आपातकाल का दौर और कार्टूनिस्ट अबू अब्राहम की कलम, जिसने इंदिरा पर बोला तीखा हमला

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आज जिस लोकतंत्र पर हम गर्व करते हैं, उसी लोकतंत्र को आज से 44 साल पहले आपातकाल का दंश झेलना पड़ा था। नयी पीढ़ी ने आपातकाल के भयानक सच अपनी आंखों से तो नहीं देखा लेकिन  इससे जुड़ी अनेकों कहानियां जरूर सुनी होंगी। । 25 जून, 1975 को लगा आपातकाल 21 महीनों तक यानी 21 मार्च, 1977 तक देश में लागू रहा। 25 जून और 26 जून की मध्य रात्रि में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर करने के साथ ही देश में पहला आपातकाल लागू हो गया था।

अगली सुबह समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा की आवाज में संदेश सुना था, ‘भाइयो और बहनो, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है। इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है।’  इंदिरा गांधी द्वारा देश पर थोपे गए आपातकाल को शायद ही कोई भूल पाए। इस दौरान नागरिकों के सभी मूल अधिकार खत्म कर दिए गए थे। राजनेताओं को जेल में डाल दिया गया था। प्रेस की आजादी पर हमला बोला गया। अखबारों को सरकार की आलोचना करने से रोक दिया गया, लेकिन उस दौर में  भी कुछ कार्टूनिस्ट नहीं रुके। ऐसे ही एक कार्टूनिस्ट थे अबू अब्राहम। जिन्होंने इंदिरा गांधी और उनकी तानाशाही पर तीखा हमला बोला। अबू ने राजनीति में भ्रष्टाचार पर सर्वाधिक कार्टून बनाए और आज भी उनके कार्टूनोंं के माध्यम से आपातकाल को बखुबी समझा जा सकता है।

आपातकाल के दौरान कार्टूनिस्ट अबू अब्राहम के यादगार कार्टून

राष्ट्रपति का पद रबर स्टांप वाला है, इसे सबसे पहले अब्राहम ने कार्टून से बताया कि किस तरह राष्ट्रपति फखरुद्दीन अहमद ने बिना ज्यादा-सवाल जवाब किए आपातकाल लागू करने के अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए।

आपातकाल ने कांग्रेस में चाटूकारिता को चरम पर खड़ा कर दिया। अबू अब्राहम ने आपातकाल के नारे श्रमेव-जयते (श्रम की ही जीत है) को अपने कार्टून का विषय बनाया और बताया कि किस तरह कांग्रेस में चाटूकारिता ही सबसे बड़ा काम बनकर रह गया है। पूरी पार्टी में यदि सबसे बड़ी कोई चीज है तो वह इंदिरा की कृपा।

आपातकाल में इंदिरा ने क्रांति लाने की बात कही थी, लेकिन उनके कैबिनेट सहयोगियों की स्थिति बेहद खराब थी। उनके मानसिक दीवालिएपन को अबू ने अपनी कलम से रेखांकित किया।

कार्टूनिस्ट अबू अब्राहम से जुड़ी कुछ खास बातें..

  • मशहूर कार्टूनिस्ट अबू अब्राहम केरल के मेविलिकारा में 1924 में जन्मे और आजीवन नास्त‍िक रहे।
  • बाम्बे क्रानिकल, शंकर्स वीकली, ब्ल‍िट्ज में काम करने के बाद वे लंदन चले गए और वहां ट्रिब्यून और द ऑब्जर्वर में काम किया।
  • ब्रिटेन में काम करते हुए वे दुनिया के कई हिस्सों में गए और वहां उन्होंने ड्राइंग रिपोर्ट बनाईं। 1962 में उन्होंने क्यूबा जाकर चे गुआरा को रेखांकित किया। और एक नाइटक्लब में फिदेल कास्त्रो के साथ तीन घंटे बिताए। 1968 में उन्होंने वियेतनाम युद्ध पर कई कार्टून बनाए।
  • लेकिन 40 साल के अपने करियर का सबसे महत्वपूर्ण और अंतिम पड़ाव उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस के साथ पूरा किया। जिसमें आपातकाल वाला दौर आया।
  • 1972 से 1978 तक वे राज्यसभा के लिए नामित हुए। लेकिन आपातकाल लगाए जाने के कारण वे इंदिरा विरोधी हो गए।
  • 2002 में उन्होंने हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन आज भी उनके द्वारा आपातकाल में बनाए कार्टून लोगों के ज़हन में जिंदा हैं।

This post was last modified on June 25, 2019 3:37 PM

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