल्ड कप खेला जा रहा था और महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी अगुवाई में एक नया इतिहास रच दिया। भारत न सिर्फ इस पहले वर्ल्ड टी20 के फाइनल में पहुंचा बल्कि उसने अपने चिर-प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को हराकर इस खिताब पर कब्जा भी जमाया।

इस विश्वकप में मिली जीत ने धोनी की किस्मत को पूरी तरह बदल दिया। इसके बाद वनडे मैचो की कप्तानी भी धोनी को मिल गई। धोनी ने अपनी कप्तानी में भारत को टेस्ट में नंबर वन बना दिया और 2011 विश्वकप खिताब भी दिलाया। 2011 विश्वकप के खिताबी मुकाबले में भारत 275 रन के लक्ष्य का पीछा कर रहा था।

सचिन और सहवाग (31 रन पर) जल्दी पविलियन लौट गए। इसके बाद विराट आउट हुए तो धोनी यहां 5वें नंबर पर बैटिंग पर उतरे। धोनी ने इस मैच में गंभीर के साथ मैच विनिंग साझेदारी निभाई और टीम इंडिया को विनिंग सिक्स जड़कर खिताब दिलाया। उनकी कप्तानी में भारत ने इंग्लैंड में हुई चैंपियन ट्राफी भी जीती।

यूं तो खेल के मैदान में धोनी की और भी ढ़ेरो उपलब्धियां है जिनकी किसी भी खिलाड़ी से तुलना करना बेईमानी होगा। लेकिन ऐसे वक्त पर जब धोनी अपने करियर के आखिरी पड़ाव पर है तो उनकी आलोचना भी होने लगी। खैर इस बात से धोनी को ज्यादा फर्क नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि इससे पहले भी कई महान खिला़ड़ियों को लेकर इस तरह की फजीहत झेलनी पड़ी हैं।

इस बात में कोई दोराय नहीं है कि धोनी के खेल में अब पहले जैसी चमक नहीं रही हैं। लेकिन उनके खेल में दिए गए अतुल्यनीय योगदान को भुलाया नहीं जा सकता हैं। पिछले दिनों ही इस बात की चर्चा भी जोरों पर थी कि धोनी खेल की दुनिया से आराम लेकर अपने राजनीतिक पारी का आगाज कर सकते हैं। ये उनका अपना निजी फैसला हो सकता है लेकिन इस पर उन्होंने अभी तक कोई राय नहीं रखी हैं।

ऐसे में उनके संन्यास से पहले ही इस तरह की अफवाहों को तूल देने का कोई मतलब नहीं बनता। इसलिए जब बात उनके संन्यास की हो तो इस पर फैसला करने के लिए भी उन्हें अकेला छोड देना चाहिए, क्योंकि धोनी से बेहतर इस बात को कोई नहीं जानता कि उन्हें अपने विकेटकीपिंग गल्व्स को कब आराम देना हैं।

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