लाहौर, 7 मार्च (आईएएनएस)| पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा कि न्यायपालिका ने 2010 में तत्कालीन सरकार को 19वें संविधान संशोधन को पारित करने के लिए मजबूर किया था और इस तरह न्यायपालिका ने जजों की नियुक्ति में संसद की भूमिका कम कर दी।
डॉन न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, बिलावल ने लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज द्वारा शुक्रवार को 18वें संशोधन विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में यह टिप्पणी की। इस दौरान उन्होंने कहा, “हमारी सरकार ने 18वें संशोधन के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक संसदीय आयोग की शुरुआत की थी, लेकिन 19वें संशोधन के माध्यम से संसदीय आयोग की भूमिका को जबरन समाप्त कर दिया गया।”
उन्होंने कहा कि संशोधन के बाद न्यायपालिका का दायरा कम हो गया। इस दौरान उन्होंने न्यायपालिका के दबाव पर तत्कालीन पीपीपी सरकार के आत्मसमर्पण करने का बचाव भी किया। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को उचित समय पर 19वें संशोधन की समीक्षा करनी होगी।
बिलावल ने राष्ट्रीय जवाबदेही एजेंसी (एनएबी) पर भी सवाल उठाए और इसे सरकार के विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करने की बात कही। उन्होंने कहा कि नवाज शरीफ हमारे प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन वह प्रतिशोध का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “इमरान खान ने एक आदेश के माध्यम से व्यापारियों और नौकरशाहों को जवाबदेही तंत्र से बाहर रखा है। वह केवल राजनेताओं को देखते हैं और उसमें भी केवल विपक्षी नेताओं को।”
पीपीपी के अध्यक्ष ने पारदर्शी तंत्र के माध्यम से एक जवाबदेही प्रक्रिया का समर्थन किया। बिलावल ने कहा, “ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, जिसमें राजनेताओं, न्यायाधीशों, जनरलों, नौकरशाहों और व्यापारियों को जवाबदेही के लिए तलब किया जा सके।”
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