मुंबई, 14 अप्रैल (आईएएनएस)। बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने अपने संघर्ष के दिनों के एक पुराने किस्से को याद किया कि किस तरह से एक एहसास ने दुआओं के प्रति उनके ²ष्टिकोण को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया।
उन्होंने आईएएनएस को बताया, “वह दिन मुझे आज भी याद है। उन दिनों मैं इतना सशक्त नहीं था। शहर में न मेरे पास कोई काम था और न ही दोस्त थे। खाने तक के लिए पैसे नहीं थे। उस वक्त मुझे ऐसा महसूस होता था जैसे कि सारे रास्ते बंद हो गए हैं। मैंने दुआ करने का सोचा। वुजू करते वक्त मैंने सोचा कि ये दुआ है क्या? क्या यह सौदेबाजी है, जहां मैं कहता हूं कि ईश्वर मुझे यह चीज दें और जब मैं कुछ बन जाऊंगा, तो मैं आपको फलाना चीज दूंगा? नहीं! दुआ मांगने की यह एक वजह कभी नहीं होनी चाहिए! उस दिन से आज तक मैंने अपनी दुआओं में ईश्वर से कुछ नहीं मांगा। दुआओं के प्रति मेरा रवैया हमेशा के लिए बदल गया।”
वह आगे कहते हैं, “मैं अपनी दुआओं में ईश्वर के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूं। जिस वक्त मैं टूट गया था, मुझे एहसास हुआ कि काम मिलना ही इससे छुटकारा पाने का एकमात्र समाधान है और जो कोई भी मुझे काम देगा वह मेरे लिए ईश्वर जैसा होगा। मैंने उस वक्त खुद को मजबूत बनाकर रखा। मेरा मानना है कि दुआ करते वक्त ईश्वर से कुछ मांगना घृणित है।”
–आईएएनएस
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