नई दिल्ली, 18 सितम्बर (आईएएनएस)। बीते लोकसभा चुनाव में अपने निराशाजनक प्रदर्शन के बाद कांग्रेस गंभीर संकट से गुजर रही है, क्योंकि कांग्रेस के विधायकों व सांसदों सहित बहुत नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है और इसकी कीमत पार्टी को कर्नाटक में अपनी सरकार खोकर चुकानी पड़ी।
पार्टी छोड़कर जाने का मुद्दा कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ 12 सितंबर को पार्टी महासचिवों, राज्य प्रभारियों, राज्य इकाई के प्रमुखों व सीएलपी नेताओं के साथ हुई बैठक में उठाया गया। उन्होंने दलबदलुओं को ‘अवसरवादी’ बताया।
दलबदलुओं के मामले में कर्नाटक के अलावा सबसे बुरी तरह से प्रभावित राज्यों में तेलंगाना व गोवा रहे हैं। महाराष्ट्र व उत्तर प्रदेश से भी इस्तीफे दिए गए हैं।
बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 542 सीटों में से सिर्फ 52 सीटें जीतने में कामयाब रही। इससे पहले कांग्रेस ने 44 सीटें जीती थीं।
चुनाव के बाद सबसे पुरानी पार्टी में राहुल गांधी के 25 मई को पद छोड़ने के निर्णय से पार्टी में नेतृत्व का संकट पैदा हुआ।
शीर्ष पद के खाली रहने के बीच कांग्रेस तेलंगाना में संकट से प्रभावित हुई। तेलंगाना में 6 जून को 18 पार्टी विधायकों में 12 सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) में चले गए।
वहां हो रही इन चीजों के संकेत मिलते रहे, लेकिन पार्टी दुविधा में बनी रही और असंतोष से निपटने में असमर्थ रही, जिससे राज्य इकाई प्रभावित हुई।
तेलंगाना के बाद पार्टी गोवा में कलह से प्रभावित हुई, जहां पार्टी ने 2017 विधानसभा चुनाव में 17 सीटें जीती थीं। 10 जुलाई को पार्टी के 15 में से 10 विधायक सत्तारूढ़ भाजपा में शामिल हो गए।
कांग्रेस विधायकों में गोवा विधानसभा के विपक्ष के नेता चंद्रकांत कवलेकर भी भाजपा में शामिल हो गए।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से कहा कि 10 विधायकों के भाजपा में शामिल होने से एक रात पहले एक वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारी ने कांग्रेस महासचिव के.राजू को सूचित किया था। लेकिन वह वरिष्ठ नेतृत्व को इस कदम के बारे में सूचित करने में विफल रहे।
तेलंगाना व गोवा के बाद कांग्रेस कर्नाटक में सबसे बुरी तरह से प्रभावित रही। कर्नाटक में कांग्रेस की जनता दल(सेक्युलर) के साथ गठबंधन सरकार थी। कांग्रेस के विधायकों में से 13 ने पार्टी छोड़ दिया और दो हफ्तों तक नाटक चलता रहा। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और आखिरकार एच.डी.कुमारस्वामी सरकार 23 जुलाई को गिर गई।
बागी विधायकों के इस्तीफे के बाद 225 सदस्यों वाली कर्नाटक विधानसभा का प्रभावी संख्याबल घटकर 210 हो गया, जिससे सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ा 105 हो गया।
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